-1989 को थाने में कमालुद्दीन ने दर्ज कराई थी प्राथमिकी

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BHAGALPUR/PATNA: वर्ष 1989 में भागलपुर के हड़वा में हुए भीषण दंगे में बुधवार को अष्टम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश एमपी सिंह की अदालत ने जिंदा बचे 30 आरोपितों को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया. सरकार की ओर से पटना से पहुंचे विशेष अपर लोक अभियोजक अतिउल्लाह ने मामले में पांच गवाहों की गवाही कराई थी. गवाहों ने न्यायालय में आरोपितों को पहचानने से इंकार कर दिया. उनके नाम तक नहीं बता पाए. नतीजा न्यायालय ने पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में जिंदा बचे 30 आरोपितों को रिहा कर दिया. बचाव पक्ष से अधिवक्ता नवीन कुमार सिंह, मृत्युंजय भारी और दीप शिखा ने बहस में भाग लिया.

पहचानने से किया इंकार

मुहम्मद असलम, उर्फ इस्लाम, मुहम्मद नूरउद्दीन, मुहम्मद सहाम, मुहम्मद कमालउद्दीन और मुहम्मद महफूज ने आरोपितों को न्यायालय में पहचानने से इन्कार कर दिया जबकि पुलिस के समक्ष नाम और चेहरा पहचानने का किया था दावा.

भीड़ ने कर दी थी अरशद की हत्या

दो नवंबर 1989 की रात दंगाई भीड़ ने जगदीशपुर थाना क्षेत्र के हड़वा गांव में रहने वाले मुहम्मद महफूज के लड़के मुहम्मद अरशद को अगवा कर उसे मार डाला था. दंगाइयों ने उसके शव को भी गायब कर दिया था. फिर लूटपाट और आगजनी आदि को अंजाम दिया था.

पुलिस ने सौंपी थी रिपोर्ट

भागलपुर दंगे से संबंधित तब जगदीशपुर थाना कांड संख्या 177/89 की तफ्तीश कर रही पुलिस ने घटना को सत्य किंतु सूत्रहीन करार देते हुए न्यायालय में अंतिम प्रतिवेदन सौंप दिया था. बाद में सीएम नीतीश कुमार के निर्देश पर दंगे के दो दर्जन से अधिक मुकदमों को फिर से जांच के लिए खोला गया था जिनमें एक कांड यह भी था. पूर्व में हुई प्राथमिकी पुरैनी स्थित शरणार्थी शिविर में डीएसपी के समक्ष दर्ज कराई गई थी. जिसमें फाइनल रिपोर्ट सौंपी गई थी उस मुकदमे में दिनेश यादव समेत 48 लोगों को आरोपित बनाया गया था. फिर से खोली गई फाइल में 37 आरोपितों के विरुद्ध आरोप का गठन हुआ. कई आरोपितों की मृत्यु हो गई. 30 आरोपित जिंदा बचे जिनके विरुद्ध ट्रायल चला और साक्ष्य के अभाव में बुधवार को सभी बरी कर दिए गए.