फर्जी जाति प्रमाण पत्र दाखिल करने पर सीआईएसएफ ने ड्राइवर को किया है बर्खास्त

याची का कहना था दाखिल किया, लेकिन जाति प्रमाण पत्र का नहीं लिया लाभ

ALLAHABAD: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र दाखिल करने पर हुई बर्खास्तगी मामले में हस्तक्षेप से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा धोखा व न्याय एक साथ नहीं चल सकते। अपीलीय कोर्ट ने कहा कि याचिका खारिज कर एकल पीठ ने सही किया है। याची को एसटी जाति प्रमाण पत्र दाखिल करने पर बर्खास्त कर दिया गया। डीएम की रिपोर्ट में याची को मुस्लिम नट पिछड़ा वर्ग बताते हुए उसके द्वारा एसटी प्रमाण को फर्जी करार दिया गया।

यह आदेश न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता तथा न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की खण्डपीठ ने सीआईएसएफ के हेडकांस्टेबल, ड्राइवर, जमनिया गाजीपुर के निवासी कौसर अली की अपील पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता गुलाब चन्द्र व भारत सरकार के सहायक सालीसिटर जनरल ज्ञानप्रकाश व भारत सरकार के अधिवक्ता गया प्रसाद सिंह ने बहस की। याची का कहना था कि उसका चयन सामान्य कोर्ट में हुआ है। यदि प्रमाणपत्र फर्जी भी है तो उसकी नियुक्ति प्रमाण पत्र के आधार पर नहीं की गयी है। कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना और कहा कि याची ने तहसीलदार से अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र दाखिल किया। यह सेवा शर्तो का उल्लंघन है। याची 30 अगस्त 1997 में ड्राइवर, हेडकांस्टेबल पद पर नियुक्त हुआ। उसके द्वारा पेश जाति प्रमाण पत्र का डीएम से सत्यापन कराया गया तो पता चला कि प्रमाणपत्र फर्जी है। याची अन्य पिछड़ा वर्ग का है। विभागीय जांच में पूरा मौका दिया गया और बर्खास्त कर दिया गया। अपील व रिवीजन भी खारिज हो गयी। हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। एकल पीठ ने खारिज कर दी जिसे अपील में चुनौती दी गयी थी। कोर्ट ने कहा प्रमाणपत्र दाखिल किया उसका लाभ लिया या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता। सुप्रीमकोर्ट के फैसले के हवाले से कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।