-प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने मेरठ को दी विश्वस्तरीय पहचान

-मेरठ से उठी विरोध की चिंगारी ने फिरंगियों को उड़ा दिए होश

आई स्पेशल

अखिल कुमार

Meerut: 10 मई 1857, भारत के इतिहास में खास है यह तारीख। इस दिन मेरठ के तीनों रेजीमेंट के बहादुर सिपाहियों ने खुली बगावत का झंडा उठाकर दिल्ली कूच किया। 11 मई को ब्रिटिश हुकूमत को धराशायी कर तैमूर वंश के बहादुरशाह जफर को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर आजादी के महासमर की दुन्दुभी बजाई। क्रांति का आगाज होना ही था, श्रेय मेरठ को मिला। पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में मंगल पांडे और इसूरी पांडे को फांसी के बाद सुलगी चिंगारी मेरठ में ज्वाला बनी। ऐतिहासिक घटना से पूर्व 36 घंटे के विवरण पर आईनेक्स्ट की खास नजर

इतिहास के वो तीन दिन

-9 मई 1857 की सुबह परेड ग्राउंड पर मेरठ की तीनों रेजीमेंट के सिपाहियों के सामने कारतूस लेने से इनकार करने वाले तीसरी अश्वसेना के 85 सिपाहियों का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। जानबूझकर हजारों सैनिक इस घटना के दौरान मूक बने रहे, साथियों का अपमानित विक्टोरिया पार्क स्थित जेल में भेज दिया गया।

- 10 मई की शाम 5 बजे गिरजाघर घंटा बजता है, 6:30 बजे इन्हीं सिपाहियों ने अपने साथी 85 सिपाहियों को जेल से मुक्त कराया। ब्रिटिश सेना के प्रतीकों को हिंसा और आगजनी का शिकार बनाया, कई गोरों की हत्या कर दी गई। सिपाहियों की कई टोलियां पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत 'दिल्ली चलो' अभियान को अंजाम देती हुई दिल्ली पहुंच गईं।

-11 मई की सुबह सैनिक मेरठ से दिल्ली पहुंचे, बहादुर शाह का फरमान ब्रिटिश अधिकारियों को दिया गया कि वे दिल्ली के शस्त्रागार को शाही सेना के सुपुर्द कर दें। मारो फिरंगी अभियान के बाद 14 मई को दिल्ली पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो गया।

क्रांतिदूत फकीर

10 अप्रैल 1857 को सूरजकुंड पर 50-60 अनुयायियों के साथ फकीर का आगमन होता है। सूचना पर देशी सैनिक क्रांति की भूमिका बनाते हैं, इसकी जानकारी ब्रिटिश को लगती है तो वे फकीर को सूरजकुंड छोड़कर जाने को कहते हैं। सूरजकुंड से कालीपलटन मंदिर जाकर फकीर अपने अनुयायियों को कमल और रोटी देकर गांवों में भेजते हैं, इस दौरान फकीर काली पल्टन से गुजरने वाले हर सैनिक से उसकी जात पूछते। हिंदू से कहते कि गाय की चर्बी का कारतूस है तो मुस्लिम से कि सुअर की चर्बी को मुंह से लगा रहे हो। क्रांतिदूत फकीर को देशी सैनिकों के दिलों में क्रांति का बीज पैदा करने वाला माना गया।

भारत के पुनर्जागरण के लिए धर्मयुद्ध

1857 की ऐतिहासिक क्रांति के ने उत्तरी भारत को अपनी चपेट में लिया और करीब एक लाख लोगों को अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी। अंग्रेज इतिहासकारों ने इस संग्राम को 'सिपाही विद्रोह' की संज्ञा दी, उनका कहना स्वाभाविक भी था कि उन्होंने अपने द्वारा गठित सेना को अपने विरुद्ध बंदूके उठाते देखा था। प्रसिद्ध इतिहासकार मैलिसन ने अपने ग्रंथ 'हिस्ट्री ऑफ इंडियन म्यूटिनी' में लिखा कि युद्ध चर्बी लगे कारतूसों के कारण नहीं हुआ, चर्बी लगे कारतूसों का षडयंत्रकारियों (क्रांतिकारियों) ने कुशलता से प्रयोग किया।

