- मायावती से बगावत करने वाले नेताओं की नहीं कमी

- बीते दस वर्ष में बसपा को झेलना पड़ा सबसे ज्यादा नुकसान

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LUCKNOW: भाई आनंद कुमार और भतीजे आकाश आनंद को पार्टी में बड़े पदों पर काबिज कराने के बाद मायावती पर भाई-भतीजावाद की सियासत करने के भले ही आरोप लगने शुरू हो गए पर यह भी सत्य है कि बीते एक दशक के दौरान मायावती को उन नेताओं ने सबसे ज्यादा धोखा दिया जिन पर कभी उन्होंने खासा भरोसा किया था। चार बार की मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती को 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमटना पड़ गया तो 2017 का विधानसभा चुनाव भी उनकी शिकस्त के सिलसिले को कम नहीं कर पाया।

भाजपा ने किया सबसे ज्यादा नुकसान
बसपा का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान किया था। इसके बाद विधानसभा चुनाव आते-आते बसपा के दो दर्जन से ज्यादा विधायक भाजपा के पाले में आ गये और उन्होंने चुनाव में जीत हासिल कर भाजपा को ऐसा बहुमत दिलाया जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। खास बात यह है कि पार्टी छोड़ते वक्त इनमें से ज्यादातर नेताओं ने मायावती पर टिकट के बदले पैसे मांगने के आरोप लगाए। बची नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पूरी कर दी जिन्होंने पार्टी छोड़ने से पहले बाकायदा मायावती से फोन पर अपनी बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिग मीडिया के सामने सार्वजनिक कर दी। नरेश अग्रवाल, अखिलेश दास जैसे नेता बसपा में लंबे समय तक नहीं सके तो मायावती के खास सिपहसलार माने जाने वाले आरके चौधरी, बाबू सिंह कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक, जुगुल किशोर, राजेश त्रिपाठी, रोमी साहनी, ओमकुमार, महावीर राणा, धर्म सिंह सैनी, अरविंद गिरि, रौशन लाल वर्मा, बाला प्रसाद अवस्थी अब भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं। बसपा सरकार में अहम विभागों के मंत्री रहे रामवीर उपाध्याय को भी मायावती ने पार्टी से बाहर कर दिया है। इतना ही नहीं, मायावती के सीएम रहने के दौरान उनके खास अफसरों में शुमार पीएल पुनिया ने कांग्रेस तो पूर्व डीजीपी बृजलाल ने भाजपा का दामन थाम उनका कम नुकसान नहीं किया।

सपा के लिए भी नहीं बचा रास्ता
वहीं दूसरी ओर सपा के लिए भी अब शिवपाल की दोबारा वापसी के अलावा कोई रास्ता नहंी बचा है। लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद से ही पार्टी में शिवपाल की वापसी को लेकर अटकलें लगनी शुरू हो गयी है हालांकि शिवपाल ने साफ तौर पर सपा में विलय करने से इंकार कर दिया है।