हादसा, जांच और फिर हादसा

बरेली जंक्शन में पिछले 4 महीनों में ही 9 बार ट्रेन डिरेलमेंट के हादसे हो चुके हैं। लेकिन जंक्शन में बैठे रेलवे के आला अधिकारियों की नींद इन हादसों के बाद भी नहीं टूटती। हर हादसे के बाद मुरादाबाद डीआरएम ऑफिस से जांच के लिए टीम का गठन कर दिया जाता है। जांच के रिजल्ट में डिरेलमेंट के कारणों और जिम्मेदारों का पता चलने तक एक और हादसा रेलवे की चुस्ती और चौकसी की कलई खोल रहा होता है।

Double shift में काम

बरेली जंक्शन में हो रहे मिसहैप और मिसमैनेजमेंट के पीछे की एक बड़ी वजह जरूरत से कम कर्मचारियों का होना भी है। रेलवे सोर्सेज के मुताबिक बरेली जंक्शन में ही करीब 30 फीसदी कर्मचारियों की कमी है। ऐसे में स्टॉफ की कमी के चलते मौजूदा कर्मचारियों पर ही काम के एक्स्ट्रा बर्डन की मार पड़ती है। इन कर्मचारियों को अपने तय समय 8 घंटे के बजाए 12 घंटे तक काम करना पड़ रहा है। जो ह्यूमन एरर का कारण बन हादसों के चांसेज को बढ़ाता है।

केवल चार के भरोसे

रात को ट्रेनों की आवाजाही में और उन्हें इंस्ट्रक्शन में इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स बेहद इंपॉर्टेंट हैं। सिग्नल्स में एक चूक किसी भी मिसहैप का कारण बन सकती है। बावजूद इसके 2 सालों से जंक्शन में इलेक्ट्रिकल सिग्नल मेंटेनर के तौर पर केवल 4 कर्मचारी काम कर रहे है, जबकि आरआरआई पैनल के अकॉर्डिंग जरूरत 10 की है। इन 4 में से भी 3 दिन में और 1 अकेला रात में 12 घंटे की ड्यूटी निभा रहा है।

चार महीनों में 9 derailment

-5 फरवरी 2013 को जंक्शन के पश्चिमी केबिन के यार्ड में मालगाड़ी डिरेल।

-11 फरवरी की रात इलाहाबाद-बरेली पैसेंजर्स के कोच हुए डिरेल।

-12 फरवरी को इलाहाबाद-बरेली पैसेंजर्स का एक कोच डिरेल

-14 फरवरी को सीबीगंज में एक मालगाड़ी का डिब्बा पटरी से उतरा।

-18 अप्रैल को शंटिंग के दौरान यार्ड में आला हजरत एक्सप्रेस का कोच डिरेल।

-29 अप्रैल को लगेज यान पटरी से उतरा

-9 मई को वाशिंग लाइन में अलीगढ़ पैसेंजर्स डिरेल।

-16 जून को भिटौरा में इंटरसिटी एक्सप्रेस के चार कोच डिरेल।

-21 जून को यार्ड में त्रिवेणी एक्सप्रेस का एक कोच

डिरेल डिरेलमेंट के कारण

-ट्रैक में आई कोई खराबी।

-ट्रेन की ट्रॉली में गड़बड़ी होना।

-शंटिंग मास्टर की लापरवाही।

-रूट डिक्लेयरेशन में स्टेशन मास्टर की चूक।