लोकेश गुप्ता बनारस के ख्यातिनाम पक्के महाल के चौखंभा एरिया में रहते थे। मूलत: गुजराती लोकेश को स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही दो दूनी के चार समझ में आने लगा और एक दिन उन्होंने खुद को बनारसी साड़ी की मंडी गोलघर में पाया। बुनकरों से बनारसी साड़ी लाकर सट्टी में बेचने का यह सिलसिला लम्बे समय तक चलता रहा। कुछ दिन तक परचून का व्यवसाय भी किया। एक दिन उन्हें लगा कि यह सब मैं क्या कर रहा हूं। मुझे तो कुछ और बनना है। ऐसे में सपनों ने हकीकत का जामा पहनना शुरु कर दिया। बीएचयू से बीकॉम और फिर मुम्बई से सीए की डिग्री हासिल करने के दौरान ही ख्वाबों का एक ऐसा ताना बाना बुना जिसका अक्स पूरी तरह से विराट इंफ्राकॉन प्राइवेट लिमिटेड में आज दिखायी देता है। अब जब विजन को एक रूप देने की बात आयी तो लोकेश को अपने शहर बनारस की याद आयी। उन्हें अहसास हुआ कि यार, मैं मकान नहीं घर बनाने की बात कर रहा हूं और मेरा शहर बनारस और मेरे अपने लोग अगर इससे वंचित रह गए तो फिर मेरा लोकेश होना और मेरे कंपनी का नाम विराट होने का कोई मतलब नहीं है।

लोकेश गुप्ता : डायरेक्टर-विराट इंफ्राकॉन प्राइवेट लिमिटेड
चार्टर्ड एकाउंटेंट, प्रोजेक्ट डेवलपर

एक हजार लोगों को दिया आशियाना
एक दिन लोकेश अपना झोला उठा के चले अपनी उस मिट्टी की तरफ जिसने उन्हें जिंदगी बख्शी। उनके कुल खानदान को नाम दिया। जिसकी कमी मुम्बई में वो शिद्दत से महसूस कर रहे थे। लोकेश कहते हैं कि मैं फ्लैट बनाने वाला बिल्डर नहीं हूं। मैं तो अपने शहर के लोगों का घर बनाने का काम करता हूं। घर ऐसा जो ईंट गारे से नहीं संवेदनाओं से बना हो। जहां रिश्तों की अहमियत को समझा जाता हो। जहां की आबो हवा में संस्कारों की खुशबू हो। हमारे लिए घर बनाना बिजनेस नहीं हमारी इबादत है। हमारे लिए हमारा ईमान पहले है और मुनाफा बाद में है। मेरे लिए सामने खड़ा शख्स बायर नहीं हमारी फेमिली का मेम्बर है। ऐसे में हम उससे बिजनेस करने की कैसे सोच सकते हैं। लोकेश कहते हैं कि अब तक मेरी कंपनी ने करीब एक हजार लोगों को उनके सपनों का आशियाना दिया है। लोकेश अपनी सफलताओं के लिए माता तारादेवी गुप्ता, पिता बलदेव दास गुप्ता के अलावा ननिहाल के भी शुक्रगुजार हैं।

लोकेश गुप्‍ता : बड़े सपनों ने दी 'विराट' पहचान

मैं भी समाज को कुछ दूं
लोकेश बताते हैं कि बिजनेस की तरफ मेरा रुझान मेरे नानाजी बृज बिहारी दास जी की ओर से आया.किसी भी एक व्यक्ति के निर्माण में उसके परिवार के साथ-साथ समाज का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। मेरी सोच थी कि मुझे समाज ने जो दिया है मैं उसे साथ-साथ देता भी चलूं। 1997 में मैंने अपने पहले प्रोजेक्ट विराट प्लाजा, रामकटोरा शुरू किया। मेरे काम में मुझे मेरे फादर इन लॉ श्री जगदीश दास का मार्गदर्शन मिला। 50 फ्लैट के इस प्रोजेक्ट के बाद मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आज 1000 से अधिक घर (फ्लैट) बना चुका हूं।

