- अव्यवस्था में फंसे परीक्षकों पर हावी हो रही झल्लाहट

- सेंटर्स पर परीक्षकों के लिए सुविधा के नाम पर कुछ नहीं

ALLAHABAD: मूलभूत सुविधाओं की कमी के बीच क्लासेज की बेंच पर लगे कापियों के ढेर। इसके ऊपर से मौसम का कहर। ये चीजें किसी को भी फ्रस्ट्रेट करने के लिए काफी है। परेशान परीक्षकों की फ्रस्ट्रेशन का खामियाजा कहीं स्टूडेंट्स की कॉपियों पर न निकले। इसका भय बना हुआ है। फ्राइडे को आईनेक्स्ट की टीम ने मूल्यांकन केन्द्रों पर मौजूद व्यवस्थाओं का रियलिटी चेक किया। टीम को कई ऐसे सेंटर्स मिले, जहां कमरों में बिजली, पानी और टॉयलेट जैसी मूलभूत सुविधाओं का ही अकाल पड़ा हुआ था। ऐसे में लगातार बढ़ रही गर्मी के बीच हो रहे मूल्यांकन की हालत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

पानी पीना हो तो बहार जाएं

बोर्ड की कापियों के मूल्यांकन के लिए बनाएं गए सेंटर्स में सबसे अधिक समस्या परीक्षकों को पीने के पानी को लेकर झेलनी पड़ रही है। आईनेक्स्ट की टीम ने जब केपी इंटर कालेज में जाकर देखा तो वहां पर परीक्षकों ने समस्याओं की लंबी चौड़ी गाथा कह डाली। मूल्यांकन के दौरान कई कमरों के बीच एक खुला हुआ घड़ा रखा है। जिसमें पीने का पानी स्टोर किया जा रहा है। जो कि पीने लायक नहीं रह जाता। सीएवी में भी ऐसी ही हालत देखने को मिली। जहां परीक्षकों को पानी पीने के लिए कालेज में बनी पानी की टंकी तक जाना पड़ता है। वहां भी साफ सफाई की कोई व्यवस्था नहीं दिखी। वे कहते हैं कि ऐसे में निर्धारित समय के भीतर कापियों के मूल्यांकन का कार्य करना बेहद मुश्किल है।

पसीने ने किया हाल बेहाल

कई ऐसे सेंटर्स हैं, जहां कक्षों में पंखे ही नहीं हैं। जिन कमरों में पंखे हैं वहां भी सिर्फ शो पीस के लिए ही लगे हुए हैं। ऐसे में पसीने से बेहाल परीक्षक कापियों के मूल्यांकन का कार्य किस मनोस्थिति करेगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। सेंटर्स पर कई ऐसे टीचर्स भी दिखे जो कपड़े उतार कर कापियों का मूल्यांकन करने पर मजबूर दिखे। सीएवी इंटर कालेज में ऐसा नजारा भी देखने को मिला। जब कमरों में पर्याप्त लाइट की व्यवस्था नहीं होने के कारण परीक्षकों को गैलरी में बैठकर खुले में कापियों का मूल्याकंन करना पड़ रहा है। इस बारे में टीचर्स ने बताया कि कई बार इसकी कम्प्लेन की गई, लेकिन कोई रिजल्ट नहीं मिला।

बोझ भी उठाना पड़ता है

मूल्यांकन कार्य में लगे परीक्षकों को सिर्फ कापियां ही नहीं जांचनी रहती, उनका बोझ भी उठाना पड़ रहा है। परीक्षकों की माने तो कोठार से बोरे में सील कापियों के बंडल को लाने और उन्हें आपस में बांटने से लेकर मूल्यांकन के बाद उन्हें वापस जमा करने तक का कार्य स्वयं करना पड़ता है। कापियों के बोझ को उठाने के लिए सेंटर्स पर कोई भी चपरासी मौजूद नही है। परीक्षक इन चीजों के लिए भी कई बार सेन्टर्स इंचार्ज से कह चुके हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नही है। इतना ही नहीं ओएमआर सीट की द्वितीय प्रति में लगाने के लिए जरूरी रबड़ बैंड तक मौजूद नहीं रहता है।

टॉयलेट की भी नहीं व्यवस्था

केपी इंटर कालेज में टीचर्स के सामने टॉयलेट का अभाव भी बड़ी परेशानी का सबब है। जमुनीपुर कोटवा के एक विद्यालय से आए टीचर अश्विनी कुमार दूबे ने बताया कि सेन्टर पर टॉयलेट जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए परेशान होना पड़ता है। ऐसे में अगर किसी परीक्षक को अचानक लू लगने या फिर किसी दूसरे कारणों से पेट खराब हो जाए तो उसे सुलभ काम्प्लेक्स तक जाना पड़ता है। महिला परीक्षकों के लिए तो ज्यादा दिक्कत होती है।