फिलिप पिनेल ने बताया पागलपन एक बीमारी है

फिलिप पिनेल डॉक्टर तो थे ही साथ ही वो एक राइटर, ट्रांसलेटर और एडीटर भी थे। उन्होंने 15 वर्षो तक इस विषय पर कई किताबे लिखी। उन्होंने पागलपन को मानसिक बीमारी बताकर उसका ईलाज भी खोजा। फ्राँस के डॉक्टर फिलिप पिनेल को लोग पूरा नहीं आधा पागल तो समझते ही थे। उन्हें अयोग्य डॉक्टर की उपाधि दे रखी थी। इसका कारण था कि उन्हें पागलों के साथ बहुत अधिक सहानुभूति थी। वे चाहते थे कि इन मनुष्यों के साथ भी मनुष्य जैसा व्यवहार किया जाये।

1791 में पागलों के साथ कैदियों जैसा व्यवहार किया जाता था। उन्हे कोई वैज्ञानिक उपचार भी नहीं दिया जाता था।

पागलों को दी जाती थी कैदियों जैसी यातनायें

1791 के दशक में पागलों को भारी- भारी जंजीरों में जकड़ कर कमरों में बंद कर दिया जाता था। उनका दिमाग ठीक करने के लिए हन्टरों से मारा जाता था। पागलों के उपचार की यह एक आम व्यवस्था थी। डॉ. फिलिप पिनेल निरपराध पागलों को कैदियों की तरह जीवन जीते देख दुखी हो जाते थे। जब सरकार तक बात पहुँची तो डॉ.फिलिप पिनेल को पागल समझकर पागलखाने प्रबन्धक बना दिया। पागलखाने पहुँचकर वहाँ के अधिकारियों से अनुरोध कर डॉ. फिलिप पिनेल ने पागलों की हथकड़ियाँ, बेड़ियाँ खुलवा दीं। डॉ. फिलिप पिनेल की इस सफलता से पागलों के उपचार की मनोवैज्ञानिक विधि शुरु हुई।

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