स्टॉल दस हजार का

महोत्सव में प्रगति पर्यावरण संरक्षण समिति ने कॉमर्शियल स्टॉल्स के लिए 10 हजार रुपए और हैंडीक्राफ्ट के लिए 7,750 रुपए तय किए हैं। स्टॉल ओनर्स की मानें तो यहां आए 5 दिन हो चुके हैं पर कमाई अब तक एक हजार रुपए का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है। पूरे दिन महोत्सव परिसर में सन्नाटा पसरा रहता है। इक्का-दुक्का लोग ही नजर आते हैं। आलम यह कि स्टॉल ओनर्स इतने ज्यादा निराश हैं कि अपनी दुकान तक समेटने की तैयारी करने लगे हैं।

न बिजली, न वॉशरूम

महोत्सव में पहुंचे स्टॉल ओनर्स ने बताया कि उन्हें जरूरी सुविधाएं भी मुहैया नहीं कराई गई हैं। वॉशरूम तक जाने के लिए बिशप मंडल ग्राउंड से पटेल चौक पर बने सुलभ कॉम्प्लेक्स तक जाना पड़ता है। इतना ही नहीं, स्टॉल्स के  लिए इलेक्ट्रिसिटी की फैसिलिटी भी सुचारू ढंग से प्रोवाइड नहीं कराई गई। स्टेज और डीजे के लिए तो जनरेटर चलता है पर स्टॉल को केवल पावर सप्लाई का ही सहारा है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा इलेक्ट्रॉनिक एप्लाइंसेज और जूस मेकर्स के स्टॉल को भुगतना पड़ रहा है।

स्टॉल ओनर्स को लंबी चपत

फेस्टिवल से कमाई की आस लगाकर पहुंचे स्टॉल ओनर्स को चपत लग रही है। आमतौर पर ऐसे फेस्टिवल्स में एक दिन में ही तकरीबन 10-12 हजार रुपए की सेल होनी चाहिए। पर यहां तो एक हजार की सेल करना भी मुश्किल है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मंडे से शुरू टिकट इंट्री सिस्टम में पहले दिन महज 287 टिकट ही सेल हुए। आयोजन समिति के मुताबिक, 10 रुपए के टिकट में ढाई रुपए टैक्स के रूप में दिए जाते हैं, बची रकम से व्यवस्था बनाई जाती है।

समिति का छलका दर्द

बरेली महोत्सव की आयोजन समिति के मुताबिक, फेस्टिवल में लगने वाले फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, एग्रीकल्चर, हॉर्टी कल्चर के स्टॉल्स के लिए सीडीओ को लिखा गया था पर लगे ही नहीं। यही नहीं गत 28 फरवरी को खत्म होने वाले ताज महोत्सव के स्टॉल्स भी आने थे। पीलीभीत में चल रहे मेले के स्टॉल सिटी में पहले से चल रहे एक अन्य ट्रेड फेयर में चले गए। उनका कहना था कि जब हमने महोत्सव के लिए अनुमति ली थी, तब इस ट्रेड फेयर के बारे में जानकारी नहीं दी गई।

कल्चरल प्रोग्राम का फीका रंग

फेस्टिवल के स्टेज के लिए भी कोई ऐसा पॉपुलर नाम नहीं लिया गया, जिसे देखने के लिए बरेलियंस में क्रेज दिखता। यही नहीं कुछ स्टॉल ओनर्स स्टॉल के ज्यादा रेट्स को भी वजह मानते हैं। हालांकि, आयोजन समिति के मुताबिक,  तीसरे दिन सभी स्टॉल्स के लिए रेट घटाकर 5000 रुपए कर दिए गए हैं। वहीं, बरेलियंस के मुताबिक उत्तरायणी मेला, क्राफ्ट फेयर के बाद बरेली महोत्सव लगा तो उन्होंने इसे आउटिंग के लिए बेस्ट प्लेस समझा था। यहां तो स्टॉल्स पर भी अटै्रक्शन नहीं दिखता।

200 की प्लानिंग, लगे 40 स्टॉल

महोत्सव में टोटल 200 स्टॉल बनाए गए हैं, इनमें से अब तक केवल 40 ही लगे हैं। जो स्टॉल्स लगे भी हैं वह इतने ज्यादा बिखरे हैं कि यहां आने वालों को काफी लंबा चक्कर लगाने के बाद कुछ नजर आएगा। कॉमर्शियल स्टॉल्स के साथ ही गवर्नमेंट डिपार्टमेंट्स की योजनाओं से लोगों को रूबरू करवाने की प्लानिंग थी लेकिन यह भी महज खानापूर्ति के लिए ही हैं। इन पर सिर्फ बैनर दिखेंगे लेकिन जानकारी देने के लिए कोई रिप्रेजेंटेटिव शायद ही मिले।

