उनसे मिलते ही लखनऊ के तहजीबशुदा दौर की याद आने लगती है. अपने इल्म और तहजीब की बिना पर वह अपना अलग वजूद रखते हैं. आप हैं नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला साहब. इनके एंटीक के नायाब कलेक्शन की दीवानगी बालीवुड की फिल्मों और TV Serials  में भी महसूस की जाती है. अवधी आर्किटेक्चर पर बेस्ड पानदान, खासदान, हुक्के, सिल्फची, गगरियां, सीनियां, पान की डिबिया, गुलाब पाश और शमादान के collection को देखने के लिए नवाब साहब के जाफर कम्पाउंड में देश विदेश से लोग आते हैं.

शांत वातावरण में कभी कभी चिडिय़ों का चहचहाना सुनाई दे रहा था. ड्योढ़ी पर लगी कॉल बेल बजाने के बाद आवाज आई, कौन साहब तशरीफ लाए हैं? बरबस ही उस तहजीबशुदा दौर की याद आने लगती है जिसके किस्से कहानियां अब सिर्फ किताबों में पढऩे को मिलते हैं. बात हो रही है एक ऐसे शख्स की जो लखनऊ में अपने एंटीक के नायाब कलेक्शन के साथ, इल्म और तहजीब की बिना पर अपना अलग वजूद रखते हैं यानी नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला साहब.

मशहूर है जाफर कम्पाउंड

रूमी गेट से बमुश्किल एक किलोमीटर का सफर तय करने के बाद दुर्गा देवी मार्ग स्थित जाफर कम्पाउंड है. यहां रहते हैं नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला. इनके पास नवाबी दौर का वह नायाब कलेक्शन है जिसे देखने के लिए मुल्क ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं. नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला का एंटीक कलेक्शन जमा करने की फिलासफी उनके इस बयान से साफ जाहिर होती है. उनका मानना है कि जरूरी यह नहीं कि तुम्हें विरासत में क्या मिला बल्कि जरूरी यह है कि तुम विरासत में क्या छोड़ कर गये. एंटीक कलेक्शन का शौक तो इन्हें अपने पुरखों से मिला है.

शानदार और नायाब चीजों का collection

इनके अब्बा हुजूर नवाब अलहाज मीर अब्दुल्ला और दादा हुजूर नवाब सैय्यद अख्तर नवाब साहब से मिले सामान को इन्होंने न सिर्फ सहेज कर रखा बल्कि उनके जरिए पहुंची अमानतों में इजाफा भी किया है. आज इनके पास कापर के अवधी आर्किटेक्चर पर बेस्ड पानदान, खासदान, लुआबदान, हुक्के, सिल्फची, लोटे, गगरियां, सीनियां, पान की डिबिया, गुलाब पाश, शमादान की सभी रेंज अवलेबल हैं. इसके अलावा इनके पास झाड़ फानूस, छाबे, हांडियां, चेन होजी, हैंगिंग, मिनिएचर, ग्रामोफोन, कारचोबी पैनल के साथ ऐसी बहुत सी खास चीजें हैं जो नवाबीने-अवध के शाही दौर की याद दिलाती हैं.

है जिस पर नाज

नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला के पास वैसे तो नायाब चीजों की कमी नहीं लेकिन इनके पास नवाब वाजिद अली शाह के मामू मुमताजुददौला बहादुर का चिकन का अंगरखा है जिस पर इन्हें नाज है. उनके मुताबिक इस अंगरखे पर चिकन का दो रूखा काम है, यह ढाके की मलमल पर पर बना है, इस दौर में चिकन कारीगरी का यह शानदार नमूना है. इस अंगरखे को न जाने कितने अवार्ड विनर चिकन के कारीगर देख चुके हैं लेकिन अभी तक यह अंदाजा नहीं लगा सके कि सूई उतरी किधर से है और चढ़ी किधर से. इसके अलावा इनके पास दोग के काम की दो चिकन की टोपियां भी हैं जिसपर तिलरखने की जगह के बराबर भी स्पेस नहीं बचा है जहां कढ़ाई न हुई हो. यह टोपियां इरानी तर्ज की पंचगोशियों गोल टोपी पर आधारित हैं.

