-रोडवेज बसों से निकलने वाले धुएं की नहीं हो रही जांच

-अपनी लाइफ पूरी कर चुकीं रोडवेज की सौ से अधिक बसें उगल रहीं जहर

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एयर पॉल्यूशन का लेवल शहर में इतना बढ़ा कि खेतों में पराली जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। जलाते हुए यदि कोई पकड़ा गया तो पंद्रह हजार रुपये तक जुर्माना भी ठोकने की चेतावनी दी गयी है। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के लेटर पर डीएम ने निगरानी का काम समस्त एसडीएम व बीडीओ को सौंपा है। मगर जहर उगलती रोडवेज बसों पर किसी का ध्यान नहीं है। बनारस डीपो से संचालित होने वाली सौ से अधिक बसों की उम्र पूरी हो चुकी है फिर भी सड़कों पर दौड़ रही हैं। इनसे निकलने वाला धुआं बनारस की आबोहवा में जहर घोल रहा है। कहने को रीजनल वर्कशॉप कैंट में धुंए को जांचने के लिए स्मोक मीटर भी दिया गया है लेकिन उसका उपयोग ना के बराबर ही होता है। कंडम हो चुकी रोडवेज की बसों से निकलने वाले धुंए से पॉल्यूशन का लेवल सिटी में लगातार चढ़ रहा है। इसके चलते बीएचयू सहित प्राइवेट हॉस्पिटल्स में हर रोज सांस के मरीजों की संख्या बढ़ रही है।

सिटी ट्रांसपोर्ट की 70 बसें है कंडम

रीजनल वर्कशॉप कैंट के अधिकारियों की मानें तो बसों से निकलने वाले धुंए की जांच समय समय पर की जाती है। लेकिन जांचने वाले कर्मचारियों ने दबी जुबान से नकारा भी है। उन्हें याद ही नहीं है कि उन्होंने धुंए की जांच कब की थी। काशी डिपो में तो वह भी नहीं होता। सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज की 130 बसों में से 70 बसें कंडम हो गई है। जिनके धुएं की जांच कभी नहीं हुई और यह बसें सड़क पर दौड़ रही हैं। काशी डिपो और महानगर कैंट डिपो में कुछ बसें खड़ी भी हैं। वहीं रोडवेज की लांग रूट पर चलने वाली लगभग 30 बसों की भी उम्र पूरी हो चुकी है।

धूल फांक रहा स्मोक मीटर

करीब साल भर पहले हेडक्वार्टर से रीजनल वर्कशॉप को 70 हजार रुपये कीमत का एक स्मोक मीटर मिला है। बताने वाले कहते हैं कि आने के बाद से ही स्मोक मीटर धूल फांक रहा है। यही वजह है कि रोडवेज के पास यह आंकड़ा भी नहीं है कि उनकी बसें कितना प्रदूषण फैला रही है।

एक नजर

512

से अधिक है बनारस रीजन में बसें

08

डिपो हैं बनारस रीजन में

130

सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज में है बस

70

बस काशी डिपो के हवाले

60

बस कैंट डिपो के जिम्मे

70

बस हो चुकी हैं कंडम

30

बस लांग रूट की हुई कंडम

12-15

बसें वर्कशॉप में हैं खड़ी

दमा, सीओपीडी, एलर्जी व फेफड़े की अन्य बीमारियों का मुख्य कारण एयर पॉल्यूशन है। बनारस की हवा में दो से तीन घंटे चलने पर फेफड़ों की कार्य क्षमता में 20 से 25 परसेंट की गिरावट आ रही है। डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषित शहरों में बनारस का स्थान तीसरे नंबर पर है।

डॉ। एसके पाठक, चेस्ट स्पेशलिस्ट

बे्रथ ईजी टीबी चेस्ट केयर हॉस्पिटल, अस्सी

वातावरण में प्रदूषण ज्यादा होने के कारण सीओपीडी के मरीजों में तेजी से इजाफा हुआ है। सीओपीडी में पेशेंट को मेन तकलीफ खांसी, सांस फूलना व कफ बनना होता है। सिटी में एयर पॉल्यूशन इतना बढ़ा है कि सांस मरीजों की संख्या बढ़ गई है। वाहनों से निकलते धुंए पॉल्यूशन को बढ़ाने में सहायक साबित हो रहे हैं।

डॉ। एसके अग्रवाल, चेस्ट स्पेशलिस्ट बीएचयू

समय समय पर बसों से निकलने वाले धुंए की जांच स्मोक मीटर के जरिए की जाती है। यह भी है कि कुछ बसें कंडम हो गई हैं।

केपी सिंह, एसएम

रिजनल वर्कशॉप कैंट