उनके घर के पिछवाड़े वाले खेतों में कभी फ़सल लहलहाया करती थी.

अब इन खेतों की जगह पर जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड कंपनी की कोयला खदानें मौजूद हैं. कोसमपाली-सारसमाल गाँव तीन तरफ़ से  गहरी खदानों से घिर चुका है. बाहर निकलने का सिर्फ़ एक रास्ता मौजूद है लेकिन गाँव वाले कहते हैं कि वो भी कब खदानों में बदल दिया जाए, कहा नहीं जा सकता.

यही हाल पड़ोस के कोडकेल, लिबरा, टेहली रामपुर, डोंगामहुआ, धौंराभांटा और लमदरहा आदि गाँवों का है. ये सभी गाँव आने वाले दिनों में कोयला खदानों से घिरे हुए टापू में तब्दील होने की राह पर हैं.

हालांकि जिंदल स्टील के महाप्रबंधक (जनसंपर्क) डीके भार्गव ने इन आरोपों से इनकार किया है.

उन्होंने बीबीसी से कहा, "गाँव को टापू में तब्दील करने की प्रबंधन की कोई भी मंशा नहीं है. ऐसी कोई भी शिकायत किसी भी ग्रामीण ने किसी भी स्तर एवं मंच पर अभी तक नहीं की है."

कोयला बना अभिशाप

छत्तीसगढ़ में यह जुमला बहुत मशहूर है कि अगर आप किसी इलाक़े में बसना चाहते हैं तो पहले पता लगा लें कि वहां ज़मीन के नीचे कहीं कोयला न हो.

रायगढ़ के कोसमपाली-सारसमाल गाँव के बुजुर्ग भीमराम पटेल भी यही सलाह देते हैं.

भीमराम कई पीढ़ियों से कोसमपाली-सारसमाल गाँव में रहते आए हैं लेकिन उन्हें लगता है कि अब गाँव छोड़ने की बारी आ गई है. कहां जाएंगे, इस सवाल पर वे चुप हो जाते हैं.

असल में तमनार तहसील का कोसमपाली-सारसमाल गाँव इस इलाक़े के उन सैकड़ों गांवों की तरह है जिनके नीचे  कोयला है और जहाँ दिन रात खुदाई चल रही है या खुदाई करने की तैयारी है.

राज्य सरकार के आँकड़ों के मुताबिक़ देश का कुल 17.24 प्रतिशत कोयला भंडार छत्तीसगढ़ में है. राज्य के कोरबा, रायगढ़, कोरिया और सरगुजा ज़िले में 49 हज़ार 280 मिलियन टन कोयला ज़मीन के नीचे है. देश के कोयला उत्पादन में छत्तीसगढ़ हर साल 21 प्रतिशत से अधिक का योगदान करता है.

राज्य में 45.5 प्रतिशत कोयला केवल रायगढ़ ज़िले में है और सैकड़ों कोल खदानें भी, जहां से हर साल हज़ारों की आबादी विस्थापित होती है. अब बारी कोसमपाली-सारसमाल की है.

कोसमपाली गाँव में हमारी मुलाक़ात खेत में काम करते बोधराम मांझी से हुई. उनका कहना है कि कोयले के लिए खुदाई शुरु होने के बाद से अब गाँव से बाहर जाने का रास्ता बंद हो गया है. सारे रास्ते सैकड़ों फ़ीट तक खोद दिये गए हैं. ले-दे के एक रास्ता बचा है. वह भी जाने कब बंद हो जाए.

वादे हैं वादों का क्या

एक गाँव जो खदानों से घिरे टापू में बदल रहा है

साल 2006 में जब गाँव के खेतों को  कोल ब्लॉक के लिए दिए जाने की जानकारी गाँव वालों को हुई तो लोगों ने विरोध किया लेकिन उनका विरोध काम नहीं आया. कंपनी और सरकार का दबाव बढ़ा तो 172 लोगों ने अपनी ज़मीन अलग-अलग क़ीमतों पर कंपनी को बेच दी.

जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड को 964.650 हेक्टेयर की कोयला खदान की लीज़ मिली थी, जिसमें से 209.654 हेक्टेयर ज़मीन कोसमपाली की थी. कोयला उत्खनन से पहले गाँव के लोगों को नौकरी देने, उनका विस्थापन होने की स्थिति में पुनर्वास करने, कंपनी को होने वाले लाभ का कम से कम एक प्रतिशत हिस्सा गाँव और आसपास के विकास में ख़र्च करने जैसे कई वादे किए गए थे, लेकिन गाँव वाले कहते हैं कि उनमें से एक भी वादा पूरा नहीं हुआ.

कोसमपाली के करम सिंह कहते हैं, "जब हमसे ज़मीन ली गई थी तो एसडीओ, जिंदल और ग्रामीणों के बीच हरेक परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का समझौता हुआ था. लेकिन साल भर तक दैनिक मज़दूर के बतौर काम करने के बाद भी मुझे न तो नियुक्ति प्रमाणपत्र मिला और ना ही मुझे स्थाई किया गया. आख़िर में मुझे काम छोड़ना पड़ा."

