-शहर में बढ़ते पॉल्यूशन का असर स्कूली बच्चों के फेफड़ों को तेजी से कर रहा है बीमार

-हॉस्पिटल में सांस, दमा और एलर्जी के तेजी से पहुंच रहे मरीज, इनमें बच्चों व बुजुर्गो की संख्या ज्यादा

-डॉक्टर्स ने चेताया, स्कूलों की बदलें टाइमिंग वरना फेफड़ा हो जाएगा खराब

अगर आपका बच्चा सुबह स्कूल जाने के लिए सड़क पर उड़ते धूल और धुएं के बीच खड़ा होकर बस का इंतजार करता है तो जरा सावधान हो जाइये, कहीं ऐसा न हो कि आपका बच्चा स्कूल के बजाए हॉस्पिटल पहुंच जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि शहर में बढ़ते पॉल्यूशन का असर बच्चों के फेफड़ों को तेजी से बीमार कर रहा है। खासकर उनके जो सुबह 6 से 7 बजे के बीच स्कूल के लिए निकल रहे हैं। ऐसा हम नहीं चिकित्सक कह रहे हैं। इनका कहना है कि हॉस्पिटल्स में सांस और आंखों में जलन की समस्या की शिकायत लेकर पहुंचने वाले बच्चों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, जो कि चिंता का विषय है।

फेफड़ों में पहुंच रही जहरीली हवा

डॉक्टर्स की मानें तो दिवाली के बाद बच्चे सुबह 6 बजे से सड़क पर उड़ते धूल और स्मॉग के बीच बस का इंतजार करते दिखाई दे रहे हैं। लेकिन किसी को परवाह नहीं है कि इन बच्चों के कोमल फेफड़े जहरीली हवाओं के चलते बीमार हो रहे हैं। हालांकि इनके अपनों को इसकी जानकारी तब हो रही है जब बच्चा खांसते-खांसते हॉस्पिटल पहुंच रहा है। इन दिनों बीएचयू के एसएस हॉस्पिटल से लेकर प्राइवेट हॉस्पिटल्स तक में सांस, दमा और एलर्जी के मरीज पहुंच रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या बच्चे और बुजुर्गो की है।

स्कूलों की टाइमिंग हो चेंज

शहर में इन दिनों दम घोंटू हवा के बीच जब छोटे-छोटे बच्चे सुबह में स्कूल के लिए निकलते हैं तो वे सबसे ज्यादा पॉल्यूशन की चपेट में आते हैं। सुबह में सबसे ज्यादा पॉल्यूशन होता है और ऐसी हवा में बच्चे सांस लेते हुए स्कूल पहुंचते हैं। यही वजह है कि चिकित्सक स्कूल की टाइमिंग चेंज करने की वकालत कर रहे हैं। उनका कहना है कि लंबे समय तक ऐसी हवा में सांस लेने वाले बच्चों के लंग्स पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाएंगे। अगर लंग्स मेच्योर नहंी होंगे तो इन्हें उम्र भर के लिए परेशानी हो सकती है।

एक-एक सांस धकेल रहा अस्थमा में

बीएचयू के चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ। एसके अग्रवाल का कहना है कि शहर में पॉल्यूशन का स्तर बेहद खराब है, जो बच्चों को आउटडोर की इजाजत नहीं देता है। फिर भी बच्चे अर्ली मॉर्निग स्कूल जा रहे हैं। इस दौरान जहरीली हवा उनके सांस के माध्यम से लंग्स तक पहुंच रहा है। इससे उनकी एक एक सांस उन्हें अस्थमा और एलर्जी की ओर धकेल रहा है। हैरानी की बात ये है कि किसी बच्चे के मुंह पर मास्क नहीं है। जबकि स्कूल प्रशासन और पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों की केयर करें। अगर ये अभी भी नहीं चेते तो आने वाले दिनों में यह समस्या और भी बढ़ सकती है।

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40 से 50

प्रतिशत तक बढ़ गए अस्पतालों में सांस व एलर्जी की समस्या से पीडि़त मरीज

500

से अधिक मरीज प्राइवेट हॉस्पिटल्स में

300

सांस के रोगी हर रोज पहुंच रहे बीएचयू के एसएस हॉस्पिटल में

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इन बातों पर दें ध्यान

-पॉल्यूशन का लेवल 200 से ऊपर होने पर आउटडोर गेम्स बंद कर देना चाहिए।

-स्कूलों को क्लास रूम के अंदर एयर प्यूरिफायर लगाना चाहिए।

-डब्ल्यूएचओ ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि पॉल्यूशन की वजह से लंग्स के विकास पर असर पड़ता है।

वर्जन--

बच्चों का फेफड़ा बेहद कोमल होता है। ऐसे में अगर उनके शरीर में सांस के जरिए 5 हजार लीटर विषैला गैस पहुंचेगा तो 20 से 22 साल की उम्र में वे कई बीमारी के शिकार हो सकते हैं।

डॉ। एस के अग्रवाल, चेस्ट स्पेशलिस्ट, एसएस हॉस्पिटल, बीएचयू

बच्चे पॉल्यूशन की चपेट में तेजी से आ रहे हैं। खांसी की शिकायत लेकर आने वाले बच्चों में सांस और एलर्जी की समस्या सामने आ रही है। पुराने मरीजों में अस्थमा का अटैक बढ़ गया है।

डॉ। एके पाठक, चेस्ट स्पेशलिस्ट, ब्रेथ ईजी, चेस्ट केयर हॉस्पिटल