- बुआ का प्रोत्साहन पाकर गायिकी को बनाया अपना करियर

- संगीत की शिक्षा के लिए मॉरिश कालेज में लिया था दाखिला

- शुरुआती दौर में सिर्फ इस्लामी गीत ही गाते थे, फिर मिलने लगी मंजिल

LUCKNOW: पितृपक्ष के चौथे दिन आई नेक्स्ट गायकी की दुनिया में सम्मान से याद किए जाने गायक तलत महमूद को श्रद्धासुमन अर्पित करेगा। उनका जनम ख्ब् फरवरी क्9ख्ब् को लखनऊ में हुआ था। वे अपनी माता तथा गायक पिता की छठी संतान थे। उनके पिता अपनी आवाज को अल्लाह का दिया गला कहकर अल्लाह को ही समर्पित करने भर की इच्छा रखते थे और केवल नाते कहलाए जाने वाले इस्लामिक धार्मिक गीत गाते थे। बचपन में तलत ने अपने पिता की नकल करने की कोशिश की जिसका घर में ज्यादा समर्थन नहीं मिला। उनकी एक बुआ उनको सुनती थीं और प्रोत्साहन देती थीं। उन्होंने ही अपनी जिद पर किशोरवय तलत को संगीत की शिक्षा के लिए मॉरिश कालेज में दाखिल भी करवा दिया।

दिखने लगी मंजिल

सोलह साल की उम्र में तलत को कमल दासगुप्ता का गीत सब दिन एक समान नहीं गाने का मौका मिला। यह गीत प्रसारित होने के बाद लखनऊ में बहुत लोकप्रिय हुआ। लगभग एक साल के भीतर प्रसिद्ध संगीत रिकॉर्डिंग कम्पनी एचएमवी की टीम कलकत्ता से लखनऊ आई और पहले उनके दो गाने रिकॉर्ड किये गए। उनके चलने के बाद तलत के चार और गाने रिकॉर्ड किए गए जिसमें गजल तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी भी शामिल थी। यह गजल बहुत पसन्द की गई और बाद में एक फिल्म में शामिल भी की गई।

बनना चाहते थे अभिनेता

दूसरे विश्वयुद्ध के समय उन दिनों में पाश्‌र्र्व गायन का शुरुआती दौर था। अधिकतर अभिनेता अपने गाने खुद गाते थे। कुंदन लाल सहगल की लोकप्रियता से प्रेरित होकर तलत भी गायक अभिनेता बनने के लिए सन क्9ब्ब् में कलकत्ता जा पहुंचे, जो उस समय इन गतिविधियों का प्रधान केन्द्र था। लगभग उसी समय जब कुन्दन लाल सहगल कलकत्ता छोड़कर मुंबई गए थे। कलकत्ता में संघर्ष के बीच तलत की शुरुआत बांग्ला गीत गाने से हुई। रिकार्डिग कंपनी ने गायक के रूप में उनको तपन कुमार नाम से गवाया। तपन कुमार के गाए सौ से ऊपर गीत रिकॉर्डो में आए। न्यू थियेटर्स ने क्9ब्भ् में बनी राजलक्ष्मी में तलत को नायक बनाया। संगीतकार राबिन चटर्जी के निर्देशन में इस फिल्म में उनके गाए जागो मुसाफिर जागो ने भरपूर सराहना बटोरी। उत्साहित होकर वे मुंबई जाकर अनिल विश्वास से मिले। अनिल दा ने यह कहकर लौटा दिया कि अभिनेता बनने के लिए वे बहुत दुबले हैं। बदन पर चरबी चढ़ाकर आने की नसीहत के साथ तलत वापस कलकत्ता चले गए। जहां उन्हें क्9ब्9 तक कुल दो फिल्में ही और मिलीं। कलकत्ता में काम ढीला देखकर वे फिर से मुंबई पहुंच गए।

अबकी बार अनिल विश्वास ने उन्हें फिल्मिस्तान स्टूडियो की फिल्म आरजू में परदे के पीछे से गाने का मौका दिया। दिलीप कुमार के उपर फिल्माया गया गीत ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल हिट हो गया और तलत की कंपकपाती आवाज संगीतकारों की निगाह में जम गई। लगभग इसी समय संगीतकार नौशाद अपने लिए एक चहेते गायक की तलाश में थे। शंकर- जयकिशन की फिल्म बरसात के हिट होने की वजह से नौशाद शंकर- जयकिशन को संगीत के क्षेत्र में अपना प्रतिद्वन्दी मानते थे और गायक मुकेश को शंकर- जयकिशन के खेमे का आदमी। रफी या मन्ना डे पर तब तक उनकी निगाह गई नहीं थी अत: तलत को उन्होने अपने लिए गवाने की सोची। क्9भ्0 में बाबुल के लिए तलत को एक बार फिर दिलीप कुमार के लिए उन्हें गाने का मौका मिला । इस बार नौशाद के हाथों। इसी फिल्म का गीत मिलते ही आंखें दिल हुआ दीवाना किसी का हिट हुआ और तलत महमूद तथा शमशाद बेगम की आवाज पसन्द की गई। उसी वर्ष तलत ने विभिन्न संगीतकारों की धुनों पर कुल सोलह गाने गाए। उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी।

