कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने अभिनेता संजय दत्त के परोल को बढ़ाए जाने का बचाव किया था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव को एक कमेटी बनाने का भी आदेश दिया है.

हाईकोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह जेल प्रशासन के प्रतिनिधि और अन्य सक्षम अधिकारियों सहित राज्य के गृह, क़ानून और न्याय विभाग के वरिष्ठ अफ़सरों की कमेटी बनाए जो दोषियों को  परोल और अवकाश दिए जाने से संबंधित नियमों और प्रक्रियाओं में संशोधन लाने संबंधी सलाह देगी.

हाईकोर्ट ने कहा, "इस तरह की तत्परता सभी दोषियों के लिए नहीं दिखाई जाती. दोषी जब कोई सामान्य व्यक्ति होता है तब राज्य सरकार लापरवाही भरा रवैया क्यों अपनाती है?"

'सरकार ने भेदभाव किया'

संजय को बार-बार परोल पर बॉम्बे हाईकोर्ट नाराज़

साल 1993 के  मुंबई बम विस्फोट से जुड़े एक मामले में आर्म्स एक्ट के तहत दोषी पाए गए संजय दत्त को बार-बार परोल दिए जाने के ख़िलाफ़ बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है.

जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस एन एच पटेल और वी एल अचलिया की खंडपीठ ने कहा, "हमने देखा है कि कई मामलों में अभियुक्त परोल से संबंधित आवेदनों पर महीनों सुनवाई नहीं होने की शिकायत लेकर हमारे पास आते हैं और हमें मामले में दख़ल देते हुए उनकी याचिका पर आगे कार्रवाई करने का निर्देश जारी करना पड़ता है."

संजय दत्त के परोल की अवधि उनकी पत्नी मान्यता की ख़राब सेहत का हवाला देते हुए अभी 21 मार्च तक बढ़ा दी गई है.

न्यायमूर्ति अचलिया ने कहा, "मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार मान्यता को टीबी है और उन्हें घर पर इलाज की ज़रूरत है. साथ ही, भविष्य में उन्हें सर्जरी भी करवानी पड़ सकती है. लेकिन ऐसे कई और मामले हैं जिनमें दोषी ख़ुद कैंसर या किसी और जानलेवा बीमारी से पीड़ित होता है लेकिन उसे इस आधार पर परोल नहीं मिलता."

न्यायमूर्ति एन एच पटेल ने कहा, "हमारा ये मतलब नहीं है कि उनकी पत्नी इतनी बीमार नहीं हैं जितनी बताई जा रही हैं. दर्द और तकलीफ़ सबको एक जैसी होती है. लेकिन राज्य सरकार ने इस मामले में भेदभाव किया है."

संजय को बार-बार परोल पर बॉम्बे हाईकोर्ट नाराज़सिर्फ़ 5,000 रुपए पर परोल'

कोर्ट ने इस बात पर भी नाराज़गी ज़ाहिर की कि अधिकारियों ने संजय दत्त को मात्र 5000 रुपए के मुचलके पर पर परोल दे दिया था.

अदालत ने कहा, "दूसरे मामलों में ज़मानत के रूप में 10,000, 15,000 और 20,000 रुपए तक की राशि ली जाती है. ग़रीब व्यक्ति ज़मानत की राशि कम करने के लिए हाईकोर्ट में गुहार लगाते हैं. अचानक इस मामले में आप सिर्फ़ 5000 रुपए पर आ गए."

अदालत ने आगे कहा, "अधिकारियों को अपने विवेक का इस्तेमाल उचित ढंग से करना चाहिए."

मुख्य सचिव को परोल और अवकाश पर नियंत्रण रखने संबंधी  नियमों में संशोधन से जुड़ी सलाह देने वाली समिति के गठन का निर्देश जारी करते हुए अदालत ने कहा है कि आमूलचूल परिवर्तन लाने की ज़रूरत है.

खंडपीठ ने राज्य सरकार को कहा है कि वो चार हफ़्तों में बताए कि उसने इस बारे में क्या क़दम उठाए.

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