आद्री के सेमिनार में सीएमसी वेल्लोर के विशेषज्ञ हुए शामिल

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PATNA : पूरी छानबीन के बिना लीची खाने से बच्चों की मौत को जोड़ना भ्रामक होगा। जब तक हम बच्चों की पोषण संबंधी स्थिति पर विचार नहीं करते, ऐसा कोई नतीजा निकालना उचित नहीं है। यह बातें क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी), वेल्लोर के विशेषज्ञ प्रो। डॉ टी जैकब जान ने बुधवार को कही। उन्होंने बताया कि खुद उन्होंने इस मामले में गहन रिसर्च किया है। बच्चों के रक्तमें लीची खाने का कोई नकारात्मक असर नहीं मिला है। खासकर वैसे बच्चों पर जिनकी पोषण स्थिति बेहतर थी। वह मुजफ्फरपुर और उसके आसपास बच्चों की होने वाली रहस्यमय मौत को लीची खाने से जोड़े जाने पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे।

किसी लैब में नहीं हुई पुष्टि

उन्होंने कहा कि बच्चों की मौत के संबंध में यह भी कहा जाता रहा है कि लीची खाने से ये 'इंसेफ्लायटिस' के शिकार हो जाते हैं और इस कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। हालांकि इसकी पुष्टि अबतक किसी भी लैब ने नहीं की है। एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) में सेंटर फार हेल्थ पालिसी द्वारा आयोजित 'हाइपोग्लाइसिमि एनसेफे लापैथी' पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए डॉ। जान ने साक्ष्य आधारित अन्वेषण पर जोर दिया।

समन्वय बनाकर करें काम

उन्होंने कहा कि जब महामारी फैलने की आशंका हो तब यह और भी जरूरी हो जाता है। डॉ। जान ने कहा कि चिकित्सा, विज्ञान, मनोविज्ञान और महामारी विज्ञान को आपस में समन्वय बनाकर काम करना चाहिए। आरंभ में आद्री के निदेशक डॉ। पीपी घोष ने सभी का स्वागत किया। सेमिनार में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों, चिकित्सकों एवं आइजीआइएमएस, पीएमसीएच, एनएमसीएच, गया स्थित एएनएमसीएच, आइएमए, केयर, यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ और पीएफआइ आदि के प्रतिनिधियों ने भी पार्टिसिपेट किया।