बिना इमरजेंसी डोर के संचालित हो रही रोडवेज बस

आरटीओ से लेकर रोडवेज के आला अधिकारियों की अनदेखी

Meerut . तीन सरकारी विभागों की लापरवाही रोडवेज बसों से सफर करने वाले सैकड़ों यात्रियों की जिंदगी पर भारी पड़ सकती है. हालत यह है कि मानकों को ताक पर रखकर बिना इमरजेंसी डोर के रोडवेज की अनुबंधित बसों को सड़कों पर संचालित किया जा रहा है. जबकि मानकों के अनुसार बिना इमरजेंसी डोर के बिना रोडवेज बस का संचालन नही किया जा सकता.

इमरजेंसी डोर के बिना संचालन

दरअसल भैंसाली बस डिपो से गाजियाबाद, बागपत, मुजफ्फनगर आदि शहरों के लिए अनुबंधित बसों का संचालन होता है. अनुबंधित बसों के संचालन से पहले बसों में यात्रियों की सुरक्षा के मानकों को पूरा करना बस संचालक की जिम्मेदारी होती है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण मानक है बस में एक इमरजेंसी डोर का होना. लेकिन भैंसाली डिपो के अनुबंधित बसों के बेडे़ में कुछ ऐसी बसें हाल ही में शामिल हुई हैं जिनमें इमरजेंसी डोर ही नही है.

जानलेवा बनेगी लापरवाही

हाल ही में आलमबाग डिपो की एक बस में आग लगने से यात्री जलकर मर गए थे. एसी बस में समय रहते यात्रियों को बाहर निकलने का रास्ता नही मिला. इमरजेंसी डोर इसलिए बनाया जाता है ताकि आपात स्थिति में यात्री इसका प्रयोग कर सकें. लेकिन इन बसों में 50 से 60 यात्रियों की सीटिंग क्षमता होने के बाद भी एक इमरजेंसी डोर का ना होना जानलेवा लापरवाही है.

तीन विभागों की जिम्मेदारी

इस बसों के संचालन पर तीन तीन सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहा है. पहला आरटीओ विभाग ने ऐसी बसों को किसी आधार पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए रजिस्ट्रेशन और फिटनेस दे दी. दूसरा रोडवेज विभाग ने कैसे इन बसों को हजारों यात्रियों के सफर के लिए रोडवेज के बेडे़ में शामिल कर लिया और तीसरा यातायात पुलिस ऑन रोड इन बसों की जांच क्यों नही कर रही.

इमरजेंसी डोर का सभी बसों में होने का प्रमुख नियम है. सभी बसों में डोर लगा हुआ है. हो सकता है कि पांच साल पहले के पुराने अनुबंध पर कुछ बसें हो तब इमरजेंसी डोर की बाध्यता नही थी बसों की जांच कराई जाएगी.

- राजेश कुमार, एआरएम भैंसाली डिपो