आज पूरी दुनिया एक बार फिर निरक्षरों का साक्षर बनाने का संकल्प लेगी। अपने शहर में भी विश्व साक्षरता दिवस पर बहुत कुछ होगा। लेकिन कई सवाल सालों से आज भी वहीं के वही हैं। क्या अक्षर ज्ञान ही सारक्षरता का पैमाना है? कई दशक से हम निरक्षरता को मिटाने के लिये अभियान चला रहे हैं लेकिन आज तक 100 प्रतिशत साक्षरता का टारगेट छू नहीं सके, भला क्यों? पूर्ण साक्षरता की राह में क्या रोड़े हैं? तमाम ऐसी दुश्वारियां हैं जो पूर्ण साक्षरता की मुहिम को हर साल ठेंगा दिखाती हैं। आप जानेंगे तो आप भी कहेंगे कि ऐसे तो मिल चुकी पूर्ण साक्षरता

अरबों खर्च फिर भी गली-गली हैं निरक्षर

- साक्षरता के लिये खर्च हो चुके हैं अरबों रुपये लेकिन आज तक पूर्ण साक्षर नहीं बन सका बनारस

- सर्व शिक्षा की राजधानी में आज भी हजारों लोग हैं अंगूठाछाप

- सैकड़ों बच्चों ने नहीं देखा है स्कूल का मुंह जबकि सैकड़ों हैं ड्राप आउट कटेगरी में

VARANASI:

एक बार फिर विश्व साक्षरता दिवस पर अपने बनारस में तमाम तरह के प्रोग्राम होंगे। हर साल ऐसा होता है। लोगों को साक्षर बनाने के लिये कई दशक से तमाम योजनाएं भी चल रही हैं। कभी ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड, कभी साक्षरता अभियान तो कभी सर्व शिक्षा अभियान। लेकिन क्या है इन अभियानों का सच। क्या वास्तव में डिस्ट्रिक्ट के सभी लोग साक्षर हो गए हैं? इस सवाल का जवाब सरकारी एजेंसियों से लेकर समाज को साक्षर बनाने वालों के पास भी नहीं है। इससे भी बड़ा सवाल यह कि लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी संपूर्ण साक्षरता को हम प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। इसके पीछे के कारणों को जब तक सिस्टम समझ नहीं पाएगा तब तक यही हाल रहेगा। एक तरफ निरक्षरों को साक्षर किया जाएगा तो दूसरी ओर फिर से निरक्षरों की फौज मुंह बाए खड़ी हो जाएगी।

करोड़ों बह गए पानी में

बिना पढ़े लिखे लोगों को साक्षर बनाने के लिए पिछले कई दशक से डिस्ट्रिक्ट में कैंपेन चल रहा है। घर से लेकर मुहल्लों तक और गांव से लेकर शहर तक ऐसे लोगों को ढूंढकर उन्हें साक्षर बनाने का काम एक दो साल नहीं बल्कि सालों से हो रहा है। इसपर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। बावजूद इसके नतीजा बहुत संतोषजनक नहीं है। सिचुएशन यह है कि अभी भी डिस्ट्रिक्ट में हजारों लोग निरक्षर है। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें अपना नाम तक लिखने नहीं आता है। जहां जरूरत होती है, ये अंगूठा ही लगाते हैं। फिर भी डिस्ट्रिक्ट में शिक्षा के नाम पर अभियान को जोर बना हुआ है।

ब्भ्0 बच्चे ड्राप आउट

सब पढ़ें-सब बढ़ें का स्लोगन लेकर पिछले दो दशक से संचालित सर्व शिक्षा अभियान कब अपने लक्ष्य को प्राप्त करेगा, यह किसी को पता नहीं है। इस कैंपेन पर अब तक व‌र्ल्ड बैंक की हेल्प से करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। कैंपेन फिर भी जारी है। खास बात यह कि इस अभियान के अंतर्गत हर साल हाउस होल्ड सर्वे भी किया जाता है। जिसमें स्कूल न जाने वाले बच्चों को तलाशा जाता है। ख्0क्ब् के हाउस होल्ड सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक डिस्ट्रिक्ट के ब्भ्0 से अधिक बच्चे अभी भी स्कूल से दूर हैं। ये स्कूल जाते ही नहीं है। जबकि इन्हें पहले स्कूल में दाखिला कराया गया था। यानि ये ड्राप आउट बच्चे हैं। हालांकि डिपार्टमेंट की ओर से एक बार फिर छह से क्ब् साल के स्कूल न जाने वालों बच्चों को सर्च किया जा रहा है। इसका भी नतीजा जल्द ही सबके सामने होगा।

यानि दस हजार पहले से थे निरक्षर!

साक्षरता को लेकर भले बड़े-बड़े दावे किए जाएं, लेकिन हकीकत छिपाए नहीं छिपता है। इसी का परिणाम है कि डिस्ट्रिक्ट के दस हजार निरक्षरों ने अभी पिछले महीने ही साक्षर होने का एग्जाम दिया है। बिना पढ़े लिखे लोगों में फ्00 सेंट्रल व डिस्ट्रिक्ट जेल के बंदी रक्षक भी शामिल रहे। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने पढ़ने लिखने की उम्र में स्कूल का मुंह नहीं देखा। उनका पढ़ाई से कोई नाता नहीं रहा। पर अच्छी बात यह कि देर से ही सही उनमें भी साक्षर बनने की चेतना जागृत हो गयी है। जिसका परिणाम है कि अब वो भी गर्व से अपने को साक्षर कहने से हिचक नहीं रहे हैं।

पूर्ण साक्षरता की राह में रोड़े

- सरकारी योजनाओं में रुपये लूट ज्यादा है और प्रैक्टिकल अप्रोच कम जिससे योजनाएं लक्ष्य तक नहीं पहुंच पातीं।

- सर्व शिक्षा अभियान में भी भारी गड़बड़ी है। रुपये की लूट के चक्कर में ही हकीकत से ज्यादा बच्चे स्कूल में एनरोल्ड दिखाये जाते हैं।

- बच्चों की ज्यादा संख्या दिखाकर मिड डे मील बजट, यूनिफार्म वगैरह के बजट में किया जाता है खेल।

- उम्र दराज लोगों को साक्षर बनाने का 'साक्षरता अभियान' भी नहीं हो सका सफल।

- कागजों में जिले के 99 प्रतिशत बच्चे स्कूल जाते हैं जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।

- आज भी बाल मजदूरी में सैकड़ों बच्चे लगे हुए हैं जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा।