देहरादून.

गोविंदगढ़ निवासी नन्ही मंतशा की शिक्षा के अधिकार पर ऐसा डाका पड़ा कि डेढ़ साल से वह घर पर ही है. यही नहीं लापरवाह सिस्टम ने भी कोई खास रुचि नहीं दिखाई. ऐसे में मंतशा की क्लास वन की पढ़ाई छूट गई. मंत्शा के पिता ने शिक्षा विभाग, समाधान पोर्टल, बाल आयोग यहां तक कि बाल विकास मंत्री तक से वार्ता की लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल पाया है.

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बीमार हुई तो काट दिया नाम

गोविंदगढ़ निवासी मंतशा का वर्ष 2017 में क्षेत्र में स्थित रेंबो एकेडमी स्कूल में आरटीई के तहत एडमिशन हुआ. इस बीच अचानक मंतशा बीमार हो गई. जिस वजह से 5 महीने तक वह स्कूल नहीं जा सकी. मंतशा के पिता फैयाज अहमद ने बताया कि जब बेटी की तबीयत ठीक हुई और उसको लेकर स्कूल गए तो स्कूल मैनेजमेंट ने ये कहते हुए उसे वापस भेज दिया कि उसका नाम काट दिया गया है.

डेढ़ साल से काट रहे चक्कर

मंतशा के पिता फैयाज ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने मुख्य शिक्षा अधिकारी से मुलाकात की. जब कोई हल नहीं निकला तो समाधान पोर्टल में शिकायत दर्ज कराई. बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सामने अपनी बात रखी और फिर बाल विकास मंत्री से गुहार लगाई. बताया कि सभी ओर से मंतशा को दाखिला दिए जाने की बात कही गई. हालांकि स्कूल की ओर से ये तो एक्सेप्ट किया गया कि पत्र आए हैं लेकिन कहा गया कि किसी भी पत्र में ये स्पष्ट नहीं है कि मंतशा को कौन सी क्लास में एडमिशन देना है, ये कहते हुए स्कूल ने अपना पल्ला झाड़ लिया.

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मेरी बेटी डेढ़ साल से घर पर है. बच्ची के पढ़ाई का शेडयूल बना रहे, इसलिए उसकी मम्मी रफत जहां उसे घर पर पढ़ाती है. वहीं पड़ोस में भी एक युवती बच्ची को टयूशन देती है. एडमिशन के बावजूद बच्ची के साथ ऐसा व्यवहार किया जाना बेहद गलत है.

-फैयाज अहमद, मंतशा के पिता

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बच्ची को एडमिशन देने के बाद ऐसे निकाला नहीं जा सकता है. इस संबंध में आयोग की ओर से दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं. इसके बावजूद स्कूल बच्ची को उसके अधिकार नहीं दे रहा है तो इस मामले पर दोबारा एक्शन लिया जाएगा.

- ऊषा नेगी, अध्यक्ष, बाल अधिकार संरक्षण आयोग