धनबाद में जमीन के नीचे कोयला खदानें मुद्दत से सुलग रही हैं, लेकिन यहां जमीन के ऊपर माफिया गैंगवार की जो आग लगी है, उसकी आंच भी कुछ कम नहीं है. माफिया वार की इस आग को ईंधन मिलता है काले हीरे यानी कोयले के सालाना 800 करोड़ रुपए वाले उस कारोबार से, जो झारखंड के धनबाद और बिहार से लेकर यूपी के वाराणसी, बलिया, कानपुर तक पसरा है. पैसे की अंधाधुंध बरसात करने वाले कोयले के इस कारोबार के साथ-साथ स्क्रैप, ठेकेदारी, रंगदारी और नेतागीरी के धंधे की बादशाहत की चाहत माफिया गैंग्स के बीच चलनेवाले गैंगवार की मुख्य वजह है.

1967 से अब तक...

कोयले के धंधे में वर्चस्व की लड़ाई यूं तो यहां छिटपुट तरीके से पचास के दशक से ही शुरू हो गई थी, लेकिन माफियागीरी ने यहां दस्तक दी साठ के दशक में. 1967 से लेकर अब तक 40 से भी ज्यादा बड़े कारोबारी, नेता और ठेकेदार माफियाओं की इस खूनी लड़ाई की भेंट चढ़ चुके हैं. हालांकि इस दौरान छोटे-मोटे कारोबारियों, मुंशियों, कामगारों और मामूली हैसियत वाले लोगों की हत्याओं की गिनती कर ली जाए, तो खूनी जंग की भेंट चढऩेवालों की तादाद सैकड़ों में होगी.

धनबाद से लेकर यूपी-बिहार तक

इन लड़ाइयों में यूपी-बिहार के बड़े क्रिमिनल गैंग्स शामिल रहे हैं और इस गैंगवार की गूंज दिल्ली में सत्ता के गलियारों से लेकर पार्लियामेंट तक सुनाई पड़ती रही है. धनबाद के एमपी रहे माक्र्सवादी लीडर एके रॉय ने 80 के दशक में पार्लियामेंट में धनबाद के माफिया राज पर बहस के दौरान कहा था, हमारे धनबाद में आजकल  ए+बी+सी=डी हो गया है. उन्होंने इस एब्रीविएशन का खुलासा करते हुए आगे कहा था आरा+बलिया+छपरा =धनबाद. उनके कहने का मतलब था कि धनबाद में इन इलाकों के बाहुबलियों का राज चलता है.

 

माफिया राज का आगाज

धनबाद में कोयला, स्क्रैप के धंधे से लेकर ट्रेड यूनियन तक में माफिया स्टाइल की शुरुआत 50 के दशक के आस-पास हुई, जब बी.पी. सिन्हा इस इलाके में ट्रेड यूनियन के सबसे बड़े नेता के रूप में उभर रहे थे. उन्होंने बिहार और यूपी के सीमावर्ती इलाकों से लठैतों और बाहुबलियों की एक फौज इस इलाके में 'आयात’ की और ट्रेड यूनियन से लेकर स्थानीय राजनीति तक में लगभग दो दशकों तक अपना सिक्का कायम रखा.  सिन्हा का आवास व्हाईट हाउस के रूप में मशहूर हुआ करता था और पूरे इलाकेे में माफिया स्टाइल में उनकी तूती बोलती थी. 28  मार्च 1979 में सिन्हा की उनके आवास पर ही हत्या कर दी गई. इस हत्या में खुद उन्हीं की छाया में पले बाहुबलियों का नाम उछला था. दरअसल सिन्हा ने जिस माफिया स्टाइल की नींव डाली थी, उसके शिकार वो खुद बन गए.

