यह इंटरनेट कितना तेज़ है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी अमरीका में इंटरनेट की औसत गति 12.67 एमबीपीएस है। भारत में यह गति 1.92 एमबीपीएस है।

वर्तमान में दुनिया में सबसे तेज़ औसत ब्रॉडबैंड दक्षिण कोरिया में उपलब्ध है जहाँ 31.77 एमबीपीएस की डाउनलोड गति उपलब्ध है। दुनिया में ब्रॉडबैंड की गति के मामले में अमरीका 30 वें स्थान पर आता है जबकि भारत इस मामले में 137 वें पायदान पर खड़ा है।

भविष्य

कई विशेषज्ञों का मानना है कि गूगल फाइबर नाम की यह परियोजना इंटरनेट का भविष्य है। पर इस परियोजना के तहत उपलब्ध होने वाली इंटरनेट की स्पीड इस कदर ज़्यादा है कि उद्योगों और लोगों के जीवन पर इसका क्या प्रभाव पडेगा यह कह पाना मुश्किल है।

कैन्सस शहर में एक तकनीकी मार्केटिंग सलाहकार एरोन डेकन कहते हैं " यह बताता है कि दुनिया किस तरफ जा रही है."

हालाँकि इंटरनेट का बीज अमरीका में ही सबसे पहले पनपा था लेकिन समय के साथ इंटरनेट डाउनलोड के मामले में अमरीका पिछड़ता ही चला गया। डेकन कहते हैं कि दुनिया में कुछ जगहें हैं जहाँ बहुत तेज़ ब्रॉडबैंड हैं लेकिन अमरीका में समय के साथ बदलने की रफ़्तार तुलनात्मक रूप से कम है।

अनजाने असर

पर एक महा तेज़ ब्रॉडबैंड का कैन्सस शहर के आम जन जीवन पर क्या असर पडेगा यह अनुमान लगा पाना विशेषज्ञों के लिए भी मुश्किल है। बहुत तेज़ डाउनलोड का मतलब है कि लोग जिन वेब साइटों का इस्तेमाल पहले करते थे अब उनका इस्तेमाल अधिक तेज़ी के साथ कर पायेगें। डेकन कहते हैं " लोग मजाक में कहते हैं कि इसका अर्थ होगा तेज़ यू ट्यूब डाउनलोड."

डेकन के अनुसार इस नए ब्रॉडबैंड की वजह से जिस तरह से वीडियों बनाए जाते हैं उन पर असर पडेगा। इसका सीधा मतलब यह भी होगा कि छोटे व्यवसायों और उद्योग धंधों के लोग तेज़ी के साथ बिना किसी समस्या के वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर पाएगें। इसके अलावा छोटे व्यवसाय क्लाउड कम्प्यूटिंग का व्यापक इस्तेमाल कर पाएगें।

डॉक्टरों और अस्पतालों को यह फायदा होगा कि वे आसानी के साथ भारी भरकम मेडिकल चित्र जैसे एमआरआई के स्कैन भेज पाएगें। लोगों की सुरक्षा पर यह असर होगा कि बहुत ही उच्च क्षमता के सीसी टीवी कैमरों का इस्तेमाल किया जा सकेगा।

'वाई फाई बिन बेकार'

कैन्सस के लोगों के इस परियोजना को लेकर अति उत्साह के बावजूद कई लोग इसको लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। डेकन का कहना है "तकनीक एक दुधारी तलवार है। आप इसके ज़रिये अपने लिए नेतृत्व खडा कर सकते हैं या फिर आप एक गिनीपिग की तरह भी काम आ सकते हैं."

गूगल के द्वारा 2010 सुपर हाई स्पीड ब्रॉड बैंड की परिकल्पना सार्वजनिक किए जाने के बाद से दुनिया बदल चुकी है। ओहायो स्टेट यूनीवर्सिटी में भूगोल के प्रोफ़ेसर एड मालेकी जो की तकनीक और अर्थशास्त्र पर भी महारथ रखते हैं वो कहते हैं कि उपभोक्ता बदल रहा है।

मोबाइल कंपनियों की बढ़ती सख्ती के बाद आम उपभोक्ता ज़्यादा से ज़्यादा वाई फाई का इस्तेमाल करने लगे हैं। मालेकी के अनुसार अगर गूगल अपना सुपर फास्ट ब्रॉडबैंड वाई फाई पर उपलब्ध करता है तो तो ठीक है वरना यह लोगों की कोई ख़ास मदद नहीं करेगा."

अमरीका में तकनीक पर नज़र रखने वाली एक दूसरी विशेषज्ञ सुश्री बेले का कहना है कि दुनिया बदल देने वाली तकनीकों को जड़ पकड़ने में बरसों लग जाते हैं।

बेले के अनुसार "जब बिजली आई तो लोगों ने घरों में इसे इसलिए अपना कि यह तेल से जलने वाले दियों की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक थी। उस समय किसी महान दूरदृष्टा ने भी नहीं सोचा होगा कि बिजली का प्रयोग व्यापार और मानव जाति को किस तरह से बदल देगा."

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