सेट पर धूम्रपान करने की आदत की वजह से नौशाद ने तलत को नजरअंदाज करना शुरु किया पर दूसरे संगीतकार तलत से कुछ न कुछ गवाते रहे और पचास के दशक के पूर्वार्ध में तलत की आवाज गूंजती रही। गायक के रूप में ख्याति से उन्हें तसल्ली नहीं थी और वे स्वयं को एक सफल और स्थापित अभिनेता के रूप में देखना चाहते थ्रे। बावजूद इस हकीकत के कि वे जितने अच्छे गायक थे। उतने अच्छे अभिनेता नहीं। पर उनकी आवाज़ की लालसा में उन्हें अभिनय का मौका भी दिया जाने लगा।

अभिनय से हासिल कुछ ख़ास न होने और बदले में गायन में बहुत कुछ गंवाने का एहसास तलत को सन क्9भ्8 में बनी सोने की चिडि़या से हुआ। उर्दू की प्रसिद्ध लेखिका इस्मत चुगताई की कहानी पर अभिनेत्री नरगिस के जीवन की छाप थी। इस्मत चुगताई के शौहर शहीद लतीफ निर्मात- निर्देशक थे। नायिका नूतन और उसके सामने दो नायकों में एक बलराज साहनी और दूसरे तलत महमूद। संगीतकार ओ पी नैयर ने जि़द पकड़ ली थी कि तलत पर फिल्मा जानेवाले गाने को रफी से गवाएंगे। अंत में वह गाना तलत स्वयं तभी गा पाए् जब उन्होंने फि़ल्म का काम बीच में ही छोड़ देने की धमकी दी।

दिखाई राह

उसी समय बिमल राय की मधुमति बन रही थी। जिसमें संगीतकार सलिल चौधरी दिलीप कुमार के लिए तलत की आवाज़ लेना चाहते थे। पर उस समय मुकेश गर्दिश के दौर में थे। तलत ने सलिल चौधरी से कहा कि वे उनकी बजाय मुकेश को काम दें और मधुमति में मुकेश ने दिलीप कुमार के लिए आखिरी बार गाया। फि़ल्म संगीत के जानकार मानते हैं कि उनमें संगीत रचना की अदभुत प्रतिभा थी। अभिनय के चक्कर में पड़ने की बजाय वे तलत महमूद को सन क्9भ्म् में मंच पर कार्यक्रम के लिए दक्षिण अफ्रीका बुलाया गया। इस प्रकार के कार्यक्रम के लिए भारत से किसी फिल्मी कलाकार के जाने का यह पहला अवसर था। तलत महमूद का कार्यक्रम इतना सफल रहा कि दक्षिण अफ्रीका के अनेक नगरों में उनके कुल मिलाकर बाइस कार्यक्रम हुए। फिर विदेशों में भारतीय फिल्मी कलाकारों के मंच कार्यक्रमों का सिलसिला चल पड़ा। तलत महमूद इन कार्यक्रमों में लगातार व्यस्त रहे। फिल्मी दुनिया से अवकाश मिलने के बाद तो देश- विदेश में आए दिन महमूद नाइट्स होने लगी। उनकी आमदनी के कारण तलत महमूद को आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ा तथापि फिल्मों में गाने से दूर हो जाने का मलाल उन्हें बराबर सालता रहा। उस समय तक कि जब तक पक्षाघात के कारण वे गाने में असमर्थ नहीं हो गए। ख्00 फिल्मों में उनके लगभग पांच सौ और कोई ख्भ्0 गैर फिल्मी गाने हैं। क्9म्ख् में उन्होंने पाकिस्तानी फिल्म चिराग जलता रहा संगीतकार निहाल मोहम्मद के लिए दो गाने गाए। 9 मई क्998 को तलत महमूद अपनी नश्वर काया छोड़कर चले गए।

पूरा नाम तलत महमूद

अन्य नाम तपन कुमार

जन्म ख्ब् फरवरी, क्9ख्ब्

जन्मभूमि लखनऊ

मृत्यु 9 मई, क्998

मृत्यु स्थान मुंबई

अविभावक मंजूर महमूद

संतान खालिद महमूद

कर्मभूमि मुंबई, कोलकाता

कर्मक्षेत्र गायक तथा अभिनेता

मुख्य फिल्में 'मालिक', 'सोने की चिडि़या', 'एक गांव की कहानी', 'दीवाली की रात', 'रफ्तार', 'डाक बाबू', 'वारिस', 'दिल-ए-नादान', 'तुम और मैं', 'राजलक्ष्मी'

पुरस्कार/उपाधि 'पद्मभूषण' (क्99ख्)

प्रसिद्धि गजल गायक

विशेष योगदान 'गजल' गायकी को श्रेष्ठता व सम्मान दिलाने में आपका ख़ास योगदान था।

आखिरी फिल्म 'जहांआरा'

प्रसिद्ध नगमें

जाएं तो जाएं कहां टैक्सी ड्राइवर

सब कुछ लुटा के होश एक साल

फिर वही शाम, वही गम जहांआरा

मेरा करार ले जा आशियाना

शाम-ए-गम की कसम फुटपाथ

हमसे आया न गया देख कबीरा रोया

प्यार पर बस तो नहीं सोने की चिडि़या

जि़ंदगी देने वाले सुन दिल-ए-नादान

अंधे जहान के अंधे रास्ते पतिता

इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा छाया

आहा रिमझिम के ये उसने कहा था

दिले नादां तुझे हुआ क्या है मिर्जा गालिब

सम्मान तथा पुरस्कार

'पद्मभूषण' क्99ख्

राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान क्99भ्-क्99म्