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RANCHI: 23 जनवरी 2016 को दिन के 10.36 बजे देश के तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने जब ऐतिहासिक रांची पहाड़ी पर तिरंगा फहराया तो रांची में दुनिया के सबसे बड़े तिरंगा लहराने का रिकार्ड बन गया. सूरज की तीखी रोशनी के बीच पर्रिकर ने जब बटन दबाया तो सबकी आंखें आकाश की ओर मुड़ गईं और धीरे-धीरे 99 फीट लंबा और 66 फीट ऊंचा तिरंगा आकाश में खुलने लगा. हवाओं ने इस विशाल तिरंगे का स्वागत किया और फिर अपनी लय में तिरंगा फहरने लगा. पूरा वातावरण भारत माता की जय से गूंज उठा. गौरतलब हो कि गोवा के सीएम मनोहर पर्रिकर अब नहीं रहे और अब उनकी यादें शेष रह गई हैं. उनका निधन देश व गोवा के साथ-साथ रांची के लिए भी दुखदायी है.

आज पहाड़ी भी उदास है
यह दुर्भाग्य ही है कि अब रांची पहाड़ी पर सिर्फ पोल बच गया है.तिरंगा भी अब नहीं फहराता. पर्रीकर के निधन से उदास तो पहाड़ी भी होगी ही. जबकि 23 जनवरी 2016 को वह अद्भुत क्षण था, जब दुनिया का सबसे बड़ा तिरंगा यहां लहराया था. झंडा लहराने के बाद मचान पर चढ़े मजदूर ऊपर ही नाचने लगे थे. वे दो महीने से दिन रात इस काम में लगे थे. न ठंड की परवाह की न रात की. इंजीनियर से लेकर हर मजदूर तक. और, ये ही क्यों, इस पल का इंतजार तो पूरा देश कर रहा था. वह भी प्रतीक्षारत था कि कब रांची इतिहास बनाए और दुनिया देखे कि विश्व का सबसे बड़ा तिरंगा रांची में लहरा रहा है.

गांधी के अनुयायी ने किया था स्वागत
मनोहर पर्रीकर का स्वागत करने गांधी के सबसे बड़े अनुयायी टाना भगत आए थे. ये सभी स्वतंत्रता सेनानी टाना भगतों के वंशज थे. इनमें से जतरा टाना भगत के पोते बिस्वा टाना भगत, दयाल टाना भगत और इस पहाड़ी पर फांसी न देने के लिए अंग्रेजों से लड़ने वाले बरुआ टाना भगत के वंशज सोमा टाना भगत भी मौजूद थे.