क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ : राजधानी का चुटिया इलाका तालाबों के लिए जाना जाता था. एक समय था जब यहां पर प्राइवेट व सरकारी के तौर पर दर्जन भर तालाब थे. लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ी तो तालाबों का अस्तित्व भी खत्म होता गया. अब तो स्थिति यह हो गई है कि चुटिया की शान कहे जाने वाले तालाबों की जगह पर बड़ी-बड़ी इमारतों ने ले ली है. यहीं वजह है कि चुटिया के अधिकतर इलाकों में पानी का लेवल पाताल में चला गया है. इससे यहां पानी को लेकर परेशानी बढ़ गई है. इस कारण गर्मी में लोग अपने घरों को छोड़कर दूसरे शहर का भी रुख करने लगे हैं.
पाताल में गया पानी का लेवल
इलाके में छोटे-बड़े कई तालाब थे. जिसमें से कुछ प्राइवेट तालाब भी हुआ करते थे. ऐसे में पानी के लिए लोगों को ज्यादा दिक्कत नहीं होती थी. वॉटर लेवल भी कभी कम नहीं होता था. लेकिन हाल के दिनों में इलाके के कुएं सूख गए. वहीं चापानलों में भी पानी खत्म हो गया. अब लोग पानी के लिए दौड़ लगा रहे हैं.
निजी तालाब भी गायब
बिल्डिंग बनाने के चक्कर में लोगों ने सरकारी तालाबों का तो अतिक्रमण कर लिया. तालाबों को भरकर घर बनाना शुरू किया और फिर तालाब को ही गायब कर दिया गया. वहीं प्राइवेट तालाबों को भी मालिकों ने भरकर वहां मैदान बना दिया. अब इन जगहों पर अपार्टमेंट और हॉस्टल खड़े हो गए हैं.
लापरवाही से भुगत रही पब्लिक
एक समय में चुटिया में जाने से लोग डरते थे. लेकिन जब लोगों ने रहना शुरू किया तो मोहल्ले बस गए. इसके बाद अपार्टमेंट और फिर बड़े-बड़े घरों से पूरा इलाका भर गया. तेजी से बढ़ती आबादी के कारण जगह कम पड़ने लगी तो लोगों ने तालाबों को ही निशाना बनाया. इनका अस्तित्व खत्म कर वहां पर बस गए. इस पर प्रशासन ने भी ध्यान नहीं दिया. आज उनकी लापरवाही का खामियाजा शहर और पब्लिक भुगत रही है. पानी पानी के लिए तरस रही है.
वर्जन
चुटिया को तालाबों का इलाका कहा जाता था. लेकिन आज यहां पर गिनती के तालाब रह गए हैं. पानी का लेवल भी पाताल में चला गया. अगर इसे बचाने की पहल की जाती तो आज ऐसी स्थिति नहीं आती कि लोगों को पानी के लिए भटकना पड़ता.
प्रभाकर नाग, अध्यक्ष, झारखंड आदिवासी विकास समिति, चुटिया