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LUCKNOW : यूपी पुलिस के डीजीपी ओपी सिंह साइबर क्राइम को बड़ी चुनौती मान रहे हैं। साइबर क्रिमिनल्स से निपटने को पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग देने के लिये उन्होंने हाल ही में यूपी-100 मुख्यालय में साइबर क्राइम लैब का उद्घाटन भी किया। लेकिन, उनके ही मातहतों के लिये यह हंसी-खेल से ज्यादा कुछ नहीं। यह हम यूं ही नहीं कह रहे, पूर्वी उत्तर प्रदेश की एकमात्र लखनऊ साइबर क्राइम सेल में स्टाफ में कटौती करके उसे आधा कर दिया गया है। तुर्रा ये कि इसे 'स्मॉल स्ट्रेंथ-स्मार्ट गवर्नेंस' स्कीम के तहत संचालित किया जाएगा। पर, पहले से स्टाफ की कमी का रोना रो रही साइबर सेल में इस नए कदम से हालात और भी बदतर होने की संभावना है। लेकिन, इस पर कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।

शिकायतों का अंबार

लखनऊ साइबर क्राइम सेल लखनऊ के साथ-साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों की पुलिस को मदद मुहैया कराती है। इसके अलावा शिकायतकर्ता खुद भी सेल में पहुंचकर अपनी शिकायतों का निदान पाते हैं। सूत्रों के मुताबिक, शिकायतों के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि इस साल 1 जनवरी से 30 मई के बीच महज पांच महीनों में ही 1120 शिकायतें आ चुकी हैं। यह संख्या उन शिकायतों की है, जिन्हें भुक्तभोगियों ने खुद सेल में पहुंचकर दर्ज कराया। इसके अलावा 410 ऐसे मामले सेल में आए, जिनमें राजधानी के अलग-अलग थानों में तैनात विवेचकों ने केस में साक्ष्य जुटाने के लिये मदद मांगी। 226 के करीब शिकायतें विभिन्न अधिकारियों ने सेल को जांच के लिये भेजीं। अगर इन सभी शिकायतों को दिनों के हिसाब से देखें तो हर रोज औसतन 12 शिकायतें आती हैं।

स्टाफ 'ऊंट के मुंह में जीरा'

शिकायतों के अंबार से निपटने के लिये साइबर क्राइम सेल में जो स्टाफ तैनात था, वह ऊंट के मुंह में जीरा के ही समान था। वजह भी साफ है, सेल में ऑनलाइन फ्रॉड, फेसबुक, जीमेल व वॉटसएप से संबंधित शिकायतें आती हैं। इन सभी मामलों में साइबर क्राइम सेल कर्मियों को आरोपियों का पता लगाने के लिये विदेश में स्थित इन कंपनियों से जानकारी इकट्ठा करनी पड़ती है। एक-एक शिकायत की जांच में कई दिन लग जाते हैं। ऐसे में शिकायतों के मुकाबले मौजूद स्टाफ पहले से ही कम था। शुक्रवार तक साइबर क्राइम सेल में एक इंस्पेक्टर, एक सब इंस्पेक्टर, एक हेड कॉन्सटेबल, सात पुरुष कॉन्सटेबल व दो महिला कॉन्सटेबल तैनात थीं। इनमें से इंस्पेक्टर बीते दो माह से प्रमुख सचिव गृह से संबद्ध चल रहे थे। वहीं, शुक्रवार को अचानक एसएसपी कलानिधि नैथानी ने साइबर क्राइम सेल में तैनात एक हेड कॉन्सटेबल, दो पुरुष कॉन्सटेबल व दो महिला कॉन्सटेबलों को लाइन हाजिर कर दिया। जिसके बाद साइबर क्राइम सेल में एक सब इंस्पेक्टर व पांच कॉन्सटेबल ही शेष रह गए हैं।

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2012 में मिली पहचान

लखनऊ साइबर क्राइम सेल की स्थापना वर्ष 2010 में की गई थी। हालांकि, उस वक्त इसे लेकर कोई भी अधिकारी गंभीर नहीं था। सेल के पास न तो कोई दफ्तर था और न ही संसाधन। यह सेल एसपी पूर्वी के दफ्तर से ही संचालित की जाती थी। हालांकि, वर्ष 2012 में दिनेश यादव के सीओ हजरतगंज बनने पर इस सेल के दिन बहुरने शुरु हुए। साइबर मामलों के एक्सपर्ट दिनेश यादव ने तत्कालीन डीजीपी एसी शर्मा से गुजारिश कर सेल के लिये 13 लाख रुपये मंजूर कराए। इस रकम से हजरतगंज कोतवाली में सीओ दफ्तर के बगल के कमरे में सिविल वर्क व फर्नीचर निर्माण कराया गया। साथ ही वर्क स्टेशन, 8 कंप्यूटर सिस्टम और फॉरेंसिक टूल किट इंस्टॉल कराए गए। जिसके बाद से साइबर क्राइम सेल को आधिकारिक रूप से पहचान मिल सकी और पीडि़तों ने सेल में पहुंचना शुरू किया। जिसके बाद सेल ने कई बड़े गुडवर्क कर अपनी उपयोगिता को साबित किया। दिनेश यादव का प्रमोशन होने पर उनका तबादला हो गया। जिसके बाद अनदेखी के चलते साइबर क्राइम सेल की हालत बिगडऩे लगी। वर्तमान में तमाम सॉफ्टवेयर अपडेट न होने की वजह से बेकार हो चुके हैं जबकि, अब स्टाफ की कमी ने हालात कोढ़ में खाज सरीखे कर दिये हैं।

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