रियाद exhibition

वर्ष 2002 में किंग अब्दुल्ला म्युजियम रियाद में इंडियन एंबेसी और सऊदी एंबेसी ने मिलकर ‘कास्टयूम ऑफ इंडिया’ के नाम से एग्जीबिशन का आयोजन किया था जिसमे एज ए प्राइवेट कलेक्टर नवाब साहब ने भी शिरकत की. इस एग्जीबिशन में आरी, जरदोजी, और मुकैश आदि के एंटीक कलेक्शन को दिखाया गया था. लोगों को हैरानी हुई कि टोटल एग्जीबीशन का दस परसेंट से ज्यादा कलेक्शन उनके पास था.

Maintenance matters

जाफर मीर अब्दुल्ला कहते हैं कि एंटीक कलेक्शन रखने में जहां आप के पास कलेक्शन की वैराइटी इम्पोर्टेंट होती है वहीं इनको सहेज कर रखना एक बहुत बड़ी कला है. जितने भी झाड़ फानूस हैं उन्हें साफ सुथरा रखने के लिए एक्सपर्ट हैंड की जरूरत होती है. इसके अलावा मेटल कलेक्शन, बुक्स और दीगर दूसरी चीजों को सहेज कर रखने के लिए उन्हें मॉइश्चर के साथ दूसरी बहुत सी चीजों से बचा कर रखना होता है जिसके लिए समय और पैसे की जरूरत होती है. वह कहते हैं कि एंटीक के शौक की भूख कभी खत्म नहीं होती और इसके लिए जितना भी पैसा हो वह नाकाफी है. इसीलिए अक्सर उन चीजों की अदला बदली हो जाती है जो एक से ज्यादा होती हैं या फिर अगर खास चीज को कोई पंसद कर ले तो उसे बेचा भी जा सकता है.

Collection की धमक Bollywood में

तहजीब की नगरी लखनऊ में जब भी कोई विदेशी मेहमान आता है नवाब साहब का मेहमान जरूर बनता है. वह कहते हैं कि लोग उनसे मिलना, उनसे बात करना और उनका कलेक्शन देखना पंसद करते हैं और बाकायदा उनसे समय लेकर मिलने आते हैं. नवाब साहब टेक्नोलॉजी और हाईटेक एसेसरीज के इस्तेमाल को कतई गलत नहीं ठहराते लेकिन उनके आगे अपनी तहजीब और कल्चर को भूल जाने को गलत मानते हैं. उन्हें अफसोस है कि आज मीर फर्श और सिल्फचियां जैसी चीजें गायब हो रही हैं. लोग इन्हें इस्तेमाल करने से परहेज करते हैं. नवाब साहब के कलेक्शन के बालीवुड से लेकर टीवी सीरियल बनाने वाले तक कायल हैं. जब भी अवध के उस दौर और कल्चर को शूट करना होता है तो उन्हें नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला की याद आती है. यहां उमरावजान से लेकर तनु वेडस मनु समेत सैकड़ों फिल्मों और टीवी सीरियल की शूटिंग हो चुकी है.

अफसोस है

नवाब साहब के पास वैसे तो अल्लाह का दिया सबकुछ है लेकिन नवाब साहब को आज भी हुज्ने अख्तर किताब को हासिल न कर पाने का मलाल है. वैसे तो उनके पास ना जाने कितनी बेशकीमती किताबें हैं लेकिन नवाब वाजिद अली शाह की लिखी ‘कलमी मुअल्ला हुज्ने अख्तर' न होने का सदमा जरूर है. नवाब वाजिद अली शाह जब लखनऊ से कलत्ता जा रहे थे तब उन्होंने इस किताब को लिखा था. इस किताब में नवाब साहब ने अपने चोबदार से लेकर अपने कोचवान और अपने उस्ताद से लेकर अपने बुजुर्गो तक सबको याद किया था. इस में उन्होंने लिखा था कि उन्हें लखनऊ छूटने का कितना गम हैं. इस किताब में नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला के बुजुर्गों का भी जिक्र था.

खास तमन्ना है

नवाब साहब की तमन्ना अकबर की तलवार और इमामों की लिखी किताबों को हासिल करने की है. उन्हें इंतजार है अमेरिका के एक मौलाना साहब के उस वायदे के पूरे होने का जिसमें मौलाना साहब ने नवाब साहब को एक ऐसे पत्थर कि किरच देने का वायदा किया था जिस पत्थर पर इमाम जैनुल आबदीन अ. ने 26 साल तक सजदा किया था.

Report by: Shabi Haider