- खाते में ट्रांसफर न होने के बाद होती रही पीएलए अकाउंट से निकासी

- 2009 में जाकर ट्रांसफर हुए महज 1.82 करोड़ रुपए

ब्याज लाने की कवायद तेज कर दी
वहीं कर्मचारियों के लगातार रिटायरमेंट होते रहे और इस अकाउंट से पैसा भी निकलता रहा, जिसकी वजह से करीब साढ़े 28 करोड़ से ज्यादा अमाउंट बिना ब्याज मिले ही खत्म हो गया। इस मामले की जानकारी होने के बाद 2015 में जिम्मेदारों ने शासन को ब्याज के लिए लेटर भेजा, लेकिन इसके बाद वह फिर इसे भूल गए। अब अब दैनिक जागरण आई नेक्स्ट में खबर छपने के बाद फिर एडमिनिस्ट्रेशन हरकत में आया है और उन्होंने ब्याज लाने की कवायद तेज कर दी है।

भेजा गया है शासन को रिमाइंडर
गोरखपुर यूनिवर्सिटी के पीएलए अकाउंट में पड़े पैसे पर ब्याज न मिलने से यूनिवर्सिटी को करीब 32 करोड़ 80 लाख रुपए का नुकसान हुआ है। अगर यह पैसा पहले ही ट्रांसफर हो जाता, तो यूनिवर्सिटी को यह ब्याज पहले ही मिल चुका होता। लेकिन नया खाता खुलने के बाद किसी ने इसके लिए अप्रोच नहीं किया और न ही किसी ने पैसा ट्रांसफर करने की ही सोची। जिसकी वजह से इसी अकाउंट से पैसा रिटायर्ड कर्मचारियों को दिया जाता रहा। जिस पीरियड का यूनिवर्सिटी को ब्याज नहीं मिला है और खाता डीएक्टिव रहा है, इस पीरियड में गवर्नमेंट को ब्याज देना है। ऐसी कंडीशन में यूनिवर्सिटी के जिम्मेदारों ने शासन को इसका रिमाइंडर भेजा है और सरकार से ब्याज के पैसों की डिमांड की है।

15 साल से ज्यादा पुराना मामला
गोरखपुर यूनिवर्सिटी में कर्मचारियों का जीपीएफ ट्रेजरी में जमा होता था। पीएलए अकाउंट होने की वजह से इसमें एंप्लॉइज और टीचर्स के जीपीएफ का पैसा भी इसी अकाउंट में आता था। साथ ही जितनी भी ग्रांट मिलती थी, वह भी इसी खाते में आती थी। जमा पैसे का ब्याज सरकार देती थी लेकिन शासन ने 2003 में जीपीएफ अकाउंट अलग खुलवाने के निर्देश दिए और साथ ही प्रदेश में सीएलए अकाउंट भी बंद करवा दिए। इस दौरान यूनिवर्सिटी का करीब 30 करोड़ रुपया पुराने अकाउंट में बचा हुआ था।

लापरवाही में नहीं हुआ ट्रांसफर
यूनिवर्सिटी के अकाउंट में इस तीस करोड़ रुपए को ट्रांसफर हो जाना चाहिए था। मगर जिम्मेदारों की अनदेखी और लापरवाही की वजह से उस वक्त पैसा ट्रांसफर नहीं हो सका। 2003 में सरकार ने सभी पीएलए अकाउंट बंद कर दिए, उसके बाद भी यूनिवर्सिटी का पैसा वहीं फंसा रहा और किसी ने उसे वहां से निकालने की जहमत गवारा नहीं की। मामले की जानकारी जिम्मेदारों 2009 में हुई, लेकिन इस दौरान जिम्मेदारों के पास महज 1.82 करोड़ रुपए ही खाते में बचे थे। पैसे तो ट्रांसफर करा लिए गए, लेकिन ब्याज की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। 2015 में फाइनेंशियल ऑडिट में जब खाते में गड़बड़ी सामने आई, तो फिर मामले में कागजी कार्रवाई शुरू हुई।

इसकी वजह से पैसा खत्म हो गया
यूनिवर्सिटी के डीएक्टिव हुए पीएलए अकाउंट से पैसे की निकासी होती रही, लेकिन इसका ब्याज नहीं मिला। इसकी वजह से पैसा खत्म हो गया। लेकिन 2002 से 2009 तक सात साल यूनिवर्सिटी को ब्याज नहीं मिला। 2015 में इसके लिए लेटर भेजा गया है, जिसका रिमाइंडर भी भेजा जा रहा है। यह करीब 32 करोड़ 80 लाख रुपए हैं।

- वीरेंद्र चौबे, फाइनेंस ऑफिसर, डीडीयूजीयू