कहानी :
स्वतंत्र भारत की हॉकी टीम की पहली ओलिंपिक विजय की कहानी है गोल्ड

समीक्षा :
मुझे ट्रेंड से कोई गिला नहीं है, बस तकलीफ इस बात से है कि अब ये फिल्में एक ही ढर्रे पे बन रही है। जैसे इसका भी फिक्स फॉर्मूला बनाने की जल्दी है बॉलीवुड को। ये फ़िल्म भी वैसे ही शुरू होती है एक अंडरडॉग स्टोरी की तरह और फिर एन्ड में तो गोल्ड मिलना है। इससे उबरने के लिए लेखक निर्देशक रीमा कागती कई प्लाट और सब्प्लॉट कहानी में डालती हैं जिससे कहानी दस दिशाओं में भागने लगती है और इसी वजह से कई किरदार कहानी में जुड़ते हैं और आपको लुभाने की कोशिश करते हैं, पर जिस फ़िल्म में अक्षय हों वहां दूसरे किरदारों को स्क्रीनटाइम मिल जाये ऐसा मुश्किल ही है इसी वजह से फ़िल्म एक टीम फ़िल्म से हटती जाती है और एक समय पर आके बस उनपे ही टिक जाती है। फ़िल्म के डायलॉग देशभक्ति से पटे पड़े हैं पर बंगला भाषा बड़े अजीब ढंग से बोलने के कारण कोई कोई डायलॉग कॉमिक साउंड करने लगता है। फ़िल्म के सेट, कॉस्ट्यूम और सिनेमाटोग्राफी बहुत अच्छी है। फ़िल्म का क्लाइमेक्स काफी नर्व स्टिमुलटिंग है, यानी अंत भला तो सब भला।

गोल्ड मूवी रिव्‍यू : चक दे अक्षय कुमार

अदाकारी :

अक्षय तो अब सेट हो चुके हैं नेतागिरी के रोल में, ये वाला भी उनपे सूट करता है। सनी कौशल इस फ़िल्म के सरप्राइज पैकेज हैं। कुलमिलाकर अपने स्लो सेकंड हॉफ के बावजूद ये फ़िल्म आपको सेकंड हाफ में खूब मनोरंजन देगी तो इस हफ्ते जा सकते है देखने गोल्ड मूवी

रेटिंग : 3 STAR

Review by : Yohaann Bhaargava
Twitter :
yohaannn

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