जिला अस्पताल में लागू हुई कोड लैंग्वेज, हर खतरे के लिए अलग रंग
हादसे के वक्त कोड में देनी होगी सूचना, स्टाफ को दी ट्रेनिंग, मरीजों की सुरक्षा को देखते हुए उठाया कदम
Meerut। किसी अनहोनी या दुर्घटना के दौरान मरीजों को पैनिक से बचाने के लिए प्यारेलाल जिला अस्पताल में अब कोड लैंग्वेज का प्रयोग किया जाएगा। एनएबीएच मानकों के तहत अस्पताल प्रशासन ने इस नियम को अपने यहां लागू कर लिया है। अभी फिलहाल तीन कोड को ही अस्पताल में लागू किया गया है। अधिकारी और स्टॉफ तय कोड में एक-दूसरे को सूचना देंगे।
मरीजों में नहीं होगा पैनिक
अस्पताल में इमरजेंसी के दौरान कोड लैंग्वेज का प्रयोग करना होता है ताकि अन्य मरीजों व तीमारदारों के बीच अचानक डर का माहौल पैदा न हो और भगदड़ को रोका जा सके। इन्हीं नियमों के तहत जिला अस्पताल में कोडिंग लैंग्वेज का प्रयोग किया जा रहा है। इसके चलते जहां समय रहते स्थिति को कंट्रोल किया जाएगा वहीं मरीज भी सुरक्षित रहेंगे।
ऐसे किया जाएगा लागू
योजना को लागू करने के लिए अस्पताल प्रशासन ने पहले तीन कोड रेड, पिंक और ब्लू को ही लागू किया है। इसके लिए अलग कोड के लिए अलग डॉक्टर्स व स्टॉफ की टीम बनाई गई हैं। टीम के सभी सदस्यों को कलर कोडिंग का प्रयोग करने की ट्रेनिंग भी दी गई है। उदाहरण के तौर पर अगर अस्पताल में अचानक बच्चा गुम हो जाता है तो कोड पिंक-टीम इमरजेंसी को तुरंत सूचित किया जाएगा। कोड पिंक सुनते ही टीम व अस्पताल प्रशासन समझ जाएगा कि बच्चा गुम हुआ है और पैनल पर मौजूद स्टॉफ प्रभावित स्थल पर पहुंचेगा .जिसके बाद बिना शोर-शराबे के पैनल टीम बच्चे की तलाश करेगी ताकि अफरा-तफरी न मचे ।
12 कोड में तीन लागू
मानकों के हिसाब से अस्पताल में 12 कोड लागू किए जाएंगे। अभी फिलहाल तीन इमरजेंसी कोड ही लागू किए गए हैं। अन्य कोड के लिए अभी पैनल तैयार किया जा रहा है। ट्रेनिंग के बाद ही इन्हें लागू किया जा सकेगा।
ये कोड लागू
कोड रेड - आग लगने की स्थिति में
कोड ब्लू -एडल्ट कार्डियक अरेस्ट
पिंक - बच्चा चोरी हो जाने की स्थिति में
इन कोड का इंतजार
कोड ब्लैक -चिकित्सालय में बम होने की स्थिति में
कोड ब्राउन - हैजार्ड स्पिल
कोड ग्रीन- इवाक्यूएशन
कोड ग्रे- लॉस ऑफ एसेंशियल सर्विस
कोड आरेंज- एक्सट्रनल डिजास्टर
कोड पर्पल - होस्टेज टेकिंग, पर्सन विद वेपन
कोड व्हाइट - वॉयलेंट पेशेंट
कोड येलो-मिसिंग पेशेंट
कोड अंबर - पिडियाट्रिक कार्डियक अरेस्ट
इमरजेंसी की स्थिति में भगदड़ होती है तो मरीजों व तीमारदारों को नुकसान हो सकता है। इस तरह से पैनिक से बचा जाएं इसलिए ही कोड सिस्टम लागू किया गया है।
डॉ। बीपी कल्यानी, नोडल इंजार्च, कायाकल्प