कहानी
साल 1947 है, हिंदुस्तान का बंटवारा हो रहा है। कागज़ पर स्याही से, ज़मीन पर खून से लकीरें बनाई जा रही हैं। वो लकीरें जिसे हम सरहदें कहते हैं। पंजाब में ऐसी ही एक लकीर बेगम जान के कोठे के बीच से गुज़रती है। बेगम जान से कहा जाता है की वो कोठा खाली कर दे, बेगम को ये नागावार है। बेगम कोठा खाली करने से मना कर देती है। उसके लिए ये कोठा एक इमारत नहीं है, बल्कि घर है उन दर्जनों लड़कियों का, जो किसी न किसी वजह से अपनी देह बेच रही हैं। हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों की आँखों में ये कोठा नासूर बना हुआ है, वो बेगम पर हर तरीके से जोर डालने की कोशिश करते हैं, पर बेगम ने ठान लिया है, की वो अपना कोठा जो उसके लिए घर भी है और वतन भी, उसके लिए लड़ेगी। चाहे उसे उसके लिए जान ही क्यों न देनी पड़े।

कथा, पटकथा और निर्देशन
कहानी यक़ीनन काफी दमदार है, ऐसी दमदार कहानी पे विशेष फिल्म्स ने काफी लम्बे अरसे से फिल्म नहीं बनाई है। इसके लिए प्रोडक्शन हाउस की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी। एक अच्छी पीरियड फिल्म जैसी होनी चाहिए, ये फिल्म वैसी ही है। पर....फिल्म की स्क्रीनप्ले और संवादों में काफी झोल हैं। फिल्म के संवादों में वो गहराई नहीं है जो इसकी ओरिजिनल बांगला फिल्म में थी। स्क्रीनप्ले के लेवल पर फिल्म को कमर्शियल बनाने के चक्कर में इसकी कहानी की अच्छाइयों के साथ काफी खिलवाड़ किया गया है। यहाँ पे आके ये फिल्म एक रूटीन विशेष फिल्म्स जैसी फील देने लगती है। इस फिल्म में कोठे में रहने वाली हर एक लड़की की अपनी कहानी है। इतनी सारी कहानियां मूल प्लाट का तारतम्य बिगाडती रहती हैं। फिल्म की एडिटिंग भी इसका एक माइनस पॉइंट है, फिल्म कम से कम 15 मिनट छोटी की जा सकती है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी काफी अच्छी है। अगर राजकहिनी से तुलना की जाए तो बेगम जान का निर्देशन काफी लचर है। पर फिर भी बेगम जान इस साल की बहुत सारी फिल्मों से बेहतर फिल्म है।
movie review : लाउड पर फिर भी देखने लायक है बेगम जान

 



अदाकारी
विद्या बालन के बेगम जान का किरदार इमानदारी के साथ निभाया है, कहीं कहीं वो थोड़ी लाउड ज़रूर लगती हैं, पर इसमें उनकी गलती नहीं है। हिंदी वर्ज़न में बेगम जान का किरदार काफी लाउड लिखा गया है। कई जगह पर उनकी अदाकारी में ‘मंडी’ की शबाना आज़मी की झलक दिखती है। गौहर खान, पल्लवी शारदा, आशीष विद्यार्थी, रजत कपूर का काम टॉप नोंच है। सुमित निझावन इस फिल्म के सरप्राइज़ पैकेज हैं। उनका किरदार आपको ज़रूर पसंद आएगा। छोटे से रोल में नसीर साहब भी खरे सोने की तरह चमकते हैं। चंकी पांडे अपनी इमेज के बिलकुल विपरीत खल किरदार को बेहद अच्छी तरह निभाते हैं। इस फिल्म में बहुत सारे किरदार हैं, इतनी बड़ी कास्टिंग संभालना आसान काम नहीं है। पहले की कह दिया जाए की इस फिल्म की कास्टिंग टीम बधाई की पात्र है की कास्टिंग में कोई फ्लो नहीं है। इसी वजह से स्क्रीनप्ले की कमियाँ काफी हद तक आप नज़रअंदाज़ कर सकते हैं।

संगीत
फिल्म का संगीत बेहद अच्छा और शानदार है। यक़ीनन इस फिल्म की डीवीडी आप घर में भले ही न रखना चाहें, अपने आईपॉड में इसके गीत ज़रूर रखिये। फिल्म का पार्श्वसंगीत भी काफी अच्छा है।

कुल मिलाकर बेगम जान एक अच्छी फिल्म है। अगर आपने राजकहिनी नहीं देखी है तो। फिल्म काफी बिखरी हुई है, फिर भी एक बार बेगम जान देखना तो बनता ही है, इसके शानदार परफॉरमेंस, इसकी अनूठी कहानी और इसके संगीत के लिए।

बॉक्स ऑफिस प्रेडिक्शन : फिल्म अपने पूरे रन में 50-60 करोड़ तो कमा ही लेगी।

Review by : Yohaann Bhaargava
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