- न्यूनतम वेतन और महंगाई भत्ता देने का आदेश निरस्त

NAINITAL: हाईकोर्ट ने वन विभाग में सालों से कार्यरत दैनिक वेतन श्रमिकों को न्यूनतम वेतनमान के साथ ही महंगाई भत्ता देने संबंधी एकलपीठ का आदेश निरस्त कर दिया है। कोर्ट के इस आदेश से 1984 के बाद अलग-अलग साल में दैनिक व संविदा के रूप में नियुक्त करीब 1500 श्रमिकों को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार की विशेष अपील को निस्तारित कर दिया है।

श्रमिक संघ ने दायर की थी याचिका

उत्तरांचल श्रमिक संघ ने 2015 में हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा था कि विभाग द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2003 के आदेश के अनुसार कुमाऊं वन श्रमिक संघ अल्मोड़ा से संबद्ध श्रमिकों को न्यूनतम वेतनमान दिया जा रहा है, लेकिन इस श्रमिक संगठन से अलग वन श्रमिकों को सरकार द्वारा यह लाभ नहीं दिया जा रहा है। सरकार द्वारा एक ही विभाग में श्रमिकों के साथ पक्षपात किया जा रहा है। 23 मार्च 2017 को हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकलपीठ ने सभी वन श्रमिकों को न्यूनतम वेतनमान के साथ ही महंगाई भत्ता देने के आदेश पारित किए थे। एकलपीठ के इस आदेश के खिलाफ सरकार द्वारा 50 से अधिक विशेष अपील दायर कर चुनौती दी गई। सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के 2002 में पुत्ती लाल बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व जगजीत सिंह बनाम पंजाब सरकार व 2006 के उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार केस को आधार बनाया गया। शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति रमेश खुल्बे की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद एकलपीठ का आदेश निरस्त कर दिया। साथ ही सरकार की विशेष अपीलों को निस्तारित कर दिया।