इससे पहले फिच की प्रतिद्वंदी कंपनी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने भी भारत की नीतिगत फैसलों में सुधार की आवश्यकता पर जोर देते हुए भारत के लिए अपनी क्रेडिट रेटिंग में कटौती की थी। फिच के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि रेटिंग में कटौती करने से पहले फिच ने हाल ही मे शुरू किए गए आर्थिक सुधार योजनाओं पर गौर नहीं किया है। उन्होंने कहा कि फिच की तरफ से जिन समस्याओं पर चिंता व्यक्त की गई है उसके बारे में भारत सरकार जानती है और सुधार के लिए कदम भी उठा चुकी है।

फिच ने भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत ही खराब बताया है और अनुमान लगाया है कि हाल ही में पूरे हुए वित्त वर्ष में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 66 प्रतिशत हिस्सा कर्ज में डूबा है जबकि दूसरे बीबीबी श्रेणी के देशों के लिए यह अनुमान 39 प्रतिशत था।

निवेश को नुकसान

फिच के एक निदेशक आर्ट वू ने एक विज्ञपति में कहा, “भारतीय बाजारों में व्यापत मुद्रास्फिति के दबाव और सरकारी खजाने में आई कमजोरी के बीच सरकार के नीतिगत फैसले और अहम हो गए है। भ्रष्टाचार और लचर आर्थिक सुधार योजनाओं की वजह से देश में निवेश के माहौल को नुकसान पहुंचा है.”

मार्च में खत्म हुई तिमाही में भारत का विकास दर 5.3 फीसदी रहा था, जो कि पिछले नौ वर्षों में सबसे कम है। दूसरी तरफ भारत के प्रमुख आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने फिच की रेटिंग पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि फिच की तरफ से लिया गया ये कदम भीड़ की मानसिकता को दर्शाता है। उन्होंने कहा, “भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अगला छह महीना काफी महत्पूर्ण है और इस दौरान बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.”

हालांकि कौशिक बसु ने फिच के आकलन को बेहतर बताते हुए कहा, “फिच का पूरा बयान काफी सकारात्मक है.” इससे पहले फिच ने भारत की क्रेडिट रेटिंग के बारे में कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था स्थिर नहीं रह गयी है, वह लगातार पिछड़ रही है। फिच का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस वित्त वर्ष में 6.5 फीसदी की दर से बढ़ेगी जो पिछले अनुमान 7.5 फीसदी से कम है।

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