'महालय' के साथ शुरू हुई पूजा

बंगाली परंपरा में शारदीय नवरात्र विशेष महत्व है। डॉ। रचना बनर्जी ने बताया कि मां दुर्गा का स्वागत अमावस्या के दिन से ही चंडीपाठ  से शुरू कर दिया जाता है। सप्तम से देवी का बोधन होता है। तीन घट (मिïट्टी के कलश) की स्थापना की जाती है। अध्या मां का स्त्रोत पाठ शुरू हो जाता है। सप्तशी के दिन से ही नए वस्त्र पहनकर पूजा, आरती, पुष्पाजंली होती है। देवी को प्रसन्न करने के लिए ढाक के संगीत का सुर बजाया जाता है। यह सुर आरती, पूजा भोग और आह्वान के साथ बदलते रहते हैं। अष्टमी और नवमी को संधि पूजा की जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि अष्टमी और नवमी के मिलन के समय माता जाग्र्रत होती है और उनकी शक्तियां चरम पर होती है। माता के साथ उनके पुत्र श्री गणेश और उनकी पत्नी भी पूजी जाती हैं।

द्वितीय को कलश स्थापना

बेतियाहाता निवासी बिजनेस मैन ओमप्रकाश सिंह के घर के मंदिर में मां का दरबार सज गया है। नौ दिन का व्रत करने वाले ओ.पी सिंह की जलपा देवी पर गहरी आस्था है। उनके पांच स्वरूप किला की भगवती, अखाड़ा माता, जलपा देवी, ओबा माता और बौराइया माता है। वह, उनकी वाइफ शारदा और उनके बच्चे (पुष्पराज, दिव्यराज और ज्योत्षना) कलश स्थापना के साथ ही अराधना में जुट जाते हंै।

सजता है सच्चा दरबार

दाऊदपुर के हिमांशु द्विवेदी लिए शारदीय नवरात्र का विशेष?महत्व है। वे, उनके इंजीनियर पिता और डॉक्टर भाई फैमिली के साथ मां की अराधना करते हैं। उनके घर में कलश की स्थापना होती है और रीति रिवाज के साथ ही मां की कृपा प्राप्त करने के लिए वैदिक मंत्रोउच्चारण के साथ नौ दिन का पाठ किया जाता है।