गरजी थीं क्रांतिकारी वीरांगनाएं

श्रीमती आशा देवी गुर्जर-पति सैनिक विद्रोह में शामिल थे तो आशा ने महिलाओं की टोलियां बनाकर 13 और 14 मई को कैराना और शामली की तहसील पर हमला बोल दिया। इसके अलावा बख्ताबरी देवी, भगवती देवी त्यागी, हबीबी खातून गुर्जर, शोभा देवी ब्राह्मामणी, मामकौर गडरिया, भगवानी देवी, इंदरकौर जाट, जमीला पठान आदि सहित मेरठ-मुजफ्फरनगर की 255 महिलाएं फांसी चढ़ी, कुछ लड़ते-लड़ते शहीद हुई। असगरी बेगम को तो पकड़कर जिंदा जला दिया था। और तो और मेरठ सदर बाजार की वेश्याओं ने 85 सैनिकों की गिरफ्तारी के बाद कहा था कि 'लाओ अपने हथियार हमें दो हम जंग करके उन बहादुर सिपाहियों को जेल से अपने आप आजाद करा लेंगे, तुम चूडियां पहनकर घरों में बैठो.'

निशां जो बने गवाह

1-शहर कोतवाली-1857 में कोतवाल बिशन सिंह यहां के कोतवाल थे, सजायाफ्ता गांव के नागरिकों को बचाया था बिशन सिंह ने।

2-सूरजकुंड-यह तब तालाब था, गदर के दौरान फकीर यहां आकर रुके थे, और उन्होंने क्रांति की ज्वाला जगाई थी।

3-पुरानी जेल-विद्रोह भड़कने पर 700 क्रांतिकारियों को विद्रोहियों ने जेल से रिहा कराया था।

4-कैन्टोनमेंट जनरल अस्पताल-यह बेगम समरू की जेल थी, जिसे बाद में अंग्रेजों ने हथिया लिया था।

5-माइल स्टोन-गदर के दौरान स्थापित यह स्तंभ मेरठ से विभिन्न शहरों की दूरी को दर्शाता है।

6-सैपर्स तथा माइनर्स का विद्रोह स्थल-इसी स्थल से दिल्ली कूच कर चुके सैनिकों के समर्थन में रुड़की से एक टुकड़ी आई और उसने अपने कमांडिंग ऑफीसर को तत्काल गोली मार दी थी।

7-दम दमा-डोगरा मंदिर के पीछे के हिस्से में इस स्थल को अंग्रेजों ने किले के तौर पर इस्तेमाल किया था।

8-थियेटर-आज इस स्थान पर कमांडर व‌र्क्स इंजीनियर्स ऑफिस है, 1857 में यह माल रोड पर स्थित एक भव्य ड्रामा थियेटर था।

10-परेड ग्राउंड-इसी ग्राउंड में 85 क्रांतिकारी सिपाहियों को कोर्ट मार्शल की सजा सुनाई गई थी।

11-विक्टोरिया पार्क-यही पर कैद करके रखा गया था 85 देशी आर्मी के सिपाहियों को।

12-काली पलटन (औघड़नाथ मंदिर)-यहां से शुरू हुआ था, सैनिकों का विद्रोह।

13-सेंट जॉन्स कब्रिस्तान- सैनिक क्रांति में मारे गए अंग्रेजों की कब्र आज भी यहां है।

आज भी याद है खौफनाक मंजर

गदर के बाद सत्ता पलट हुआ और अंग्रेज दोबारा सत्ता पर काबिज हुए। सनद हो कि मेरठ के गगोल तालाब पर ब्रिटिश ने सामूहिक क्रांतिवीरों को सामूहिक फांसी दी थी, दशहरे का दिन था और बढ़ी घटना के गवाह बने आसपास के गांवों में आज भी दशहरा नहीं मनाते।

हुआ था विश्वासघात

इतिहासकारों को मानना है कि 1857 की क्रांति के फेल होने की वजह देश के वे बड़े घराने थे जिन्होंने विश्वासघात किया था। हैदराबाद का निजाम परिवार, सिन्धिया घराना, शाहजहांपुर के पुवायां का जगन्नाथ प्रसाद सिंह घराना आदि अंग्रेजों के साथ मिल गए थे।

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1857 की क्रांति एक महान क्रांति थी, सैनिक विद्रोह के नाम से पहचानी जाने वाली इस क्रांति का विश्व इतिहास में जिक्र है। पूरी कौम में एकजुटता थी, एक जज्बा था जो कभी जमींदोज नहीं हुआ। देश की आजादी की वजह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था।

डॉ। मनोज कुमार गौतम

संग्रहालयाध्यक्ष, राजकीय संग्रहालय मेरठ