नहीं मिला सहयोग

'यह सही है कि महोत्सव में इतने स्टॉल्स नहीं आए, जितनी हमने उम्मीद की थी। इसके साथ ही यहां नगर निगम और जिला प्रशासन का सहयोग न मिलने से महोत्सव उद्देश्य में सफल होता नहीं दिख रहा है। पर हमें उम्मीद है कि दो-एक दिन में यहां कुछ और स्टॉल्स आ जाएंगे। हमने स्टॉल ओनर्स को सभी फैसिलिटीज दी हैं, जो दी जानी चाहिए थीं.'

-एनबी सिंह, वाइस प्रेसीडेंट, ऑर्गनाइजिंग कमेटी

5 दिन में 1500 की सेल

'पांच दिन में केवल 1500 रुपए की सेल हुई है। फिलहाल, इस फूड स्टॉल के लिए मैं 5 हजार रुपए पे कर चुका हूं। आमतौर पर फे स्टिवल्स में दस दिन में तो 50 हजार तक की सेल हो जाती है। यहां आने की वजह से मैं कहीं और भी नहीं जा पाया.'

-श्याम बिहारी, स्टॉल ओनर

बिजली भी परेशानी

'मेरा जूस का स्टॉल है और मैं दिल्ली से आया हूं। मैंने समिति को 8 हजार रुपए दिए हैं पर इस स्टॉल को चलाने के लिए मुझे इलेक्ट्रिसिटी भी नहीं मिल रही है। बिजली जाने के बाद बहुत मुश्किल होती है.'

-आलम, स्टॉल ओनर

मार्केटिंग नहीं हुई

'वैसे ही स्टॉल्स कम हैं और फेस्टिवल की मार्केटिंग न होने की वजह से लोग नहीं आए हैं। ऊपर से आयोजन समिति ने जो टिकट लगाया है, उससे तो यहां लोग आ ही नहीं रहे हैं। दो टिकट और व्हीकल स्टैंड का खर्च मिलाकर 30 रुपए हो जाता है.'

-फरखिंदर कौर, स्टॉल ओनर

समेट लूंगा स्टॉल

'दो दिन से फूड स्टॉल लगाया है, पर कोई बिक्री ही नहीं हुई है। ऐसे में अपना स्टॉल समेटने जा रहे हैं। यहां स्टॉल लगाने के लिए हमें पूरे टाइम दो-तीन लोग रखने होते हैं। सामान भी वेस्ट हो जाता है.'

-गोपाल, स्टॉल ओनर

झूले भी हैं बंद

'ना तो झूले चल रहे हैं, ना ही स्टॉल ही कुछ खास हैं। यहां तो टिकट के 10 रुपए खर्च करना भी ज्यादा हो गया है। हमें तो लगा था कि क्राफ्ट फेयर के बाद यह आउटिंग के लिए अच्छी जगह है.'

-दीक्षा, विजिटर

फेस्टिवल जैसा नहीं

'बरेली महोत्सव का बोर्ड लगा देखा तो यहां आ गए, पर यहां तो फेस्टिवल जैसा कुछ है ही नहीं। हो सकता है कि रात में यहां कुछ चहल-पहल दिखाई दे जाए.'

-अब्दुल, विजिटर

'नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। मेला समिति को स्वयं शहर में अपना प्रचार करना था। हमारा ऐसा कोई एग्रीमेंट नहीं था। बरेली महोत्सव मेला समिति ने अगर टाइम पर ढंग से प्रचार किया होता तो मेले का अलग ही रंग होता.'

-डॉ। आईएस तोमर, मेयर

'बरेली महोत्सव की ब्रांडिंग और एडवर्टीजमेंट की जिम्मेदारी पूरी तरह से मेला आयोजन समिति की है। नगर निगम का मेला समिति से ऐसा कोई करार नहीं हुआ कि हम उनका प्रचार करवाएंगे। मैंने अपने स्तर पर मौखिक रूप से उन्हें इंस्ट्रक्ट भी किया था पर मेला समिति ने ढुलमुल रवैया अख्तियार कर रखा है। यही वजह है कि मेला पब्लिक को अट्रैक्ट नहीं कर पा रहा है.'

-उमेश प्रताप सिंह, नगर आयुक्त