- आयुष्मान कार्ड होने के बाद भी गंभीर मरीजों को नहीं मिल रहा इलाज

- दून के 2 मजदूर परिवार कार्ड होते हुए भी इलाज के लिए इधर-उधर भटकते रहे

देहरादून,

5 लाख रुपए तक के फ्री इलाज की आयुष्मान योजना का लाभ प्राइवेट हॉस्पिटल मरीजों को देने में आनाकानी कर रहे हैं. एक्सीडेंटल केसेज में जब पेशेंट की जान पर बनी हो तो भी उसे एडमिट नहीं किया जा रहा है. दून में ऐसे दो केस सामने आए हैं, जिनमें गंभीर हालत में आयुष्मान कार्ड होल्डर पेशेंट्स को प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज के लिए लाया गया, लेकिन हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने फ्री इलाज से इनकार कर दिया. जबकि ये हॉस्पिटल्स आयुष्मान योजना के तहत इम्पैनल्ड हैं. पेशेंट्स एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल का चक्कर लगाते रहे लेकिन प्राइवेट हॉस्पिटल फ्री इलाज को तैयार नहीं हुए. ये दो केसेज तो बानगी भर हैं, आयुष्मान योजना को लेकर प्राइवेट हॉस्पिटल्स का रुख शुरू से ही गैरजिम्मेदाराना रहा है, जो पेशेंट्स की जान पर भारी पड़ रहा है.

योजना पर उठ रहे सवाल

इमरजेंसी केसेज में ही अगर सरकारी हॉस्पिटल आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद पेशेंट को हायर सेंटर रेफर कर दे और प्राइवेट हॉस्पिटल उसे एडमिड करने से इनकार कर दे तो आयुष्मान योजना के औचित्य पर सवाल उठते हैं. ऐसे में अगर मरीज की जान चली जाए तो जिम्मेदार किसे ठहराया जाएगा. दरअसल इस योजना का मकसद ही गरीब और जरूरतमंद पेशेंट्स को इमरजेंसी के दौरान तत्काल इलाज मुहैया कराना है, लेकिन इस मकसद को प्राइवेट हॉस्पिटल कामयाब नहीं होने देना चाहते.

केस 1-

फ्री से इनकार, पेड ट्रीटमेंट को तैयार

32 वर्षीय मोहम्मद उस्मान मजदूरी कर रोजी-रोटी चलाता है. 11 जून को बंगाली कोठी स्थित साइट पर शाम को वह एक किनारे खड़ा था, इसी दौरान उसका संतुलन बिगड़ गया और वह बाउंड्रीवाल की ग्रिल पर जा टकराया, ग्रिल का एक सरिया उसके पेट में घुस गया. गंभीर हालत में उसे महंत इंदिरेश हॉस्पिटल ले जाया गया. उस्मान के परिजनों का आरोप है कि शाम 6 बजे से 11 बजे तक वह उसी हाल मे बेड पर पड़ा रहा, आयुष्मान कार्ड था लेकिन हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने इलाज करने से इनकार कर दिया. इसके बाद उस्मान का भाई जमशेद उसे सीएमआई हॉस्पिटल ले गया. वहां भी हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने आयुष्मान कार्ड के तहत इलाज से इनकार कर दिया. ऐसे में अपने बजट पर ही परिजनों ने उसका इलाज कराने की बात कही तो हॉस्पिटल मैनेजमेंट मान गया और इलाज शुरू हो पाया. उस्मान के भाई ने बताया कि हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने उन्हें 3 लाख 80 हजार का एस्टीमेट थमा दिया, इसमें से 1 लाख 70 लाख रुपए एडवांस में जमा भी करा दिये. बाकी रकम पेशेंट को रिलीव करने से पहले जमा कराने को कहा गया है.

केस 2-

विधायक की सिफारिश पर सरकारी इलाज

बीते 12 जून वेडनसडे की सुबह संजय कॉलोनी मोहनी रोड निवासी मजदूर गया प्रसाद छत से गिर गया था. वह नीचे मेन गेट पर गिरा और उसका सरिया उसके शरीर में घुस गया. वह बुरी तरह घायल हो गया. परिजन उसे दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल लेकर पहुंचे, डॉक्टर्स ने उसे हायर सेंटर रेफर करने को कहा. परिजन उसे लेकर महंत इंदिरेश हॉस्पिटल ले कर आए, लेकिन आयुष्मान कार्ड होने के बाद भी हॉस्पिटल ने इलाज से इनकार कर दिया. उसके परिजनों ने विधायक राजकुमार को इस बारे में बताया तो राजकुमार ने उसे वापस दून हॉस्पिटल लाने को कहा और खुद एमएस डॉ. केके टम्टा से मिलकर कम्पलेन की. कहा कि मरीज कई घंटे तक स्ट्रेचर पर इलाज के लिए तड़पता रहा लेकिन डॉक्टर्स ने यह जानते हुए भी कि उसके पास आयुष्मान कार्ड है, प्राइवेट हॉस्पिटल के लिए रेफर कर दिया. इसके बाद एमएस डॉ. केके टम्टा के निर्देश पर गया प्रसाद को एडमिट किया गया, उसका इलाज जारी है.

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इमरजेंसी या एक्सीडेंटल केसेज में आयुष्मान कार्ड होने पर पेशेंट का इलाज किया जाता है. दोनों केसेज की जांच कराई जाएगी कि पेशेंट को किस कंडीशन में हॉस्पिटल लाया गया था. उसका ट्रीटमेंट किस पैकेज के तहत होना था और क्यों नहीं हुआ.

भूपेन्द्र रतूड़ी, पीआरओ, महंत इंदिरेश हॉस्पिटल

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आयुष्मान योजना में इम्पैनल्ड हॉस्पिटल को इमरजेंसी केसेज में हर हाल में पेशेंट का इलाज करना जरूरी है. अगर कोई हॉस्पिटल इससे इनकार करता है तो इसकी कंप्लेन सीधे आयुष्मान विंग के ऑफिस में करें, तुरंत एक्शन लिया जाएगा.

युगल किशोर पंत, अपर सचिव स्वास्थ्य व एमडी एनएचएम