-हिमालय के नीचे लगातार बढ़ रहा स्ट्रेस

-देहरादून में हो रही भूकंप रोधी तकनीक की अनदेखी

-कुआंवाला में गिरे रेस्टोरेंट ने खोली तकनीक की पोल

-भविष्य में बड़े भूकंप आने की संभावना जता रहे वैज्ञानिक

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ष्ठश्व॥क्त्रन्ष्ठहृ देहरादून सहित उत्तराखंड के कई जिले मौत के मुहाने पर खडे़ हैं। कारण बडे़ भकंप की आहट है। हिमालय के नीचे लगातार स्ट्रेस बढ़ रही है। जिससे कभी भी बड़े पैमाने पर भूकंप आने की आशंका बन रही है। इससे बचने का एक ही विकल्प भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल है, लेकिन दून सहित पूरे उत्तराखंड में इसकी अनदेखी की जा रही है। वैज्ञानिक भविष्य में नेपाल जैसे भूकंप आने की आशंका जता रहे हैं, क्योंकि इंडियन व यूरेशियन प्लेट के बीच घर्षण अभी रुका नहीं है।

धरती के नीचे दबी है भारी एनर्जी

भू-वैज्ञानिकों की मानें तो नेपाल में भूकंप आने का कारण इंडियन व यूरेशियन प्लेट्स के बीच होने वाले घर्षण से रिलीज होने वाली एनर्जी है। उस समय एनर्जी रिलीज होने का केंद्र नेपाल में था। इन प्लेट्स में अभी भी घर्षण हो रहा है, भारी एनर्जी अभी भी धरती के नीचे दबी हुई है। यदि एनर्जी रिलीज होने का केंद्र उत्तराखंड के आसपास भी रहा तो बड़ी तबाही आ सकती है।

दो से पांच जोन में बटे क्षेत्र

भूकंप के इतिहास को देखते हुए जोन बनाए गए हैं। जहां पर सबसे ज्यादा भूकंप आते हैं, उन्हें उतने ही ज्यादा जोन में रखा जाता है। इसके लिए दो से पांच जोन बनाए गए हैं। वहीं उत्तराचंल और वेस्ट यूपी का काफी बड़ा हिस्सा जोन चार में रखा गया है, जो भूकंप के लिए अति संवेदनशील श्रेणी में आते हैं।

बिल्डिंग गिरी तो खुली सरकारी दावों की पोल

दून में संडे को कुआंवाला में सीएमआईएस नर्सिग कॉलेज के हॉस्टल से सटा बिग बैम्बोज रेस्टोरेंट की तीन मंजिला बिल्डिंग गिर गई थी। इसके गिरने के साथ उन सरकारी दावों की पोल भी खुल गई, जिसके तहत सिटी में बिल्डिंग निर्माण में हो रही तकनीक की निगरानी के दावे किए जाते हैं। जो बिल्डिंग बारिश नहीं झेल पाई, वह भूकंप का बड़ा झटका भला कैसे झेल पाती। देहरादून सिटी की बात करें तो ऐसी सैकड़ों बिल्डिंग हैं, जिनमें घटिया सामग्री का इस्तेमाल व घटिया तकनीक का यूज हुआ है।

1400 स्कूलों के मासूमों पर खतरा

पूरे उत्तराखंड की बात करें तो करीब 1400 सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जो पुराने भवनों में चल रहे हैं। भूकंप की दृष्टि से ऐसे भवन सबसे संवेदनशील हैं। ऐसे में हजारों मासूमों की जिंदगी पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों के दावों के बावजूद इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

भूकंप का नहीं होता पूर्वानुमान

भूकंप इसलिए भी खतरनाक है, क्योंकि अभी तक वैज्ञानिक भूकंप का पूर्वानुमान लगाने में सफल नहीं हुए हैं। केवल इसके लिए संभावना ही जताई जा सकती है। इसका सही आंकलन करना कि कहां, कब भूकंप आएगा, कोई नहीं कर सका है।

सिल्ट पर बने मौत के मकान

भू-वैज्ञानिक भूकंप को लेकर सिल्ट वाले क्षेत्रों को सबसे खतरनाक घोषित कर चुके हैं। देहरादून का साउथ-वेस्ट रेतीली जमीन है। इसके अलावा गंगा के आसपास के क्षेत्र जैसे रुड़की, हरिद्वार, बिजनौर सहित अन्य जो भी क्षेत्र हैं, उनमें सबसे अधिक नुकसान होने की आशंका है। वैज्ञानिक मानते हैं कि सिल्ट में भूकंप का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।

ऐसे आगे बढ़ता है भूकंप

जब प्लेट टकराने के बाद एनर्जी रिलीज होती है, तो वह पार्टिकल के जरिए आगे बढ़ती है। सालिड पार्टिकल आपस में जुडे़ होते हैं, इसलिए एनर्जी सीधे आगे निकल जाती है। वहीं दूसरी ओर सिल्ट वाले इलाकों में पार्टिकल आपस में जुडे़ नहीं होते। एनर्जी हीट में कन्वर्ट हो जाती है और तबाही मचाती है।

जापान जैसी तकनीक की जरुरत

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा। सुशील कुमार कहते हैं कि धरती के नीचे जो हालात बन रहे हैं, ऐसे में उत्तराखंड बासियों को भूकंप के साथ रहने की आदत डाल लेनी चाहिए। इंडियन व यूरेशियन प्लेट के टकराने से जो एनर्जी बनी है, नेपाल में केवल सात से आठ प्रतिशत ही रिलीज हुई है। बाकि एनर्जी रिलीज होने के लिए रास्ता ढूंढ रही है। वह कहां रिलीज होगी, यह कहना मुश्किल है। भूकंप संवेदनशील क्षेत्रों में भवनों के निर्माण में जापान जैसी तकनीक का प्रयोग करना चाहिए, ताकि बिल्डिंग सुरक्षित रहे।