इसके बाद जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड ने जब  कोयला खनन के काम का विस्तार करने के लिए गाँव वालों को अपने बचे हुए खेत और घर बेचने को कहा तो लोग अड़ गए. उनका कहना था कि खेत और घर जाने के बाद वे जाएंगे कहां और उनका एकमात्र रोज़गार तो खेती है फिर उनकी आजीविका का क्या होगा.

ग्राम सभा का सच

एक गाँव जो खदानों से घिरे टापू में बदल रहा है

यह गाँव अधिसूचित क्षेत्र में आता है जहाँ पंचायत अनुसूची क्षेत्रों का विस्तार अधिनियम यानी पेशा क़ानून लागू है. पेशा क़ानून यानी जो भी होना है, गाँव की ग्राम सभा तय करेगी.

गाँव के लोग इसी बात पर ख़ुश थे कि बिना ग्राम सभा की अनुमति के तो जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड खुदाई कर ही नहीं सकती. लेकिन गाँव के एक नौजवान शिवपाल भगत ने दो दिसंबर 2011 को आरटीआई क़ानून के तहत कुछ दस्तावेज़ हासिल किए तो गाँव के लोग चौंक गए.

इन दस्तावेज़ों के अनुसार गाँव के सरपंच के नाम से 24 अक्टूबर 2008 को ग्राम सभा होने और जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड को खनन के लिए गाँव की ज़मीन देने संबधी निर्णय की सूचना दी गई थी.

सरपंच गोमती सिदार का सारा कामधाम उनके पति सालिक राम देखते हैं. ग्राम सभा के बारे में पूछे जाने पर गोमती सिदार अपने पति से पूछने की बात कहती हैं और उनके पति सालिक राम कहते हैं, "जहां तक याद पड़ता है, जिंदल के खनन को लेकर तो कभी कोई ग्राम सभा नहीं हुई है."

ग्राम सभा के दस्तावेज़ के बाद गाँव के लोगों ने आनन-फ़ानन में बैठक बुलाई और फिर इस मामले में फ़र्जी़ दस्तावेज़ तैयार किए जाने संबंधी एक एफ़आईआर दर्ज कराई गई.

पुलिस प्रशासन और  औद्योगिक घरानों से लड़ाई आसान नहीं थी. यही कारण है कि लोगों ने हार मान ली. एक-एक कर दो दर्जन लोगों ने अपने बचे हुये खेत और घर बेचना शुरु किया और फिर हमेशा-हमेशा के लिए यहां से चले गए.

जिंदल की ओर से प्रशासन ने दूसरे दौर में एक बार फिर 31 परिवारों को कोसमपाली की बची हुई ज़मीन देने के लिए नोटिस जारी किया. लेकिन गाँव के लोग अपनी बची हुई ज़मीन देने के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे लोगों ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में मामला दायर किया है जिस पर अभी सुनवाई होनी है.

हाईकोर्ट का रास्ता

एक गाँव जो खदानों से घिरे टापू में बदल रहा है

कोसमपाली गाँव के करम सिंह के परिवार में कुल 22 सदस्य हैं. 2006 में जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड ने 80 हज़ार रुपए एकड़ के हिसाब से इनकी 25 एकड़ ज़मीन ली थी. जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड ने वायदे के अनुसार आज तक परिवार के किसी भी सदस्य को नौकरी नहीं दी.

जिंदल के डीके भार्गव का दावा है कि जिन 172 परिवारों से ज़मीन ली गई है, उनमें से 62 लोगों को स्थाई नौकरी भी दी गई है. लेकिन गाँव के शिवपाल, कन्हाई पटेल जैसे लोग इन तथ्यों को गलत बताते हैं.

करम सिंह कहते हैं, "हमारे पास खेती के अलावा वनोपज का सहारा था. कोयला के उत्खनन के कारण पड़ोस का जंगल ख़त्म हो गया. कोयला खनन में होने वाले विस्फोटों के कारण हमारे घर के छप्पर उड़ने लगे. दीवारों में दरार पड़ने लगी. शिकायत और विरोध करने पर उलटा हम पर ही अलग-अलग अदालतों और थानों में मुकडदमे ठोक दिए गए."

अब गाँव के लोगों ने अपने विस्थापन के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.

विकास की शर्तें

हाईकोर्ट की वकील सुधा भारद्वाज का कहना है कि कोल ब्लॉक का आवंटन करने से लेकर खनन तक की पूरी प्रक्रिया अवैधानिक है. उनका दावा है कि राज्य के अधिकांश कोल ब्लॉकों का हाल एक जैसा है.

लेकिन जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड के अधिकारी सब कुछ नियम से चलने की बात कहते हैं.

जिंदल के डी के भार्गव कहते हैं, "साधारणत: किसी भी ग्रामीण को कोई विशेष समस्या नहीं है और यदि कोई परेशानी होती भी है तो वे सीधे प्रबंधन से संपर्क कर अपनी समस्याओं का निराकरण करते हैं."

समाजवादी चिंतक और किसान नेता आनंद मिश्रा कहते हैं, "औद्योगिक घरानों और सरकार को छत्तीसगढ़ में काम करने से पहले बहुत सोचना विचारना चाहिये कि आख़िर वे कथित विकास किन शर्तों पर कर रहे हैं. लाखों लोगों को उजाड़ कर चंद औद्योगिक घरानों की कमाई की हवस पर रोक लगनी ही चाहिए."

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