-उत्तराखंड हाई कोर्ट का अहम फैसला, प्रिंटर उपलब्ध होने तक कैपिटल लेटर में लिखा जाए प्रेस्क्रिप्शन

-हिमालयन मेडिकल कॉलेज जौलीग्रांट व सिनर्जी हॉस्टिपल की अस्पतालों में जांच की दरें समान करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज

- सरकारी व निजी डॉक्टरों को सख्त निर्देश, सिर्फ जेनेरिक दवा लिखी जाएं पेशेंट्स को

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नैनीताल: हाई कोर्ट ने राज्य के सरकारी व निजी अस्पतालों के डॉक्टर्स को मरीज की पर्ची में कंप्यूटर से दवा व बीमारी का नाम अंकित करने का अहम आदेश पारित किया है। जिससे आम मरीज बीमारी व दवा के बारे में आसानी से जानकारी ले सके। कोर्ट ने प्रत्येक डॉक्टर को कंप्यूटर व प्रिंटर उपलब्ध होने तक दवा का नाम अंग्रेजी के कैपिटल लेटर में अंकित करने को कहा है। साथ ही अस्पतालों में जांच की दरें समान करने व जेनेरिक दवाएं ही दिए जाने संबंधित आदेश को चुनौती देती याचिकाएं खारिज कर दी।

लिखनी होगी जेनेरिक दवा

हिमालयन मेडिकल कॉलेज जौलीग्रांट, सिनर्जी हॉस्पिटल की ओर से हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। जिसमें 14 अगस्त को पारित आदेश पर पुनर्विचार करने की प्रार्थना की गई थी। इस आदेश में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के विपरीत संचालित अस्पतालों को बंद करने के निर्देश दिए थे। शुक्रवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ के समक्ष पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए सरकारी व प्राइवेट डॉक्टरों को निर्देश दिए कि मरीजों की पर्ची में बीमारी का नाम व दवा कंप्यूटर प्रिंटेड हों। खंडपीठ ने पुनर्विचार याचिका में जेनेरिक से दूसरी दवा अंकित करने के आग्रह को भी नामंजूर करते हुए ब्रांडेड के बजाय जेनेरिक दवा लिखने के निर्देश दिए।

सरकारी अस्पतालों को थोड़ी मोहलत

सुनवाई के दौरान सरकारी अधिवक्ता द्वारा बताया गया कि राज्य के सभी चिकित्सकों को कंप्यूटर प्रिंटर आदि उपलब्ध कराया जाना संभव नहीं है, लिहाजा उनको समय दिया जाए। इस तर्क से सहमत होते हुए कोर्ट ने कहा कि इसे प्रभावी करने में कम से कम समय लिया जाए। पूर्व में कोर्ट ने प्रदेश में अवैध ढंग से संचालित अस्पतालों को सील करने व मेडिकल जांच व परीक्षणों के दाम तय करने को कहा था। बाजपुर निवासी अख्तर मलिक की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने हैरानी जताई थी कि बाजपुर दोराहा स्थित बीडी अस्पताल, केलाखेड़ा स्थित पब्लिक हॉस्पिटल के खिलाफ कोई कार्रवाई अमल में नहंी लाई गई।

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हाई कोर्ट का ऑर्डर अभी पहुंचा नहीं है। ऑर्डर का पहले अध्ययन किया जाएगा। इसके बाद आदेश को क्रियान्वित कराया जाएगा।

डॉ। टीसी पंत, डीजी हेल्थ

आईएमए का कहना

हाई कोर्ट के आदेश के बाद आईएमए ने इस फैसले को बारीकी से समझने की बात कही है। आईएमए का कहना है कि पहले इस फैसले के आदेश की कॉपी को देखना होगा। उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है। हालांकि आईएमए का ये भी कहना है कि उत्तराखंड में कई जगह बिजली और कनेक्टिविटी नहीं है ऐसे में कम्प्यूटराइज्ड प्रेस्क्रिप्शन में व्यावहारिक दिक्कतें सामने आएंगी। साथ ही हर जगह कम्प्यूटर ले जाना भी संभव नहीं है।