- बेसहारा मरीजों की देखभाल की नहीं दून हॉस्पिटल में कोई व्यवस्था

- आसपास के मरीजों के रहमोकरम पर चलता है गुजारा

- किसी का घर-बार नहीं तो किसी को अपने बारे में ही जानकारी नहीं

देहरादून, दून हॉस्पिटल में कई बार ऐसे मरीजों को लाया जाता है कि जो गंभीर रूप से बीमार होते हैं, लेकिन उन्हें देखने वाला कोई नहीं होता। वे बेसहारा होते हैं, अकेले होते हैं। ऐसे मरीजों को हॉस्पिटल में भर्ती तो कर लिया जाता है, लेकिन उनकी देखरेख करने की कोई व्यवस्था नहीं होती। आसपास के मरीजों और उनके तीमारदारों के रहमोकरम पर ही इन मरीजों का काम चलता है। वर्तमान समय में दून हॉस्पिटल में आधा दर्जन ऐसे मरीज भर्ती हैं। इनमें से किसी का घरबार ही नहीं है तो कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें अपनों के बारे में ही कोई जानकारी नहीं है।

कमलेश की दिक्कत, कहां जाए

कमलेश की उम्र 42 साल है। चुक्खू मोहल्ले में उसका भी घर था, पहले पिता बीमार हुए, फिर चाचा। घर का कुछ हिस्सा पिता के इलाज के लिए बेचना पड़ा, फिर कुछ हिस्सा चाचा के इलाज के लिए। दोनों की मरते दम तक सेवा की। चाचा की मौत के बाद चचेरे भाई ने मारना पीटना शुरू कर दिया। एक दिन किसी वाहन ने टांग कुचल दी। लोग दून हॉस्पिटल ले आये। पिछले चार महीने से कमलेश दून हॉस्पिटल में ही है। वह कहती हैं हॉस्पिटल के अलावा और कोई ठिकाना उसके पास नहीं है।

मरीज का नाम-पता भी नहीं

करीब 50 वर्षीय एक व्यक्ति पिछले चार महीने से दून हॉस्पिटल में भर्ती है। पैरालिसिस का अटैक आने के बाद कोई उसे हॉस्पिटल छोड़ गया था। वह कौन है कोई नहीं जानता। यह मरीज पैरालिसिस के कारण न कुछ बोल पाता है, न ही लिख पाता है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने उससे कुछ लिखवाने का प्रयास किया तो उसने जो लिखा वह समझ नहीं आया।

विनोद का कोई नहीं रखवाला

विनोद रावत की उम्र 20 साल है। वह बड़ी मुश्किल जो बता पाया तो इतना ही पता चला कि वह पौड़ी जिले का है। अपनों के नाम पर विवाहिता बहन के अलावा उसका कोई नहीं। सेलाकुई की एक कैंटीन में वह काम करता था, कुछ समय पहले उसके पैरों में सूजन आने लगी। मालिक ने दूसरे आदमी की व्यवस्था करने तक उसे हॉस्पिटल भी नहीं जाने दिया। बार-बार बेहोशी छाने लगी तो कुछ लोगों उसे कैंटीन से बाहर निकाला और 100 रुपए देकर दून हॉस्पिटल भेज दिया। तब से विनोद यहीं है।

सड़े पैर के साथ शंकर दयाल

शंकर दयाल की उम्र करीब 40 वर्ष है वह अपने नाम के अलावा अपने घर का नाम नवाबगंज यूपी बताता है, बाकी उसे कुछ पता नहीं। पैर में कहीं चोट आई। कोई उसे अस्पताल छोड़ गया, उसका एक पैर खराब हो गया। हॉस्पिटल में किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। कई दिनों तक खराब पैर के साथ वह हॉस्पिटल के आस-पास घूमता रहा तो एक सोशल वर्कर विजयराज ने उसे हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया। उसके परिजनों तक पहुंचने के प्रयास किए जा रहे हैं।

सोनू के पास नहीं कोई ठिकाना

सोनू की उम्र 32 वर्ष है, वह नजीबाबाद का है। बहन की शादी हो चुकी है। चाचा का परिवार है। कुछ समय पहले कुछ कमाने और परिवार बसाने के इरादे से पौड़ी गया था, पहाड़ी से गिरकर कमर टूट गई। किसी ने ऋषिकेश छोड़ दिया। वहां से दून हॉस्पिटल शिफ्ट किया गया। कुछ लोगों ने उसके परिजनों के बारे में जानकारी ली। सोनू ने अपने चाचा रंजीत और जीजा वीरेन्द्र पाल का फोन नंबर दिया। दोनों से बात की गई, लेकिन दोनों ने अपनी मजबूरी बता कर उसे ले जाने से इनकार कर दिया।