-मंडलीय हॉस्पिटल के डायलिसिस यूनिट में बेड व स्टाफ की कमी नहीं हुई पूरी

-यूनिट में पहुंच रहे मरीजों की समय से नहीं हो पा रही है डायलिसिस, लंबी डेट मिलने से हो रहे परेशान

-कर्मचारियों की कमी से सिर्फ एक शिफ्ट ही चल पा रही है यूनिट

सिटी के मंडलीय हॉस्पिटल में बनी डायलिसिस यूनिट में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। यहां न तो पर्याप्त बेड है और न ही कर्मचारी। ऐसे में इस यूनिट में हर मरीज को डायलिसिस का लाभ मिल जाए यह कहना मुश्किल है। बेड और स्टाफ की कमी के चलते यहां डायलिसिस के लिए आने वाले मरीजों को लंबी वेटिंग मिल रही है। इसके पीछे मरीजों की बढ़ती संख्या भी मेन वजह है। यही नहीं इमरजेंसी केस आ जाने पर अन्य मरीजों को और भी आगे की डेट दे दी जा रही है। समस्या यहीं खत्म नहीं होती, आपको यह जानकर हैरानी भी होगी कि जिन मरीजों को डायलिसिस के लिए लंबी डेट दी जाती है। उनमें कुछ ऐसे भी होते हैं कि जब तक उनका नंबर आता है तब तक वह दुनिया छोड़ भी चुके होते हैं। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग इस यूनिट का विस्तार नहीं कर पा रहा है।

इंतजार में तोड़ देते हैं दम

चिकित्सकों की मानें तो इस यूनिट में रोजाना 5 से 8 मरीज डायलिसिस कराने के लिए आते हैं, लेकिन स्टाफ, बेड और मशीनों की कमी की वजह से हर मरीज को यह सुविधा नहीं मिल पाती। ऐसे में उन्हें आगे की डेट दे दी जाती है। अब जिसके पास समय होता है वो तो इंतजार कर लेता है, लेकिन जिनकी कंडीशन वेट करने की नहीं होती है वह मजबूरी में प्राइवेट हॉस्पिटल का सहारा लेते हैं। इसमें भी जो मरीज प्राइवेट हॉस्पिटल का खर्च अफोर्ड नहीं कर पाते वे इंतजार में दम तोड़ देते हैं। बेड और कर्मचारियों की कमी की वजह से फिलहाल ये यूनिट सिर्फ एक शिफ्ट में ही चल रही है।

पहले जिला फिर आते हैं मंडलीय

चिकित्सकों का कहना है कि मंडलीय हॉस्पिटल का डायलिसिस यूनिट सरकारी जरूर है, लेकिन यहां मरीजों से दो बार डायलिसिस कराने के लिए 300 रुपए चार्ज किया जाता है। वहीं जिला अस्पताल में बनी डायलिसिस यूनिट पूरी तरह से फ्री है। इसलिए मरीज पहले यहां पहुंचते हैं, लेकिन इस यूनिट में भी भीड़ की वजह से मरीजों को तारीख दे दी जाती है। अब ऐसे में थक हार कर मरीज के पास जान बचाने के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल ही बचता है।

पीपीपी मॉडल पर है यूनिट

बताया जाता है कि जिला अस्पताल मे डायलिसिस यूनिट को पीपीपी मॉडल पर बनाया गया है। यहां मरीजों को दी जाने वाली डायलिसिस के लिए सरकार की ओर से प्राइवेट संस्था को 1450 रुपए की दर से धनराशि दी जाती है। इस यूनिट की क्षमता मंडलीय हॉस्पिटल के डायलिसिस यूनिट से पांच गुना अधिक है। इसलिए यहां मरीजों की लंबी लाइन लगी रहती है। ऐसा इसलिए भी कि यहां मरीजों को कोई चार्ज नहीं देना होता है। लेकिन यहां भी 40 से 50 मरीज वेटिंग लिस्ट में हमेशा रहते हैं।

एक नजर

मंडलीय हॉस्पिटल डायलिसिस यूनिट

03

बेड की है ये यूनिट

52

मरीजों की जाती है डायलिसिस हर महीने

50 से 60

रहते हैं वेटिंग लिस्ट में

04

मरीजों की डेली की जाती है डायलिसिस

07 से 03

बजे तक चलती है यूनिट

01

चिकित्सक हैं यहां

01

टेक्निशियन

01

वार्ड ब्वॉय

जिला अस्पताल

5

बेड की है यूनिट

20 से 25

मरीजों की डेली की जाती है डायलिसिस डेली

60 से 70

मरीज रहते है वेटिंग में

600

मरीजों की हर माह की जाती है डायलिसिस हर माह

वर्जन--

यहां संसाधन और स्टाफ की संख्या कम होने से हर मरीज को तुरंत डायलिसिस की व्यवस्था नहीं मिल पाती। राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी ने पिछले साल डायलिसिस मशीन लगवाने को कहा था, लेकिन अभी तक लगी नहीं।

डॉ। अरुण कुमार, यूनिट इंचार्ज