काशीकथा की ओर से आयोजित वर्कशॉप में प्रो। अवधेश प्रधान ने काशी की साहित्यिक परंपरा पर प्रकाश डाला

काशी अपने तीन कवियों कबीर, रैदास और तुलसीदास को सामने रखकर पूरे विश्व साहित्य के सामने खड़ा हो सकता है। पहली बार महाभारत का हिंदी अनुवाद काशी में ही किया गया। ये बातें शुक्रवार को काशीकथा की ओर से चल रहे वर्कशॉप में प्रो। अवधेश प्रधान ने कही। आईआईटी बीएचयू के चल रहे वर्कशॉप में बोलते हुए कहा कि काशी की साहित्यिक परम्परा को भक्ति काल से शुरू हुआ माना जा सकता है। तुलसी ने निर्गुण सगुण, शैव वैष्णव के भेदों को अपने साहित्य में मिटा दिया।

वहीं काशी में जेम्स प्रिंसेप के योगदान की चर्चा करते हएु रामानन्द तिवारी ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम का भाव काशी में ही है। जेम्स प्रिंसेप भी बनारस टकसाल के कार्य के लिए आया था। काशी का पहला नक्शा जेम्स प्रिन्सेप ने बनाया। पहली बार बनारस की जनगणना, मौसम रिकॉर्ड, ड्रेनेज सिस्टम और विश्वेश्वरगंज के रूप में सुनियोजित बाज़ार जेम्स प्रिंसेप का ही योगदान है। साथ ही जेम्स प्रिंसेप के बनारस में किए गए कायरें पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री भी दिखायी गयी।

कार्यक्रम की अध्यक्ष्ता प्रो। एसएन उपाध्याय ने की। संचालन डॉ। अवधेश दीक्षित व धन्यवाद सुजीत चौबे ने दिया। इस मौके पर आचार्य योगेंद्र, डॉ। विकास सिंह, बलराम यादव, गोपेश पांडेय, दीपक तिवारी, अभिषेक यादव, अरविंद मिश्रा आदि मौजूद रहे।