लेकिन 2010 की फ़िल्म ‘इश्किया’ और आने वाली फ़िल्म ‘द डर्टी पिक्चर’ में वो अपनी गंभीर छवि से कुछ अलग, रोमांटिक रोल में हैं।

नसीर कहते हैं कि रोमांटिक रोल न मिलने की वजह तो वो नहीं जानते लेकिन इसमें बॉलीवुड का ही नुक्सान हुआ है। हाल ही में मुम्बई में उनकी नई फ़िल्म ‘माइकल’ के लिए आयोजित एक पत्रकार सम्मेलन में उन्होंने ये बात कही।

उनसे जब ये पूछा गया कि उन्हें कौन से रोल करने में ज़्यादा मज़ा आता है, गंभीर या रूमानी, तो नसीरूद्दीन शाह ने कहा, “ये इत्तेफ़ाक से मुझे मेरे करियर में आशिक़ के रोल मिले नहीं हैं। इसकी वजह मुझे नहीं पता। ‘इश्किया’ शायद ऐसी पहली फ़िल्म थी जिसमें मैंने ऐसा रोल किया है.”

उन्होंने आगे कहा, “ऐसा नहीं है कि मैं अलग-अलग भूमिकाएं ढूंढता फिरता हूं या ये सोचता हूं कि इस फ़िल्म में मैं ऐसा लग रहा हूं तो दूसरी फ़िल्म में अलग तरह से दिखना चाहिए। ऐक्टर को ये कोशिश नहीं करनी चाहिए बल्कि फ़िल्म की ज़रूरत समझना चाहिए। मुझे अच्छा रोल वही लगता है जो किसी डिरेक्टर को सूझे, न कि मैं तय करूं कि मेरा इस तरह का रोल करने का जी चाह रहा है.”

किसी पत्रकार ने उनसे पूछा कि रोमांटिक रोल्स न मिलने की एक वजह क्या ये है कि वो निजी ज़िंदगी में भी रोमांटिक नहीं हैं, नसीर ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में इसका जवाब दिया। उन्होंने हंसते हुए कहा, “ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैं बहुत रोमांटिक और भावुक हूं। मुझे लगता है कि मुझे प्रेमी का रोल न देने से फ़िल्म इंडस्ट्री का ही नुक्सान हुआ है.”

बदली प्राथमिकताएं

नवोदित निर्देशक रिभू दासगुप्ता की फ़िल्म माइकल में नसीरूद्दीन शाह की भूमिका एक ऐसे पुलिस वाले की है जिसे धीरे-धीरे दिखना बंद होता जा रहा है। फ़िल्म के निर्माता अनुराग कश्यप हैं। फ़िल्म एक पिता-पुत्र के रिश्ते की कहानी है।

उन्होंने ये रोल क्यों चुना, इसके बारे में नसीर का कहना था, “मैं अब दिलचस्प किरदार या बेहतरीन अभिनय की तलाश में नहीं हूं। मुझे तलाश है ऐसी फ़िल्मों की जिन पर मैं फ़क्र कर सकूं और जिन्हें बाद में याद रखा जाए। इत्तेफ़ाक से बहुत से नौजवान लोग आज ऐसी फ़िल्में बना रहे हैं जो कि ख़ुशी की बात है। इस फ़िल्म की ख़ास बात ये भी थी कि एक नौजवान फ़िल्ममेकर अपनी पहली फ़िल्म बना रहा था और मेरी मदद चाहता था.”ishqiya

नसीर कहते हैं कि वो अपनी ‘इंसिटिंक्ट’ से रोल चुनते हैं। किसी भी रोल को करने की उनकी अलग वजह होती है। उन्होंने कहा, “पैंतीस साल में मेरी प्राथमिकताएं बदल गई हैं। शुरु में मैं बढ़िया ऐक्टिंग करना चाहता था क्योंकि मैं बतौर ऐक्टर ख़ुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहा था और चाहता था कि लोग मुझे मेरी ऐक्टिंग के लिए पहचाने। लेकिन आज मैं चाहता हूं कि लोग मुझे मेरी फ़िल्मों के लिए याद रखें, चाहे रोल छोटा हो या बड़ा क्योंकि मैं मानता हूं कि ऐक्टर्स का काम अपनी कला दिखाना नहीं बल्कि कहानीकार या डायरेक्टर का संदेश देना है.”

नसीरूद्दीन शाह उन चंद गिने-चुने अभिनेताओं में से हैं जिन्हें शुक्रवार से डर नहीं लगता। वो कहते हैं, “मुझे शुक्रवार से कभी डर नहीं लगा। मैं बहुत ऐहसानमंद हूं कि मुझे कभी ये सोच कर नींद नहीं खोनी पड़ती कि मेरी फ़िल्म चलेगी या नहीं। ये प्रोड्यूसर और डिरेक्टर का काम है, मेरा काम ऐक्टिंग करना है। मेरी फ़िल्म चले या ठप्प हो, इसका मेरे आगे काम मिलने पर कोई असर नहीं पड़ता.”

क्या आज सिनेमा बदल रहा है? इस बारे में नसीरूद्दीन शाह का कहना था, “सत्तर के दशक में भी लोगों को भी उम्मीद थी कि सिनेमा बदलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज सिनेमा बदल रहा है या नहीं, ये कहना मुश्किल है लेकिन उम्मीद ज़रूर करनी चाहिए। ये उम्मीद कर सकते हैं कि जो नौजवान फ़िल्ममेकर ढर्रे से हटकर फ़िल्में बनाना चाहते हैं, उनकी हिम्मत और लगन क़ायम रहे और उन्हें इस काम में मदद और सहारा मिलता रहे। इसके आसार ज़रूर अच्छे लग रहे हैं.” नसीरूद्दीन शाह इन दिनों फ़िल्म ‘दैट गर्ल इन यैलो बूट्स’ में नज़र आ रहे हैं।

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