घर जहां पड़ोसी मददगार हों
लोकेश बताते हैं कि घर वो है जहां परिवार को सुरक्षित छोड़ कर आप अपने काम पर जा सकें। यहां पड़ोसी आपका मददगार होता है। यह सीख मुझे अपने परिवार से मिली है। मैं गांव में रहा नहीं लेकिन गांव की संस्कृति से अधिक प्रभावित हूं। बेसिक स्कूलिंग गणेश शिशु सदन बुलानाला से हुई. बीएचयू से बीकॉम करने के बाद मुंबई से चाटर्ड एकाउंटेंसी करने के बाद इस बिजनेस में आया। वाइफ वंदना गुप्ता मेरी कंपनी में डायरेक्टर हैं। बेटी ओजस्वी है जो यूएसए में पढ़ रही है और बेटा प्रकर्ष है जो दून स्कूल का स्टूडेंट है।

सपनों को देते हैं हकीकत की जमीं
लोकेश की पहचान एक प्रोजेक्ट डेवलपर के रूप में भी है। लोकेश अपने बारे में बताते हैं कि आप जिस लोकेश को आज देख रहे हैं उसने बहुत से छोटे-छोटे काम किये हैं। पैसे के लिए नहीं सिर्फ खुद को संतुष्ट करने के लिए. मैंने गद्दियों पर साडिय़ां ले जाकर बेची हैं। परचून का काम भी मैंने किया है। मेरी मां का कहना है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। जिस काम को करने में खुद को संतुष्टि मिले वो काम करना चाहिए.

रेरा’ एक बहुत अच्छा कदम
कंस्ट्रक्शन सेक्टर की बात करें तो लोकेश बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन बिजनेस में लागू नए नियम ‘रेरा’ को एक बहुत ही अच्छा कदम मानते हैं। उनका कहना है कि निश्चित ही यह एक ऐसी कवायद है जिसमें बायर के पैसे की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। इससे बिल्डर्स की साख भी बढ़ी है।

कुछ करने से बनेगी बात
लोकेश अपने शहर को बेहतर बनाने को लेकर भी बहुत संजीदा है। उनका कहना है कि माई सिटी माई प्राइड का पीएम का स्लोगन है। हम उस पर चर्चा तो बहुत करते हैं पर जरुरत कुछ ठोस करने की है। लोकेश शहर को बेहतर बनाने के लिए कुछ पॉइंट्स पर काम भी कर रहे हैं। जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर, ट्रांसपोर्ट, एजुकेशन, सिक्योरिटी, इम्प्लायमेंट, स्पोर्ट्स आदि बातें शामिल हैं।

कुछ कहना है
जमीर को मार कर कोई भी बिजनेस सफल नहीं हो सकता। प्रॉफिट जरूरी है पर इसके साथ ही समाज भी उतना ही जरूरी है। समाज से मिली इज्जत ही आपका मुनाफा है। माता पिता व परिवार से मिले जो अच्छे संस्कार हैं उनको आत्मसात करते हुए काम करें। सफलता आपके पीछे दौड़ते हुए आएगी।

नंद विराट’ में रहेंगे 700 परिवार
लोकेश मंडुआडीह में एक ऐसा प्रोजेक्ट लेकर आ रहे हैं जो अपने आप में खास होगा। लोकेश बताते हैं नंद विराट नाम के इस हाउजिंग प्रोजेक्ट में सात सौ परिवार रहेंगे। इस प्रोजेक्ट में मैंने उन सभी पॉइंट्स को शामिल किया है जिनका जिक्र मैंने पहले किया है। तकरीबन 20 बीघे के इस प्रॉजेक्ट में आज की जरुरत के हिसाब से जितनी सुविधाएं हो सकती हैं उन सबके अलावा एक प्राइमरी स्कूल, एक प्ले ग्राउंड, एक मॉल, एक शापिंग कॉम्पलेक्स, कम्यूनिटी हॉल भी होगा। जो शायद अपनी तरह का पहला टाउनशिप होगा। इसके अलावा यह पूरा टाउनशिप सोलर पॉवर से रोशन होगा। तकरीबन पांच मेगावाट की बिजली उत्पादन के लिए लिए मैंने जगह देख रखी है।

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