RANCHI: नामकुम इलाके में स्वर्णरेखा नदी से एक दो महीने की बच्ची का शव बरामद होने के बाद सोशल मीडिया में परित्यक्त शिशुओं पर बहस शुरू हो गई है। इस घटना को मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा बच्चों की बिक्री मामले से भी जोड़ा जा रहा है। वहीं, सामाजिक संगठनों का कहना है कि नवजात को बचाने के लिए सरकार द्वारा कठोर कदम उठाये जाने की जरूरत है। आश्रयणी फाउंडेशन के अंतर्गत काम करने वाली संस्था पा-लो-ना ने एक आंकड़ा पेश करते हुए नवजात को छोड़े जाने के मामले को गंभीर बताया है। संस्थापक आर्य मोनिका ने बताया है कि झारखंड में महज छह महीने के भीतर 34 परित्यक्त बच्चे मिले हैं। इसमें 23 की मौत हो गई।

झारखंड में बढ़ रहे हैं मामले

परित्यक्त नवजात मिलने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। वर्ष 2018 में महज 6 महीने के भीतर 33 परित्यक्त नवजात मिले हैं, जिसमें 22 की मौत हो गई। सिर्फ 11 शिशु ही जीवित मिले। जनवरी से जून के बीच जो भाग्यशाली बच्चे जीवित बच गए। उसमें 7 बेटियां और तीन बेटे शामिल हैं। एक अज्ञात शिशु के लिंग की जानकारी संस्था को नहीं मिल पाई। 4-5 शिशुओं की पहचान नहीं हो पाई। ये वैसे मामले हैं, जिसमें शिशु के लिंग का पता नहीं चल पाया। इतना ही नहीं, एक भ्रूण भी मिला था।

हर माह फेंके जा रहे पांच बच्चे

आंकड़ों के मुताबिक, हर महीने कम से कम 5 बच्चे फेंके जा रहे हैं, जिनमें से अधिकतर की मौत हो जाती है। वर्ष 2018 के आंकड़ों पर गौर करें, तो जनवरी में 5 बच्चों को फेंक दिया गया, जिसमें 4 की मौत हो गई। फरवरी, मार्च और अप्रैल में भी हर महीने चार-चार परित्यक्त शिशुओं की मृत्यु हुई। आर्य मोनिका इस बात पर आश्चर्य जताती हैं कि इतनी बड़ी संख्या में नवजात को फेंका जा रहा है। छोटे-छोटे बच्चों के सौदे हो रहे हैं, लेकिन झारखंड सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। मोनिका का कहना है कि ये आंकड़े विभाग को जगाने के लिए काफी होना चाहिए।

पोस्टमार्टम, पर मौत का खुलासा नहीं

यहां बताना प्रासंगिक होगा कि नामकुम में नदी किनारे मृत मिली बच्ची के शव को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। लेकिन, उसकी मौत के कारणों का किसी ने खुलासा नहीं किया। पुलिस ने बच्ची की हत्या की आशंका से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि या तो बच्ची की नॉर्मल डेथ हुई और उसके माता-पिता ने उसे यहां लाकर छोड़ दिया या वह अविवाहित मां की संतान रही होगी।

पुलिस नहीं दर्ज करना चाहती नए मामले

हालांकि, बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने वाले पुलिस अधिकारी की तारीफ हो रही है, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि पहले से ही केस के बोझ तले दबी पुलिस नए मामले दर्ज नहीं करना चाहती। इसलिए ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं लेती। उसकी अनदेखी करती है। यही वजह है कि ऐसे बच्चों को बचाने के लिए कोई कठोर कानून आज तक नहीं बन पाया।