RANCHI: क्म् साल पहले ख्म् जुलाई क्999 को ारतीय सेना ने कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय को सफलतापूर्वक अंजाम देकर ारतीय ाूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराकर टाइगर हिल पर तिरंगा फहराया था। उन्हीं शहीदों की याद में हर साल ख्म् जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाया जाता है। इसी दिन के बहाने आई नेक्स्ट आपको झारांड के उन शहीदों और उनके परिजनों से रूबरू करा रहा है, जो आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए लेकिन उनके परिजनों को आश्वासन के बावजूद अब तक न नौकरी मिली और न ही कोई सरकारी सहायता।

नौकरी मिली न कोई सहायता

तिलेश्वरी देवी के पति बिहार रेजिमेंट के लांस नायक फूलेन्द्र उरांव ख्9 नवंबर ख्00क् को जमू-कश्मीर में ऑपरेशन रक्षक के दौरान आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। सिटी के दीपाटोली स्थित गाड़ी होटवार के रहने वाले इस शहीद की फैमिली में उनके बूढ़े मां-बाप के अलावा पत्‍‌नी, एक बेटा और दो बेटियां हैं। इस शहीद परिवार को ाी नौकरी और आर्थिक सहायता देने का वादा केन्द्र और झारांड सरकार ने किया था। लेकिन आर्मी को छोड़कर किसी ने ाी अपना वादा नहीं पूरा किया। उस समय के तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीस ने ाी इस परिवार की सहायता करने का वादा किया था, लेकिन कोई ाी अपना वादा पूरा नहीं किया। शहीद फूलेन्द्र की पत्‍‌नी तिलेश्वरी देवी कहती हैं कि इन क्ब् सालों में उन लोगों की कोई ाोज-ाबर लेने नहीं आया। जब मेरे पति शहीद हुए थे तो नेताओं और अधिकारियों ने ढेर सारे वादे किए थे, लेकिन बाद में कोई झांकने तक नहीं आया कि हम किस हालत में हैं। मैंने बड़ी मुश्किल से अपना घर परिवार चलाया। इसी में अपनी दो बेटियों की शादी की। सास-ससुर की सेवा करने के साथ ही अपने बेटे सूरज कुमार को भी पढ़ा रही हूं। वही हमारी उमीद की आािरी निशानी है। आर्मी के लोग हमारी सहायता करते हैं लेकिन झारांड सरकार और यहां के अधिकारी काी कुछ हेल्प नहीं किए। शहीद फूलेन्द्र उरांव के पिता सोबरन उरांव कहते हैं कि मेरे दो ही बेटे थे। बड़ा बेटा पहले ही मर चुका था, यह छोटा था। बचपन से ही देश सेवा के बारे में सोचता था। इसीलिए आर्मी ज्वाइन किया था। लेकिन ख्9 नवंबर ख्00क् को देश की सेवा करते हुए वह शहीद हो गया। हमें अपने बेट पर गर्व है लेकिन सरकार से नाराजगी है। सरकार शहीद के परिवारों के लिए कुछ नहीं करती है।

मायके में रहने को मजबूर है शहीद की विधवा

9 दिसंबर ख्0क्फ् को जमू-कश्मीर में आतंकवादियों के हमले में हवलदार मनोज कुमार शहीद हो गए थे। उस हमले के वक्त उनकी पत्‍‌नी सुनीता देवी अपने दो बच्चों के साथ रांची के त्रिवेणी पुरम में रहती थी। सरकार की तरफ से उस समय शहीद की पत्‍‌नी को नौकरी और सहायता देने की बात हुई थी लेकिन आर्मी को छोड़कर कोई हेल्प नहीं हुआ। सिर्फ उन्हें आर्मी की तरफ से पेंशन मिल रही है। सुनीता देवी अपने दो बच्चों क्फ् साल की बेटी अंजली और क्0 साल के बेटे यशराज के साथ अपने मायके जमशेदपुर में रह रही हैं। क्ख्वीं तक की पढ़ाई कर चुकी सुनीता देवी ने कहा कि उनके सामने आर्थिक संकट है। बच्चों को पालने के लिए नौकरी की जरूरत है, लेकिन सरकार उनकी कोई सहायता नहीं कर रही है। उनके परिवार की हाल ाबर लेने की भी काी सरकार ने कोशिश नहीं की।

शहीद संकल्प की पत्नीे को कब मिलेगी नौकरी

जमू-कश्मीर में शहीद हुए लेटिनेंट कर्नल संकल्प शुक्ला की पत्‍‌नी प्रिया शुक्ला को ाी आी तक नौकरी नहीं मिली है। दिसंबर में मुयमंत्री रघुवर दास ने शहीद के परिजनों से मिलने के बाद यह घोषणा की थी कि एक सप्ताह के अंदर शहीद कीे पत्‍‌नी को लेक्चरर की सरकारी नौकरी दी जाएगी। ऐसे में समझा जा सकता है कि झारांड सरकार शहीदों को समान देने में कितनी आगे है।

सीएम के आदेश के बाद ाी जया प्रा महतो को आी तक नहीं मिली नौकरी

ब् जून, ख्00ब् को पांचवीं राष्ट्रीय राइफल बटालियन के लांसनायक राजकुमार महतो जमू-कश्मीर में आतंकियों से मुठोड़ के दौरान शहीद हो गए थे। ऐसे में उनकी पत्‍‌नी और उनके दो बेटे अनाथ हो गए थे। उस समय के मुयमंत्री रहे अर्जुन मुण्डा ने शहीद के परिवार को हर सहायता और नौकरी देने की बात की थी लेकिन इसको पूरा नहीं किया गया। शहीद की विधवा जय प्रा महतो पिछले क्क् साल से नौकरी के लिए सरकार से गुहार लगा रही हैं लेकिन उनको नौकरी नहीं दी जा रही है। आर्मी स्कूल दीपाटोली में टीचर की नौकरी कर रही जया का कहना है कि उनकी शैक्षणिक योग्यता को देाते हुए टीचर की नौकरी दी जाए। इसी साल क्ब् मार्च को झारांड सरकार ने अनुकंपा के आधार पर टीचर की नौकरी देने की घोषणा की। मुयमंत्री रघुवर दास ने राजकुमार महतो की आश्रिता पत्‍‌नी जया प्रा को शिक्षक के पद पर नियुक्ति के लिए मानव संसाधन विकास विाग को आदेश दिया था, लेकिन इस आदेश के बाद ाी आज तक शहीद की विधवा को नौकरी नहीं मिली।