-देवोत्थान एकादशी पर श्रद्धालुओं ने तुलसी विवाह कर पर्व की परंपरा का किया निर्वाह

-गंगा घाटों पर उमड़ी आस्थावानों की भीड़, स्नान कर अपने आराध्य का दर्शन कर लिया आशीर्वाद

VARANASI

देव प्रबोधनी एकादशी पर सोमवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगा कर पुण्य बटोरा। गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु विभिन्न मंदिरों में गये और अपने आराध्य के आगे शीश नवाकर आशीर्वाद प्राप्त किया। ं इसी दिन तुलसी विवाह की भी मान्यता है। इसी मान्यता की पूर्ति में महिलाओं ने घाटों व घरों में गन्ने का पंडाल बनाया और तुलसी विवाह संपन्न किया।

स्नान कर किया दान

गंगा में स्नान करने को सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ गंगा घाटों पर उमड़ने लगी थी। दशाश्वमेध से लगायत अहिल्याबाई घाट, भैंसासुर, मीरघाट आदि स्थानों पर लोगों ने पुण्य की डुबकी लगायी। लोगों ने यथाशक्ति दान भी दिया। वैसे तो कार्तिक माह भर गंगा स्नान की मान्यता है। जो श्रद्धालु पूरे महीने गंगा स्नान नहीं कर पाते वे देवोत्थान एकादशी प्रबोधनी के दिन स्नान कर पुण्य के भागी बनते हैं।

खूब बिका गन्ना

गंगा के घाटों पर तुलसी विवाह का कार्यक्रम भी हुआ। महिलाओं ने गन्ने का मंडप बनाया और हल्दी लेप कर तुलसी विवाह की परंपरा का निर्वाह किया। महिलाओं के सुमधुर लोकगीतों के स्वरों से गंगा तट गुंजायमान होता रहा। लक्सा, चेतगंज, गोदौलिया, दशाश्वमेध आदि इलाकों में गन्ने की बिक्री खूब हुई। डिमांड के चलते एक गन्ना 20 से 30 रुपये तक का बिका।

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मंगल कार्यो के लिए करना हाेगा इंतजार

श्रीहरि के नींद से जागने के साथ ही मांगलिक कार्यो की शुरुआत हो जाती है। पर इस बार विवाह आदि शुभ कार्यो के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा। इसका कारण बन रहे हैं गुरु और शुक्र। गुरु-शुक्र अस्त होने के कारण उन्हें इसके लिए कुछ और दिन इंतजार करना होगा। ज्योतिषाचार्य पं। ऋषि द्विवेदी के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चार मास प्रभु श्रीहरि क्षीर सागर में शयन करते हैं। इस दौरान सभी तरह के शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। प्रबोधनी एकादशी के साथ ही प्रभु का जागरण होता है और शुभ कार्य भी शुरू हो जाते हैं। लेकिन इस बार हरि प्रबोधिनी एकादशी गुरु अस्त में होगी तो दो नवंबर को भगवान भास्कर के साथ गुरु व शुक्र दोनों तुला राशि में होंगे। दोनों ग्रहों के अस्त होने से शुभ कार्य 19 नवंबर से शुरू होंगे।