कानपुर। भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक करियर काफी लंबा रहा। वह तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने, तथा रिकॉर्ड 9 बार लोकसभा सांसद और 2 बार राज्यसभा सांसद भी रहे। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्में अटल बिहारी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृह नगर ही हुई। यहां स्नातक की पढ़ाई करने के बाद वह राजनीति शास्त्र में डिग्री लेने के लिए कानपुर आना चाहते थे लेकिन पैसों की तंगी के चलते उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी उन्हें कानपुर नहीं भेज सके। इसके बाद ग्वालियर के राजा ने उन्हें 72 रुपये की छात्रवृत्ति देकर आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर भेज दिया। साल 1945-47 के बीच अटल बिहारी ने राजनीति शास्त्र में एमए किया। परास्नातक पूरा होते ही वाजपेयी जी की रुचि वकालत की ओर बढ़ने लगी।

कानपुर में एक ही क्‍लास में पढ़ा करते थे अटल बिहारी वाजपेयी व उनके पिता

पिता-पुत्र एक क्लॅास में पढ़ते थे

साल 1948 में अटल बिहारी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज में एलएलबी में एडमीशन ले लिया। तब तक उनके पिता कृष्ण बिहारी भी कानपुर आ चुके थे। पिता-पुत्र दोनों एक साथ एक ही कमरे में रहते थे। बेटे को वकालत पढ़ता देख पिता का भी मन हुआ, उन्होंने भी उसी साल एलएलबी में एडमीशन ले लिया। आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि पिता-पुत्र दोनों एक ही क्लॉस में बैठकर पढ़ाई करते थे। बाप-बेटे की इस जोड़ी को साथी छात्र देखने आते थे। जो प्रोफेसर इन दोनों को पढ़ाते थे वह काफी मजाक भी किया करते थे। बताते हैं कि जब पिताजी देर से पहुंचते थे प्रोफेसर ठहाके लगाकर अटल बिहारी से पूछते थे कि, आपके पिताजी कहां गायब हैं। ऐसा ही नजारा तब भी देखने को मिलता था जब अटल बिहारी देर से कक्षा में पहुंचते थे। तब प्रोफेसर पिता से पूछते कि आपके साहबजादे कहां नदारद हैं।

एक साल बाद बंद कर दी छात्रवृत्ति

कानपुर में एक साल पढ़ाई पूरी करते ही अटल बिहारी ने हर माह मिलने वाली 75 रुपये की स्कॉलरशिप लेने से मना कर दिया था। क्योंकि वह खुद पैसे कमाने लगे थे। वह कानपुर के हटिया मोहाल स्थित सीएबी स्कूल में ट्यूशन देने जाते थे। यहां पर वह भूगोल वह उनके पिता अंग्रेजी पढ़ाया करते थे।

यूपी के इस कॉलेज में देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनो पढ़ा करते थे

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