Lucknow: पोस्ट जरी एक्जीक्यूटिव, सैलरी 1200 रियाल, फूडिंग और लाजिंग फ्री का वायदा। लेकिन काम बकरी चराना, ऊंट का गोबर उठाना और पत्थर तोडऩा। यह सब हो रहा है तहसीनगंज स्थित रईस नगर के रहने वाले शमशेर अली के साथ। शमशेर नवम्बर, 2011 को सऊदी अरब गये थे।

जिस दिन से शमशेर की कहानी उनके घरवालों को पता चली है। इस परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। बुजुर्ग बाप एजेंट के घर का चक्कर लगा रहा है तो मां टकटकी लगाये अपने बेटे की वापसी का इंतजार। बहन का भी रो-रो कर बुरा हाल है।

शमशेर ने साथ काम कर रहे हैदराबाद के लड़के अजीम के मोबाइल से घर के मोबाइल पर मिसकाल की। पलट कर जब उस मोबाइल पर बात की गयी तो अली परिवार के पैरों तले जमीन निकल गयी। वह तो यह समझ रहे थे कि उनका बेटा शमशेर सऊदी अरब में लग्जरी लाइफ जी रहा है, लेकिन जब उन्हें पता चला कि शमशेर को बकरी चराने के बाद पत्थर भी तोडऩे पड़ रहे हैं तो मानों उनकी लाइफ में भूकंप आ गया हो।

लाखों की demand

जिस व्यक्ति ने शमशेर के लिए वीजा का प्रबंध किया था, उसका कहना है कि शमशेर को वापस इंडिया बुलाने में कम से कम डेढ़ लाख रुपए और खर्च होंगे तभी शमशेर वापस आ पाएगा। शमशेर की मां हसीन जहां ने बताया कि कुछ समझ में नहीं आ रहा, हमारी कोई मदद नहीं कर रहा, न थाना न पुलिस। हां मोहल्ले वालों ने जरूर मदद की है। रईस नगर के रहने वाले अजमी भाई के मुताबिक इस फैमली में शमशेर ही कमाने वाला था, शमशेर से जब भी बात होती तो वह यही कहता था कि बहन के हाथ पीले करने के साथ-साथ अम्मा और अब्बा को भी किसी बात की तकलीफ नहीं होने देना है।

शमशेर ने अब तक बचाए पैसों में थोड़े पैसे उधार लेकर सऊदी अरब का वीजा जुटाया था। उन्होंने बताया कि वह सऊदी अरब के आभा शहर में रह रहा है। रात में उसके दोस्त के मोबाइल पर फोन कर उससे बात हो सकती है। उसने घर वालों को बताया कि शमशेर को यहां से गये तीन महीने का समय हो गया है, लेकिन अभी तक उसको पत्थर तोडऩे और बकरी चराने के भी पैसे नहीं दिये गये हैं।

ऐसी ही कहानी है गफूर की

ऐसा नहीं है कि सिर्फ शमशेर ही इस तरह की स्थिति से दो चार हो रहा है। लखनऊ में ऐसे कई लोग हैं जो सऊदी अरब गये तो थे किसी और काम से लेकिन उन्हें किसी और काम में लगा दिया गया। बाग मक्का के रहने वाले गफूर ने बताया कि उन्होंने अपनी जिंदगी के ढाई साल ऊंट का गोबर उठाने में बिताए हैं। ज्यादा पैसे कमाने के लालच में इंडिया की खुशहाल लाइफ छोड़कर वह भी सऊदी अरब गये। तीन दिन बाद उन्हें एक ऐसी जगह भेज दिया गया, जिसका मुंह से नाम भी निकालना मुश्किल था। वह ऊंट अस्तबल में सोते थे और उन्हें ऊंटों का सेवक बनाया गया था। ढाई साल बाद उन्हें उस कैद से रिहाई मिल सकी थी।

कफील जमा करा लेते हैं

सऊदी अरब से लौट कर अपना मेडिकल स्टोर चला रहे शकील ने बताया कि एजेंट जिसके पास भेजता है उसे कफील कहते हैं। कफील वहां पहुंच कर सबसे पहले व्यक्ति का पासपोर्ट जमा करा लेता है, उसके बाद उसे काम समझाया जाता है। कफील का मूड सही है तो काम सहीं वर्ना काम गड़बड़।

Free का VISA

सऊदी अरब हो या फिर दुबई। यहां की ज्यादातर कंपनियां फ्री में वीजा निकालती हैं, जिन्हें यह एजेंट खरीद कर आगे महंगे दाम पर सप्लाई कर देते हैं। इस तरह के काम में ज्यादातर कम पड़े लिखे युवकों को टारगेट किया जाता है। कुछ ही दिन पहले मुफ्तीगंज का एक युवक भी सऊदी अरब गया था, लेकिन उसका कोई पता नहीं चल सका। लखनऊ में इस तरह के एक वर्ष में कम से कम एक दर्जन हादसे होते हैं।

यूपी ट्रेवल एजेंट एसोसिएशन के प्रेसीडेंट मोहम्मद शुएब ने बताया कि अवेयरनेस ही बचाव है। इस तरह के केसेज से बचने के लिए कम से कम वीजा मिलने के बाद लोगों को एम्बेसी से सम्पर्क कर उसकी असलियत जाननी चाहिए। आइटा अप्रूवड ट्रेवल एजेंट से ही वीजा और टिकट की डीलिंग करें। उमरा के वीजा पर कतई काम करने न जाएं। फर्जी मेडिकल और फर्जी डाक्यूमेंट के सहारे वीजे के लिए एप्लाई न करें। अक्सर लोग जल्दी के चक्कर में एजेंट के जरिए पासपोर्ट एप्लाई कर देते हैं जो बाद में उनके लिए सिरदर्द साबित होता है।

Reported By: Sabi Haidar