प्रिंसटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक का इस्तेमाल कर प्रयोगशाला में उड़ने वाला एक ‘छोटा क़ालीन’ बनाने में सफलता हासिल की है। दस सेंटीमीटर के एक पारदर्शी प्लास्टिक के टुकड़े पर किए गए इस प्रयोग में बिजली की तरंगों और हवा के ज़ोर का इस्तेमाल किया गया। इस टुकड़े को जब विद्युत तरंगों और वायु की ऊर्जा से धकेला गया तो यह ‘छोटा-क़ालीन’ एक सेंटीमीटर प्रति सेकेंड की रफ़्तार से आगे बढ़ने लगा।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क़ालीन के पहले प्रारुप में बदलाव और सुधारों के ज़रिए इसे एक मीटर प्रति सेकेंड की गति से उड़ने के लायक बनाया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिक फ़िलहाल इस प्रयोग के तहत प्लाटिक के इस टुकड़े को ‘उड़ने’ के बजाय ‘तैरने’ में सक्षम मान रहे हैं।

प्रयोग से उत्साहित

प्रयोग से जुड़े वैज्ञानिक दल के प्रमुख जेफ़रीज़ के मुताबिक,''फ़िलहाल यह ज़रूरी है कि इस टुकड़े को ज़मीन के नज़दीक रखा जाए क्योंकि ऐसा करने पर ज़मीन और प्लाटिक के इस टुकड़े के बीच हवा का दबाव बन जाता है जो इसे आगे बढ़ने का आधार देता है.''

अपने प्रयोग की सफलता से उत्साहित वैज्ञानिक अब सौर-ऊर्जा पर आधारित एक बड़े ‘क़ालीन’ का प्रारुप बनाने की तैयारी कर रहे हैं, जो बिना किसी सहारे लंबी दूरी तक सफ़र तय कर पाएगा।

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रयोग के पूरी तरह सफल होने और इस क़ालीन के तैयार होने पर इसे मंगल जैसे ग्रहों की ऊबड़-खाबड़ ज़मीन और धूलभरे-धुंधले वातावरण में इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसी जगहों पर आमतौर से अंतरिक्ष यान या विमान चल नहीं पाते और ख़राब हो जाते हैं।

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