गुनाहों के 'देवता'

कहते हैं कि कोयलांचल में बीपी सिन्हा की बादशाहत का सूरज अस्त करने में सूरजदेव सिंह का हाथ था. सिन्हा हत्याकांड में उनके  दाएं हाथ माने जाने वाले रघुनाथ सिंह का नाम उछला था. बीपी सिन्हा के बाद सूरजदेव सिंह माफिया राज की सबसे बड़ी शख्सियत के रूप में उभरे. वे मूल तौर पर बलिया के गोनिया-रानीगंज गांव के रहनेवाले थे. कहते हैंं कि गांव में कठिन पारिवारिक आर्र्थिक स्थिति की वजह से वे धनबाद आए और मामूली मुंशी के रूप में काम शुरू किया.  बाद में वह कोयलांचल के सबसे कद्दावर नेता बीपी सिन्हा के सबसे बड़े बाहुबली के रूप में उभरे और जब सिन्हा की हत्या हुई, तो निर्विवाद रूप से वह सबसे बड़े माफिया किंग साबित हुए. माफिया किंग के तौर पर उनके आभार की स्टोरी कई किंवदंतियों से गूंथी है. सूरजदेव सिंह का सरायढेला स्थित आवास सिंह मैंशन लंबे वक्त तक धनबाद कोयलांचल में कोयले के कारोबार से लेकर रंगदारी के धंधे और ट्रेड यूनियन के सेल्फ स्टाइल्ड सेक्रेटेरियट के रूप में मशहूर रहा.

ऐसा था रसूख

उनके खिलाफ हत्या से लेकर रंगदारी के दो दर्जन से ज्यादा मामले धनबाद के विभिन्न थानों में दर्ज थे. वे एक-दो बार जेल गए. कई बार अंडरग्राउंड रहे, लेकिन इस 'देव’ के मुंह से जो फरमान निकलता, वह कोयलांचल का कानून बन जाता था.  धनबाद के किसी अफसर की हिम्मत नहीं होती थी कि वह उनके कानून को चुनौती दे. सूरजदेव सिंह के राजनीतिक रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्राइम मिनिस्टर रहे चंद्रशेखर तक उनके आवास पर चूड़ा-दही खाने पहुंचते थे.

 

सूरजदेव लंबे वक्त तक एमएलए भी रहे. 91 में दिल के दौरे से उनकी मौत हो गई. उनके बाद भी माफिया गैंग सिर उठाते रहे और उनके बीच वर्चस्व की जंग में जब-तब बंदूकें गरज उठती हैं.

सूरजदेव के बाद...

सूरजदेव सिंह के बाद भी उनके आवास  'सिंह मैंशन’ का रसूख कम नहीं हुआ. इस बीच  पिछले एक-डेढ़ दशक में 'सिंह मैंशन’ के पैरेलल जो ताकत खड़ी हुई, उसके अगुवा थे सुरेश सिंह. वह न सिर्फ धनबाद के कोल किंग कहलाने लगे, बल्कि उनका 'रामायण निवास’ इलाके में माफिया राज की दूसरी सबसे बड़ी धुरी माना जाने लगा. पर, इसी साल की शुरुआत में एक वैवाहिक समारोह में सुरक्षाकर्मियों से घिरे सुरेश सिंह को क्रिमिनल्स ने सरेआम गोलियों से भून डाला.

माफिया कैसे-कैसे

बहरहाल धनबाद में माफिया गैंग्स के बीच 60 के दशक से आज तक जारी खूनी टकराव में जिन शख्सियतों के नाम इन गैंग्स के सरगना के रूप में सामने आते रहे हैं, उनमें सकलदेव सिंह, विनोद सिंह, नौरंगदेव सिंह, सत्यदेव सिंह, दून बहादुर सिंह, रघुनाथ सिंह, राजदेव सिंह, राजीव रंजन सिंह, रामनाथ सिंह, रामचंद्र सिंह, बच्चा सिंह, राजू यादव, सुरेश सिंह, प्रमोद सिंह, फहीम खान सहित कई अन्य नाम शामिल हैं.

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