1. एक टाइम का खाना तक नसीब नहीं था पांड्या को :
टीम इंडिया में अपने आलराउंड प्रदर्शन से चर्चा में आए हार्दिक पांड्या के लिए यहां तक पहुंचना काफी मुश्किल था। पांड्या का बचपन गरीबी में गुजरा। हार्दिक के पिता एक प्राइवेट नौकरी करते थे। ऐसे में घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। हार्दिक के घर में आमदनी क जरिया सिर्फ उनके पिता की सैलरी थी। बाद में जब पिता ने भी नौकरी छोड़ दी तो घर में खाना खाने के पैसे तक नहीं होते थे। कई बार एक बार का खाना भी बड़ी मुश्किल से नसीब होता था। हार्दिक पांड्या पढ़ाई में भी अव्वल दर्जे के स्टूडेंट्स नहीं थे। वह 9वीं क्लॉस में फेल हो गए थे। जिसके बाद पांड्या ने पढ़ाई छोड़ क्रिकेट पर ध्यान लगाया। पूर्व क्रिकेटर किरण मोरे ने पांड्या को अपनी एकेडमी में ट्रेनिंग देने के लिए शुरुआती तीन साल कोई फीस नहीं ली। बस यहीं से पांड्या ने अपने हुनर को नई पहचान दी।
2. टीटीई की नौकरी कर गुजारा करते थे माही :
फिल्म एम एस धोनी ए अनटोल्ड स्टोरी में कई लोग भारतीय टीम के सबसे कामयाब कप्तान के संघर्ष की कहानी से वाकिफ हो चुके हैं। एक मामूली नौकरी करने वाले धोनी के पिता पान सिंह उनके क्रिकेटर बनने के इरादे से कोई खास खुश नहीं थे। कैप्टन कूल कहे जाने वाले माही ने कामयाबी से पहले ट्रेन टिकट एग्जामिनर यानि टीटीई की नौकरी की है। उस वक्त उनके घर की हालत काफी अच्छी नहीं थी। धोनी का परिवार दो कमरों के क्वॉर्टर में रहता था।
3. स्पोर्ट्स शूज तक खरीद नहीं पाते थे भुवी :
उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास एक गांव के रहने वाले वाले हैं तेज गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार। सब इंस्पेक्टर पिता के बेटे भुवी के पास आर्थिक समस्याओं के चलते क्रिकेट क्लब में शामिल होना आसान नहीं था। एक वक्त में उनके पास खेलने के लिए ढंग के स्पोर्टस शूज भी नहीं हुआ करते थे। वो इस मुकाम तक ना पहुंच पाते अगर उनकी बहन ने उनकी मदद ना की होती। उनको पहचान 2008 और 2009 के दौरान रणजी ट्रॉफी के लिए खेले गए एक मैच से मिली जब उन्होंने सचिन तेंदुलकर को शून्य पर आउट किया और मैन ऑफ द मैच का खिताब जीता।
4. सिक्योरिटी गार्ड के बेटे हैं रवींद्र जडेजा :
सर जडेजा के नाम से मशहूर अब एक ऑलराउंडर बन चुके क्रिकेटर रवींद्र जडेजा के लिए भी जिंदगी फूलों का बिछौना नहीं रही है। उनके पिता एक शिपिंग कंपनी के कांप्लेक्स में सिक्योरिटी गार्ड थे और वो आर्थिक परेशानियों से जूझते हुए इस मुकाम पर पहुंचे हैं। उस पर भी महज 17 साल की उम्र में जडेजा ने अपनी मां को खो दिया था।
5. उमेश के पिता थे कोयला खान मजदूर :
विदर्भ की ओर से खेलते हुए भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल होने वाले उमेश यादव पहले क्रिकेटर हैं। उमेश के पिता एक कोयला खान मजदूर थे और उनका बचपन नागपुर के कोयला मजदूरों के गांव में बीता है। 2007 से पहले उमेश टेनिस बॉल क्रिकेट ही खेला करते थे। भारतीय टीम में शामिल होने से पहले उमेश ने पुलिस की नौकरी के लिए भी आवेदन किया था।
Cricket News inextlive from Cricket News Desk
Cricket News inextlive from Cricket News Desk