RANCHI: बेतकल्लूफ भीड़ जरूरतों के मिजाज को समझती है, तभी तो पेट के खातिर शहरों में निकलती है। गांव से रूख्सत होते लोगों का ठिकाना शहर बनता है, क्योंकि तरक्की की चाहत शहर की ऊंची अट्टालिकाओं से ही पनपती है। राजधानी रांची हालांकि महानगरों में शुमार तो नहीं फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। राजधानी बनने के बाद बढ़ती आबादी के सामने सुविधाएं बौनी हो चली हैं। सुविधाओं का टोटा और बढ़ती आबादी के अनुपात में आधारभूत संरचनाओं के शिथिल निर्माण ने समस्याओं का आकार बड़ा कर दिया है। आज शहर में मकान-दुकान, रोजी-रोजगार को लेकर भागम-भाग तो है ही, साथ ही बुनियादी समस्याएं पानी, बिजली को लेकर भी संकट गहराने लगा है।

कृषि योग्य भूमि सिकुड़ रही

कृषि योग्य भूमि का सिकुड़ता संसार- बढ़ती आबादी सिटी की जमीन के लिए घातक साबित हो रहा है। जो खेत अनाज से लहलहाया करते थे अब उनपर अट्टालिकाएं या फिर कंक्रीट के भवन नजर आते हैं। बीते दस सालों में अकेली राजधानी रांची में 5000 हेक्टेयर कृषि भूमि पर कंक्रीट की इमारतें खड़ी कर दी गई हैं।

बीमारियों ने भी बनाई जगह

जनसंख्या का व्यापक असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। शहर के कई इलाकों में जनसंख्या का जो घनत्व है, वो काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। सफाई नियमित नहीं हो पा रही है तो उन इलाकों में बीमारियों ने भी अपना घर बनाना शुरू कर दिया है। गांव के लोग शहर में आ तो गये लेकिन आर्थिक विषमता के बीच उनका इलाज भी सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भर है।

पानी को लेकर मारामारी

अत्यधिक भूगर्भ के दोहन से राजधानी में पानी की विकट समस्या खड़ी हो गई है। कंक्रीट में तब्दील होते शहर का ग्राउंड वाटर रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। हर गर्मी में पानी के लिए कतार और निगम की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है। सिटी के 60 प्रतिशत इलाके में आज भी वाटर सप्लाई नहीं है।

बिजली की आंखमिचौली

सिटी में हर दिन 300 मेगावाट बिजली की डिमांड है, लेकिन मांग के अनुरूप बिजली की आपूर्ति नहीं की जा रही है। इंडस्ट्री सेक्टर जेनसेट के भरोसे है। जब राज्य अलग हुआ था तो बिजली की खपत 150 मेगावाट के आसपास थी, जो अब दोगुनी हो चुकी है।

एक्सप‌र्ट्स शेज

राजधानी में जिस रफ्तार से जनसंख्या बढ़ रही है, उसके नतीजे भी खतरनाक रूप में सामने आ रहे हैं। आबादी का घनत्व काफी बढ़ा है जिस वजह से समस्याओं ने भी अपनी जगह बना ली है। घनत्व बढ़ने से सफाई नहीं होने पर बीमारियां भी पनप रही हैं। समस्याएं जब होंगी तो अपराध को भी जगह मिलेगी। सिटी में अपराध की घटनाओं में भी इजाफा हुआ है, क्योंकि आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो रही है। सरकार को गांव में ही रोजगार के रास्ते तलाशने चाहिए, गांव में रोजगारपरक इंडस्ट्री लगानी चाहिए, ताकि लोग गांव में ही अपना जीवनयापन कर सकें। शहर में आबादी का डिस्ट्रीब्यूशन उचित तरीके से हो तो समस्याओं को कम किया जा सकता है।

- डॉ रानू कुमार, एचओडी, समाजशास्त्र, आरयू