उम्र बढ़ने के साथ हो सकती है तमाम परेशानियां

60 प्रतिशत बच्चे मांसपेशियों की समस्याओं से जूझ रहे

Meerut। छोटे-छोटे बच्चों के भारी बस्ते उन्हें नन्ही सी उम्र में स्पोंडिलाइटिस जैसी बीमारी दे रहे है। यही नहीं डॉक्टर्स के मुताबिक करीब 60 प्रतिशत बच्चे इसी वजह से कमर दर्द और मांसपेशियों की समस्याओं से जूझ रहे हैं। बच्चों के मेंटल और फिजिकल ग्रोथ में बाधक बन रहे इस बोझ को कम करने की सरकार की कवायद फेल हो रही हैं। कई गाइडलाइन जारी हुई लेकिन नतीजा सिफर है। स्कूल संचालकों को न तो बच्चों की सेहत से सरोकार है न ही नियमों की परवाह है। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने भारी बस्ता अभियान के तहत शहर के अलग -अलग स्कूलों के बच्चों के बैग जांचे। भारी-भारी बैग कंधे पर लादे बच्चों की हालत काफी सोचनीय हैं।

ये हो रहे नुकसान

बच्चों में लगातार नेक पेन और कमर दर्द की शिकायतें बढ़ रही हैं। सरकारी और प्राइवेट दोनों ही जगहों पर ऐसे बच्चों की तदाद बढ़ती जा रही है तो भारी वजन के चलते स्पोंडिलाइटिस, स्पाइनल कॉर्ड में दर्द, तिरछापन जैसी समस्या लेकर पहुंच रहे है। डॉक्टर्स का कहना है कि 5 से 10 साल की उम्र में 5 से 10 किलो का वजन कंधे पर लादना बच्चों में स्ट्रेस का भी बड़ा कारण हैं। इस वजह से बच्चों में सिरदर्द होना काफी कॉमन हो गया है।

ये हैं खतरे

बैलेंस बिगड़ने से गिरने का खतरा बढ़ जाता है। जिसकी वजह से गंभीर चोट लग सकती है।

रीढ़ की हड्डी पर वजन पढ़ने से चक्कर, उल्टी आना भी हो सकता है।

लांग टर्म खतरे

16 साल की उम्र के बाद यह समस्या सरवाइकिल, स्पिाइनल प्राब्लम्स, स्पोंडिलाइटिस, पोश्चर का बिगड़ना, डिस्क स्लिप जैसी समस्या तेजी से सामने आती हैं।

यह है गाइडलाइन

चिल्ड्रन स्कूल बैग एक्ट, 2006 के अनुसार जारी गाइडलाइन के तहत स्कूल बैग का वजन छात्रों के वजन के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए ।

1 और 2 क्लास के स्टूडेंट्स के लिए स्कूल बैग का वजन 1.5 किलो से अधिक नहीं होना चाहिए।

3, 4, 5 क्लास के स्टूडेंट्स के स्कूल बैग का वजन 2 से 3 किलो के बीच का होना चाहिए।

6 व 7 क्लास के बच्चों का स्कूल बैग का वजन 4 किलो तक होना चाहिए।

8 व 9 क्लास के स्टूडेंट्स के लिए स्कूल बैग का वजन 4.5 किलो से अधिक नहीं होना चाहिए।

10वीं क्लास के बच्चों का का वजन 5 किलो होना चाहिए।

इनका है कहना

भारी स्कूल बैग लेकर चलने से मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। सरवाइकिल और नेक, बैक और बोन पेन के मामले सबसे ज्यादा कंधे पर बोझ की वजह से पैदा हो रहे हैं। पैरेंट्स को चाहिए कि वह बच्चों के खान-पान और एक्सरसाइज पर खास फोकस रखे।

डा। उमंग अरोड़ा, सीनियर पीडियाट्रिशियन

बच्चों की हड्डियां 16 साल की उम्र तक नर्म होती हैं। रीढ़ की हड्डी इस उम्र तक बोझ सहने लायक नहीं होती है। बच्चे इन दिनों एक कंधे पर बैग को टांगते हैं इसकी वजह से वन साइडेड पेन की समस्या बहुत ज्यादा होती है। 60 प्रतिशत बच्चे इसी तरह की समस्या लेकर आ रहे हैं।

डा। विजय जायसवाल, सीनियर पीडियाट्रिशियन, मेडिकल कॉलेज

भारी बैग को लगातार कैरी करने से ब्लड सर्कुलेशन प्रॉपर नहीं होता है। बच्चों की मेंटल हेल्थ पूरी तरह से प्रभावित होती है। दिमाग में ऑक्सीजन और ब्लड का फ्लो जरूरत के हिसाब से नहीं होता है। चिडचिड़ापन, जिद, ग्रोथ भी कम हो जाती है।

डा। रवि राणा, सीनियर साइकेट्रिस्ट,

इनका है कहना

स्कूलों में अब एक्टिविटीज कांसेप्ट पर अब ज्यादा फोकस किया जा रहा है। बुक्स ऑलरेडी बहुत कम करा दी गई हैं।

राहुल केसरवानी, सहोदय अध्यक्ष

बच्चों के स्कूल बैग का वेट कम से कम ही होता है। क्लास 1 टू 5 में सिर्फ जरूरी बुक्स और नोट बुक्स ही रखी गई हैं। टाइमटेबल के बिना स्टूडेंट्स पूरा सिलेबस बैग में कैरी कर लेते हैं।

चंद्रलेखा, प्रिंसिपल, सेंट जोंस सीनियर सेकेंडरी स्कूल

सरकार लगातार गाइडलाइन जारी कर रही है। बच्चों के बैग का वेट कम होना चाहिए। स्कूल में एक सब्जेक्ट की तीन-तीन नोट्स बुक्स मंगवाई जाती हैं। बोझ कैसे कम होगा।

विक्की वर्मा, पेरेंट्स

बच्चों का बैग उठाना हमारे लिए ही मुश्किल होता है। छोटे-छोटे बच्चे इतना हैवी बैग कैसे कैरी करते हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूलों की बात माननी ही पड़ती है।

नीरज कौशिक, पेरेंटस