- तीन महीने एक्सटेंशन देने का है नियम, मनमर्जी से देते रहे काम

- सूबे में पंजीरी सप्लाई में दो साल से चल रहा है फर्जीवाड़ा

LUCKNOW:

सूबे के बाल विकास एवं पुष्टाहार महकमे में सालों से पंजीरी सप्लाई के काम में चल रहे फर्जीवाड़े की पर्ते उधड़ने लगी हैं। हाल ही में पंजीरी सप्लाई के काम के लिए विभाग द्वारा तीन माह का एक्सटेंशन मांगे जाने का अनुरोध किए जाने पर जब न्याय विभाग ने पत्रावली की जांच की तो चौंकाने वाला सच सामने आया। पता चला कि वर्ष 2016 में टेंडर की अवधि खत्म होने के बाद तीन माह का एक्सटेंशन तत्कालीन कैबिनेट ने तो दिया, लेकिन इसके बाद विभाग के बाबू खुद ही मुख्यमंत्री और मंत्रियों के अधिकार का इस्तेमाल करने लगे और विवादित कंपनियों को खुद ही कई बार एक्सटेंशन की सौगात दे डाली। यही वजह है कि प्रमुख सचिव बाल विकास पुष्टाहार ने इस काम को नये सिरे से कराने के लिए पुरानी ई-टेंडर प्रक्रिया को निरस्त कर नई प्रक्रिया शुरू करने का प्रस्ताव भेजा है।

अप्रैल 2014 में खत्म हो गया था एग्रीमेंट

दरअसल पंजीरी सप्लाई का काम दस कंपनियों को अप्रैल 2013 में तीन साल की अवधि के लिए दिया गया था। अप्रैल 2016 में टेंडर की अवधि खत्म होने पर कैबिनेट की मंजूरी लेकर तीन माह का एक्सटेंशन दिया गया। इसके बाद विभाग के बाबुओं का खेल शुरू हो गया। तीन माह बाद 15 जुलाई 2016 को कंपनियों को फिर तीन महीने का एक्सटेंशन बिना कैबिनेट और न्याय विभाग की अनुमति के बगैर दे दिया गया। विभाग के बाबुओं और कंपनियों के बीच गठजोड़ का आलम यह रहा कि 14 अक्टूबर 2016 और 14 जनवरी 2017 को भी कैबिनेट की मंजूरी लिए बगैर एक्सटेंशन दिया जाता रहा। इसी तरह नई सरकार में भी 31 मई 2017 को फिर से डेढ़ माह का एक्सटेंशन दे दिया गया। न्याय विभाग ने अपनी आख्या में यह उल्लेख भी किया है कि नियमों के मुताबिक किसी भी सूरत में एग्रीमेंट को तीन माह से ज्यादा समय के लिए नहीं बढ़ाया जा सकता है।

गलत तरीके से होता रहा भुगतान

सूत्रों की मानें तो न्याय विभाग ने इस पूरे प्रकरण की जानकारी सीएम कार्यालय को भी भेजी है। साथ ही कहा है कि तीन माह के बाद बढ़ाए गये सारे अनुबंध नियमों के विपरीत है। आशय साफ है कि विभागीय अधिकारियों और कंपनियों ने आपसी मिलीभगत कर लगातार पंजीरी सप्लाई के काम का एक्सटेंशन लिया और सरकारी खजाने को चोट पहुंचाते रहे। कंपनियों का अधिकारियों पर कुछ ऐसा प्रभाव रहा कि नियमों को दरकिनार कर सैंकड़ों करोड़ रुपये का भुगतान भी जारी कर दिया गया। अब मामला मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच चुका है लिहाजा इस प्रकरण में दोषी अधिकारियों पर गाज गिरनी तय मानी जा रही है।

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दोबारा होना है ई-टेंडर

वहीं दूसरी ओर हाल ही में बाल विकास पुष्टाहार महकमे में प्रमुख सचिव बनाई गयीं अनीता सी। मेश्राम ने इस फर्जीवाड़े को खत्म करने की कवायद भी शुरू कर दी है। उन्होंने सपा सरकार में दोबारा पंजीरी सप्लाई का काम देने को शुरू की गयी ई-टेंडर प्रक्रिया को निरस्त करके नये सिरे से टेंडर प्रक्रिया शुरू करने की संस्तुति की है। साथ ही बड़े जोन के बजाय जिलेवार सप्लाई के लिए टेंडर आमंत्रित करने का सुझाव भी दिया है ताकि ज्यादा से ज्यादा कंपनियां टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा ले सके। प्रमुख सचिव ने पड़ोसी राज्यों में हो रही पुष्टाहार सप्लाई का मुआयना भी अधिकारियों को भेजकर कराया है जिसकी रिपोर्ट मुख्यमंत्री कार्यालय को सौंपी गयी है। अब देखना यह है कि कथित पंजीरी सप्लाई घोटाले की रोकथाम के लिए राज्य सरकार क्या कदम उठाती है। इसका फैसला जल्द होने वाली कैबिनेट में लिया जा सकता है।