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-पूर्व सीएम एनडी तिवारी ने 26 जनवरी 1947 को सीनेट हाल पर यूनियन जैक उतारकर फहराया था तिरंगा

एनडी तिवारी का इलाहाबाद कनेक्शन

1945-46 में यहां पढ़ने आए

1947 में छात्रसंघ अध्यक्ष बने

dhruva.shankar@inext.co.in

ALLAHABAD: यूं ही नहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है। गुरुवार को जब नई दिल्ली के मैक्स हास्पिटल में जब उप्र और उत्तराखंड के सीएम रह चुके एनडी तिवारी का निधन हुआ तो विश्वविद्यालय छात्रसंघ के दो पूर्व अध्यक्ष रामाधीन सिंह और श्याम कृष्ण पांडेय के दिलों में उनसे जुड़ी पुराने दिनों की यादें ताजा हो गई। वजह, देश की आजादी से पहले से लेकर विश्वविद्यालय छात्रसंघ बहाली और श्री तिवारी के अध्यक्ष बनने तक ना केवल उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को शिकस्त दी। बल्कि 26 जनवरी 1947 को एनडी तिवारी ने विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक सीनेट हॉल पर उस समय लहरा रहे यूनियन जैक को हजारों छात्रों की मौजूदगी में उतारकर वहां पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया था।

तिरंगा फहराया तो कुलपति ने किया था निष्कासित

एनडी तिवारी ने जब हजारों छात्रों की मौजूदगी में सीनेट हाल पर तिरंगा फहराया था तो उप्र के तत्कालीन गवर्नर को यह बात नागवार गुजरी थी। उन्होंने उस समय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ। ताराचंद्र से बात की और इस प्रकरण पर नाराजगी जाहिर की थी। छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष श्याम कृष्ण पांडेय बताते हैं कि नाराजगी का आलम यह था कि कुलपति ने तिरंगा फहराने पर श्री तिवारी को विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया था और तीन सौ रुपए का जुर्माना भी लगाया था। इससे आक्रोशित छात्रों ने इलाहाबाद बंद का ऐलान किया और स्थिति यह थी पूरे शहर में सन्नाटा पसरा हुआ था।

आजादी के बाद बने थे छात्रसंघ के पहले अध्यक्ष

श्री तिवारी के समर्थन में सुबह से लेकर शाम तक इलाहाबाद बंद का व्यापक असर हुआ तो देर शाम को कुलपति डॉ। ताराचंद्र ने उनका निष्कासन वापस ले लिया था। इस प्रकरण के बाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ का चुनाव हुआ था। तब तक एनडी तिवारी की लोकप्रियता इतनी हो चुकी थी कि वे आजादी के बाद हुए पहले छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में जीत हासिल की थी। उस समय श्री तिवारी एमए राजनीति विज्ञान में अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे। पूर्व अध्यक्ष रामाधीन सिंह ने बताया कि वे सिर्फ छह महीने के लिए अध्यक्ष बने थे क्योंकि आजादी के बाद पहला चुनाव छह-छह महीने के अंतराल पर करने का निर्णय लिया गया था।

छात्रसंघ के लिए सात दिनों तक अनशन

उत्तराखंड से 12वीं की पढ़ाई के बाद 1945-46 में एनडी तिवारी ने बीए में दाखिला लिया था। उस समय छात्रसंघ पर बैन लगा हुआ था। इसकी वजह यह थी कि 12 अगस्त 1942 को जब विश्वविद्यालय की छात्राओं ने कचहरी में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए छात्रसंघ भवन से जुलूस निकाला था। उस समय तत्कालीन कलेक्टर मिस्टर डिक्सन ने छात्राओं पर लाठीचार्ज कर दिया था और गोलियां चलवा दी थीं। इसमें लाल पद्मधर को गोल लगी थी और वे शहीद हो गए थे। पूर्व अध्यक्ष श्री पांडेय ने बताया कि लाल पद्म धर के शहीद होने के बाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ को बैन कर दिया गया था। चार साल के लिए विश्वविद्यालय को भी बंद कर दिया गया था। जब एनडी तिवारी यहां आए तो इसे बहाल करने के लिए एनडी तिवारी ने सात दिनों तक आमरण अनशन किया था। अनशन का असर यह हुआ कि सातवें दिन शाम को विश्वविद्यालय व छात्रसंघ दोनों को बहाल करने का आदेश जारी किया गया था।

पहले चुनाव में बने थे विधायक

छात्रसंघ अध्यक्ष बनने और उसके पहले तक एनडी तिवारी स्वराज भवन के सर्वेट क्वॉर्टर में रहकर पढ़ाई किया करते थे। उनके प्रिय शिष्यों में शुमार पूर्व अध्यक्ष रामाधीन सिंह ने बताया कि उनके भीतर देश की आजादी और आम लोगों के लिए लड़ने का जज्बा हर वक्त रहता था। विश्वविद्यालय में अध्यक्ष होने के बाद उनकी पढ़ाई पूरी हो गई थी। उसके बाद वे उत्तराखंड वापस चले गए और प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़े और पहली बार में ही विधायक चुने गए थे।

कॉलिंग

भारत माता ने अपना सच्चा सपूत खो दिया है। वे देश की आजादी के कभी ना भूलने वाले योद्धा हैं। उन्होंने भारत माता को सजाने, संवारने व उनके विकास में हमेशा अग्रदूतों में शामिल रहेंगे।

-प्रमोद तिवारी, सांसद राज्यसभा

छात्रसंघ को गुलामी की दास्तान से आजाद कराने में उनके योगदान को देश कभी नहीं भूल सकता है। मुझे गर्व होता है कि मैं उस परंपरा से जुड़ा हुआ हूं। इसके लिए एनडी तिवारी ने लम्बी लड़ाई लड़ी थी।

-रामाधीन सिंह, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, इविवि

विश्वविद्यालय के मुख्य प्रशासनिक भवन सीनेट हाल पर श्री तिवारी ने पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। इसकी वजह से उन्हें निष्कासित किया गया था। लेकिन उनकी लोकप्रियता व सज्जनता की वजह से विवि के कुलपति को बैकफुट पर आना पड़ा था।

-श्याम कृष्ण पांडेय, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, इविवि