- तमाम सरकारों को अपनों ने ही डाला मुश्किल में, फजीहत के बाद हो सके अरेस्ट

- कार्रवाई के लिये पीडि़तों को करना पड़ा संघर्ष, तब जाकर मिला इंसाफ

LUCKNOW: उन्नाव रेप कांड में आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को लेकर सरकार के शर्मसार होने का मामला कोई पहला नहीं है। इससे पहले भी तमाम सरकारों को उनके अपनों ने ही कठघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज भले ही विपक्षी पार्टियां कुलदीप सिंह सेंगर पर कार्रवाई में ढिलाई बरतने को लेकर वर्तमान सरकार पर सवाल उठा रही हों लेकिन, उनके दौर में भी आरोपों से घिरे नेताओं को सरकार व पुलिस का भरपूर सहयोग मिला। फजीहत और हंगामे के बाद ही उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सका। कुछ ऐसे ही मामले जो तत्कालीन सरकार के गले की हड्डी बन गए-

अमरमणि त्रिपाठी

पूर्व मंत्री व विधायक

बीती 9 मई 2003 को राजधानी के निशातगंज स्थित पेपरमिल कॉलोनी में रहने वाली कवयित्री 24 वर्षीया मधुमिता शुक्ला को दो बंदूकधारियों ने उनके घर में ही गोलियों से भून डाला। पुलिस ने मामले की जांच शुरू की तो शक की सुई चार बार के विधायक व पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की ओर घूमी। मधुमिता शुक्ला की हत्या के बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि वो गर्भवती थीं। कोर्ट के आदेश पर जब पेट में मौजूद बच्चे का डीएनए टेस्ट किया गया तो बच्चा अमरमणि त्रिपाठी के होने की पुष्टि हुई। लंबे समय तक राजधानी के राजनीतिक हलके में हंगामा मचता रहा। पुलिस भी अमरमणि पर कार्रवाई से कतराती रही। आखिरकार, सीबीआई जांच में पुष्टि हुई मधुमिता शुक्ला की हत्या अमरमणि व उनकी पत्‍‌नी मधुमणि के इशारे पर अंजाम दी गई। जिसके बाद 2007 में कोर्ट ने अमरमणि व मधुमणि को हत्या का दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

शेखर तिवारी

तत्कालीन विधायक

दिसंबर 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के जन्मदिन के लिये प्रदेश भर में चंदा इकट्ठा किया जा रहा था। औरैया के दिबियापुर के विधायक शेखर तिवारी ने स्थानीय पीडब्लूडी इंजीनियर मनोज गुप्ता से चंदा मांगा। इंजीनियर गुप्ता चंदा देने को राजी न हुए तो शेखर तिवारी और उनके गुर्गो ने उनकी बेरहमी से पिटाई कर दी। जिससे इंजीनियर मनोज ने दम तोड़ दिया। घटना के सामने आने के बाद प्रदेश में जमकर हंगामा हुआ। शुरुआत में पुलिस भी जांच और कार्रवाई करने से कतराती रही। आखिरकार लंबी फजीहत और हंगामे के बाद आरोपी विधायक शेखर तिवारी को अरेस्ट किया गया। जबकि, 6 मई 2011 को आरोपी विधायक को कोर्ट ने दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

पुरुषोत्तम द्विवेदी

तत्कालीन विधायक

बांदा के बहुचर्चित शीलू रेप कांड ने भी अपने दौर में प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया। दरअसल, तत्कालीन विधायक पुरुषोत्तम द्विवेदी ने जबरन अपने घर में बंधक बनाकर उसके संग रेप किया। पीडि़ता उन पर आरोप न लगा सके इसके लिये विधायक द्विवेदी के बेटे मयंक ने उसके खिलाफ चोरी की झूठी एफआईआर लिखवाकर उसे जेल भिजवा दिया। जनवरी 2011 में पेशी के दौरान पीडि़ता ने कोर्ट में अर्जी देकर विधायक पुरुषोत्तम पर 8 दिसंबर 2008 को रेप करने का आरोप लगाया। सत्ताधारी दल के विधायक होने की वजह से बीएसपी विधायक पर हाथ डालने से पुलिस कतरा रही थी। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामला सीबीआई के सुपुर्द किया गया। सीबीआई ने 16 जून 2012 को विधायक पुरुषोत्तम द्विवेदी पर रेप और उनके दो गुर्गो पर मारपीट व छेड़छाड़ की एफआईआर दर्ज की। जून 2015 में कोर्ट ने पुरुषोत्तम द्विवेदी को दोषी ठहराते हुए 10 साल की सजा सुनाई।

गायत्री प्रजापति

तत्कालीन मंत्री व विधायक

चित्रकूट निवासी महिला ने पूर्ववर्ती सपा सरकार में खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति व उनके गुर्गो पर रेप व बेटी के साथ रेप की कोशिश का आरोप लगाते हुए सनसनी फैला दी। ऐन चुनाव के पहले इस आरोप ने सपा सरकार को भी सकते में डाल दिया था। पीडि़ता का आरोप था कि वर्ष 2014 में नौकरी व प्लॉट दिलाने के बहाने उसे गायत्री प्रसाद प्रजापति के आवास पर बुलाया गया। जहां चाय में नशीला पदार्थ पिलाकर उसके संग मंत्री प्रजापति व उसके गुर्गो ने रेप किया। सत्ताधारी दल का होने के नाते पुलिस ने कार्रवाई करने में जमकर ढिलाई बरती। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मार्च 2017 में गौतमपल्ली थाने में पीडि़ता की एफआईआर दर्ज की गई। सरकार बदलने के बाद आखिरकार गायत्री प्रसाद प्रजापति व उसके गुर्गो को अरेस्ट कर जेल भेजा जा सका।